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परिणीता भाग १३

तीन हफ्ते बाद
अब तक करीब तीन हफ्ते बीत चुके थे जबसे हम पति-पत्नी के तन बदल गए थे| इन तीन हफ्तों में कुछ दिक्कतें भी आई, औरत होने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, मैं वह सीख रही थी जो कभी प्रतीक, एक आदमी रहकर मुझे पता भी न चलता| परिणीता, जो अब मेरे पतिदेव है, उन्हें भी शायद कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा पर उन्हें देखकर मुझे कभी ऐसा महसूस न हुआ| वो पहले से ही मुश्किलों का सामना हिम्मत से कर लेते थे, जब वो औरत थे तब भी| पर इन तीन हफ्तों में हमें अब तक ज़रा भी अंदाजा न था कि आखिर हमारे तन क्यों और कैसे बदल गए? रोज़ हम इस बारे में सोचते थे| लगता था कि भगवान हमें कुछ सिखाना चाहते है और यदि हम ख़ुशी ख़ुशी वह बात जल्दी से सीख जाए तो हम शायद वापस अपने पहले वाले रूप में आ जाए| इसके बावजूद हमारा जीवन ख़ुशी से चल रहा था| जब भी कोई नयी परिस्थिति आती जिसमे मुझे पता न होता कि क्या करना है, तब मेरे इस तन में चल रहे परिणीता के दिमाग में बसी यादों को थोडा जोर लगाकर पढ़ लेती कि परिणीता ऐसी स्थिति में क्या करती| ऐसा ही कुछ आज भी हुआ पर मुझे ध्यान ही न रहा कि मैं अपने दिमाग में बसी परिणीता की यादों का सहारा ले सकती हूँ| आज मेरे पेट में जोरो का दर्द हो रहा था| उस दर्द से परेशान होकर मैं आज काम से जल्दी ही घर वापस आ गयी|
मैं कार लेकर घर आ गयी थी| घर पहुच कर मैंने इन्हें फ़ोन लगाया कि आज वो टैक्सी लेकर वापस आये| पर मुझे उनके फ़ोन की घंटी अन्दर बेडरूम से सुनाई दे रही थी| क्या वो आज फोन घर पर ही भूल गए? मैं अन्दर कमरे में जाकर देखती हूँ तो वो वहीँ थे| वो बिस्तर पे बैठे रो रहे थे और उनके बगल में कुछ मेरी ड्रेसेज, जो पहले उनकी हुआ करती थी, बिखरी पड़ी हुई थी| मेरी अलमारी भी खुली हुई थी और सब कुछ बिखरा हुआ था| मैं समझ नहीं सकी कि आखिर हुआ क्या था| चिंतित होकर  मैं तुरंत उनके पास गयी और उन्हें गले लगा ली| उनका सिर अपने सीने पे रख कर मैं उन्हें चुप कराने की कोशिश करने लगी| मैं जानती थी कि एक औरत के सीने में सर रख कर हर किसी को प्यार अनुभव होता जो किसी की भी परेशानियों को दूर करने में मदद करता है| मेरे दिल से सच में चिंता और प्यार के बीच यह सवाल आ रहा था कि आखिर वह रो क्यों रहे है? आखिर क्या हुआ? सच तो यह था कि उनके दिल में बहुत समय से कुछ बातें चल रही थी| परिणीता ने एक हफ्ते पहले उन बातों को अपनी प्राइवेट डायरी में लिखा भी था| पर न मैं उनकी दिल की बातें न समझ सकी थी और न ही मैंने उनकी डायरी पढ़ी थी| आप ही पढ़ के देखे तो आपको समझ आ जाएगा|
प्रिय डायरी,
तुमसे बातें किये न जाने कितना समय हो गया. पिछली बार जब तुमसे बात की थी तब मैं कितनी ख़ुशी थी. तब मैं एक औरत थी, परिणीता थी. पर आज मैं एक आदमी के तन में हूँ, और दुनिया मुझे प्रतीक कहती है, पर मैं हूँ तो परिणीता! जब से आदमी बनी हूँ, हमेशा मन में सवाल आता रहता है कि आखिर ऐसा क्यों और कैसे हो गया मेरे साथ? पर  इस सवाल का कोई जवाब नहीं है मेरे पास .
इस दौरान मैं आदमी होने के फायदे भी देख रही हूँ. लोग मेरी बात एक ही बार में सुन लेते है. मुझे  तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता. कपडे मैचिंग करने का झंझट नहीं और न ही सैंडल पहन कर  दिन भर अपने पैर दुखाने का झंझट. साथ ही पति बनने के फायदे भी है. मेरी पत्नी मेरी खूब सेवा करती है!
मेरी तरह प्रतीक भी बदल कर अब औरत हो चुके है. एक औरत के रूप में वो कितने खिल गए है. बातूनी, कॉंफिडेंट, उनकी पर्सनालिटी में ज़बरदस्त बदलाव आया है. जैसे उन्हें दुनिया में अब कोई कुछ करने से रोक नहीं सकता. बहुत खुश है वो औरत बन कर. पारंपरिक पत्नी के सारे गुण है उनमे, और इतनी ख़ुशी से मेरी सेवा करते है जैसे हमेशा से ही वो औरत ही बनना चाहते थे. और यह सच भी है. मैं जानती हूँ कि वो औरतों की तरह पहले से ही सजना संवरना पसंद करते थे, पर मैं उन्हें मौका नहीं देती थी. और अब जब उन्हें मौका मिला है तो वो खुलकर जी रहे है. मैं भी अब उनका साथ दे रही हूँ. उनको खुश देखकर मुझे भी अच्छा लगता है. और उनके लिए मुझे पति बनकर उन्हें प्यार से ट्रीट करना भी बड़ा आसान है. आखिर मेरे दिमाग में उनकी यादें भी तो है, जो मुझे याद दिला देती है कि यदि वो होते तो अपनी पत्नी के साथ कैसे सलूक करते. तो अब मैं भी समय समय पर उनकी खूबसूरती की तारीफ़ कर देती हूँ, समय समय पर किस देती हूँ, अपनी बांहों में भर लेती हूँ. और इन छोटी छोटी बातों से ही वो खुश हो जाते है. या ख़ुशी हो जाती है? न जाने क्या कहूँ मैं?
वैसे मेरे मना करने पर भी उन्होंने आखिर हॉस्पिटल में साड़ी पहनकर जाना शुरू कर दिया है.  US में काम करते हुए भला कौन साड़ी पहन कर जाता है ? पर वो मेरी बात सुनते ही नहीं . कहते है कि  ड्रेस में उन्हें ठण्ड लगती है . हाँ मुझे भी लगती थी पर इस देश के पहनावे  को अपनाना भी ज़रूरी है . खैर, कई बार ड्रेस भी पहन कर जाते है बाहर. पर घर में तो बस पक्की भारतीय नारी . न जाने कैसे इतनी आसानी से साड़ी पहन लेते है वो. और हॉस्पिटल में सभी उनकी तारीफ़ करते है. डॉ परिणीता हॉस्पिटल में इतनी पोपुलर हो गयी है कि लोग मुझे आकर बधाई देते ही कि बहुत खुबसूरत पत्नी पाई है आपने! मैं मन ही मन सोच कर हँस लेती हूँ कि डॉ. परिणीता के अन्दर अब परिणीता ही नहीं है, बल्कि प्रतीक है, जिसने परिणीता को इतना पोपुलर बना दिया! पर कहाँ है परिणीता? मैं हूँ परिणीता? अब एक आदमी बन कर …
याद आता है मुझे वह सब कुछ, कैसे मैंने प्यार से ढेरो ड्रेसेस अपने लिए खरीदी थी और उनसे मैचिंग सैंडल, आज जिनमे प्रतीक घूमते है. उन्हें साड़ी में देख कर मेरा भी मन करने लगा है कि मैं भी अपना औरत वाला जीवन फिर से जी सकू. जितनी आसानी से वो पत्नी बन चुके हैं, मैं वैसी तो नहीं थी, पर वैसी होने की तमन्ना है मेरी| मैं भी पति की सेवा करना चाहती हूँ. मैं भी चहकना चाहती हूँ. फिर से ड्रेस पहनकर बाहर घूमना चाहती हूँ, एक फूल की तरह नाज़ुक राजकुमारी जैसे फिर से महसूस करना चाहती हूँ मैं. पर अब मैं इस आदमी के तन में कैद हो गयी हूँ. मैं तो शायद अब अपनी ड्रेस में फिट भी न आऊंगी और इस मर्दाने शरीर में न जाने कैसी लगूंगी मैं.  मेरे शरीर पर इतने बालों से नफरत सी हो रही है मुझे . और रोज़ रोज़ शेव करके तंग आ चुकी हूँ. क्या मैं फिर से औरतों के कपडे पहन कर स्त्री होने का अनुभव कर सकती हूँ? पर प्रतीक से क्या कहूँगी मैं? जब वो आदमी थे, मैं उन्हें यह करने से रोकती थी. अब मैं खुद आदमी होकर यह कैसे कर सकती हूँ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. क्या अब मैं पहले वाले प्रतीक की तरह क्रोस्ड्रेसर बन चुकी हूँ? मेरे दिमाग में प्रतीक की याद है और मैं जानती हूँ कि उसका एक क्रोस्ड्रेसर के रूप में एक फेसबुक अकाउंट है, जिसका पासवर्ड मुझे याद है. क्या मुझे वहां जाकर देखना चाहिए कि इस आदमी के तन में मैं औरत कैसे बनू? पर न जाने प्रतीक की कैसी कैसी बातें मुझे जानने को मिलेगी. क्या मैं उनको जानने को तैयार हूँ? वैसे भी मेरे दिमाग में उनकी क्रोस्ड्रेसिंग से जूडी यादें थोड़ी थोड़ी आती रहती है जिनको मैं दबाती रहती हूँ पर अब मैं खुद वैसा ही महसूस करने लगी हूँ. क्या करूँ मैं ?
भगवान यदि मेरी आवाज़ सुन रहे हो तो प्लीज़ मुझे वापस औरत बना दो. यदि तुम यही चाहते थे कि मैं एक अच्छी पत्नी बनू तो मैं उसके लिए तैयार हूँ. प्लीज़ मुझे फिर से औरत बना दो.
अब तो आप समझ ही गए होंगे की परिणीता के दिमाग में क्या चल रहा था| काश कि परिणीता ने मुझसे यह बातें पहले ही बता दी होती| मैं भी अपनी नयी ज़िन्दगी की ख़ुशी में मगन थी| और मेरा ध्यान उनकी ओर कभी गया ही नहीं| आखिर उस दिन परिणीता ने मुझे सब कुछ बताया| उन्होंने कहा कि कैसे वो मेरी अपनी ड्रेसेज पहन कर फिर से औरत बनना चाह रहे थे पर उनके बड़े से तन में एक भी ड्रेस नहीं गयी| और तो और उन्हें लग रहा था कि वो औरतों के कपडे पहन कर बड़े ख़राब लगेंगे| परिणीता उन्ही बातों से गुज़र रहे थे जो मैंने सालो तक महसूस किया था| कैसी अजीब सी स्थिति थी हमारी| वो कुछ देर तक मुझसे गले लग कर रोते रहे| मुझे पता था आगे क्या करना है| पर मेरे पेट में दर्द और मरोड़े मुझे बेहद तकलीफ दे रही थी| मैं अपने पेट को पकड़ कर दबाने की कोशिश करने लगी|
“प्रतीक, क्या हुआ तुम्हे?”, परिणीता ने मुझसे पूछा| “तुम चिंता मत करो परी, बस पेट में बड़ा दर्द हो रहा है| शायद मैंने कुछ ज्यादा खाना खा लिया था| जल्दी ठीक हो जाएगा| पर ऐसा पेट दर्द पहले कभी नहीं हुआ”, मैंने परिणीता की चिंता दूर करने की कोशिश की|
परिणीता ने अपना फोन चेक किया| फिर मेरी ओर देख कर बोले, “पगली, तुम्हारे पीरियड शुरू होने वाले है! ये दर्द ऐसे बैठे बैठे नहीं जाएगा|”
“क्या? मेरे … मेरे पीरियड?”, मैं तो यकीन ही नहीं कर पा रही थी| अब तक औरत बनना तो बस सब हँसने खेलने जैसा था| पीरियड के बारे में तो मैं कभी सोची भी नहीं थी| हम क्रोस्ड्रेसर बस सोचते है कि औरत बन कर जीवन बस सुन्दर होगा पर यह भी हकीकत है और आसान नहीं! मेरा दर्द बढ़ता जा रहा था|
“तुम यहाँ बैठो, मैं एक मिनट में आता हूँ”, ऐसा कहकर परिणीता बाथरूम चले गए और फिर किचन| वापस आये तो उनके हाथ में कुछ गोलियां थी और एक पैड| “ये ३ गोली खा लो, कुछ देर बाद तुम्हे दर्द से आराम मिलेगा|” उन्होंने मुझे पानी भी दिया| “क्या पीरियड के लिए गोलियां भी आती है?”, मैंने अंजान होंते हुए मासूमियत से  पूछा| “नहीं पगली, यह दवा सिर्फ दर्द कम करने के लिए है”, उन्होंने कहा| मैंने गोलियां खा ली|
फिर वो नीचे झुके और मेरे पैरो के पास आकर बैठ गए| फिर अचानक ही वो मेरी साड़ी पैरो पर से सरकाकर हाथों  से उठाने लगे| “यह क्या कर रहे हो तुम?”, मैंने झट से वापस अपनी साड़ी को नीचे करते हुए उनसे कहा| “मुझे करने दो जो मैं कर रहा हूँ|”, वो भी बेहद तेज़ी से मेरी साड़ी उठाकर मेरी पैंटी तक अपना हाथ ले गए| मैं गुस्से में आकर बोली, “ये कोई तरीका है परी? मैं यहाँ दर्द में हूँ और तुम यह कर रहे हो?” मैंने गुस्से में उनका हाथ हटाया| मुझे शर्म सी भी आ रही थी|
वो मेरी ओर देखे और बोले, “देखो, क्या तुम्हे सेनेटरी पैड लगाना आता है? जल्दी से न लगाया तो कुछ देर बाद, तुम्हारी साड़ी में दाग लग जाएगा| चाहोगी तुम कि ऐसा हो? तुम्हारी साड़ी ख़राब हो जाए?” मैं अब थोड़ी शांत हो गयी| वो मेरे बारे में ही सोच रहे थे| फिर उन्होंने मेरी पैंटी नीचे घुटनों तक उतारकर उसमे पैड फिट किया और मुझे बताया की उसे कैसे एडजस्ट करना है| मुझे उनके सामने पैड पहन कर एडजस्ट करने में शर्म तो आ रही थी पर अगले कुछ दिनों तक दाग धब्बे का डर तो था ही| फिर उन्होंने मेरे पैरो को उठाकर मुझे लिटा दिया और बोले, ” तुम कुछ देर आराम करो| जल्दी ही दर्द कम होगा|” मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोका| उनके हाथ को प्यार से चूमा और बोली, “मैं क्षमा चाहती हूँ कि मैं तुमसे नाराज़ हो गयी थी जबकि तुम मेरे मदद कर रहे थे|” वो मुस्कुरा दिए|

करीब आधे घंटे दवाई के असर से मेरा दर्द कम होने लगा| तो मैं उठ कर उस कमरे में गयी जहाँ मैं पहले प्रतीक के रूप में जाकर छुप छुप कर औरत बना करती थी| मैंने अपना वो बॉक्स उठाया जिसे परिणीता ने कभी नहीं उठाया था| अब मुझे परिणीता के दिल का दर्द दूर करना था| मैं बॉक्स लेकर उनके पास गयी|
“मेरी प्यारी धरमपतनी, तुम उठ क्यों गयी? अभी तो दर्द ख़त्म भी नहीं हुआ होगा तुम्हारा”, वो मेरी चिंता करते हुए बोले|
“क्योंकि जानू, मुझे तुम्हे कुछ दिखाना है”, मैंने कहा|
वो जानते थे कि वह बॉक्स मैं किस लिए उपयोग लाती थी पर परिणीता ने कभी उसके अन्दर झांककर भी नहीं देखा था| मैंने बॉक्स खोलकर उन्हें एक तस्वीर दिखाते हुए बोली, “ज़रा इस औरत को देख कर बताओ कि कैसी लग रही है? सच सच बताना|”
उन्हें वह तस्वीर देख कर जैसे यकीं ही नहीं हुआ| वो तस्वीर को पकड़ कर देखते ही रह गए| मैंने फिर कहा, “तुम्हे चिंता थी न कि उस तन में तुम औरत की तरह नहीं लगोगे| इस तस्वीर को देख कर बताओ, यह औरत कैसी लग रही है?”
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मैंने उन्हें अपने पुराने बक्से से निकाल कर अपनी तस्वीर दिखाई जब मैं प्रतीक से एक औरत बना करती थी| वो मेरी तस्वीर को देखते ही रह गए| उन्हें यकीं ही नहीं हुआ कि मैं एक खुबसूरत औरत लग सकती थी
वो थोड़ी देर रूककर मेरी आँखों में देखते रहे और फिर मुझे गले लगाकर बोले, “बहुत सुन्दर औरत है| मुझे यकीन नहीं होता कि तुम पहले खुद को इतनी सुन्दर औरत के रूप में तब्दील कर लेते थे| मुझे माफ़ कर दो प्रतीक कि मैंने तुम्हे कभी खुलकर जीने नहीं दिया|”
मैं मुस्कुराते हुए बोली, “पतिदेव, उस बक्से में तुम्हारी साइज़ की ड्रेस भी है और साड़ियां भी, और उनसे मैच करते ब्लाउज भी| पर तुम्हे सिर्फ उन्ही कपड़ो को पहनना ज़रूरी नहीं है| फिलहाल तुम उसमे से कोई एक साड़ी सेलेक्ट कर लो, मैं तुम्हे तैयार करूंगी, और हम साथ में तुम्हारी पसंद के कपडे खरीदने जायेंगे|”
“क्या सच में? तुम ऐसा करोगी मेरे लिए? मैं ऐसे कैसे साड़ी पहन कर बाहर जाऊँगा?”, उनकी आवाज़ में ख़ुशी भी थी और एक डर भी|
“मेरे पति के लिए कुछ भी करूंगी मैं| और साड़ी पहन कर तुम वैसे ही जाओगे जैसे तुम पहले जाया करती थी| एक बार फिर उस तस्वीर की औरत को देखो और बताओ, वो बाहर जायेगी तो लोग उसकी खूबसूरती को देखते रह जायेंगे या नहीं?” मैं खुश थी| हमारे रिश्ते में वो मोड़ जो आ गया था जहाँ परिणीता अब मेरे जीवन के उस पहलू को समझने वाली थी जिसे मैंने सालों तक दबा कर रखा था| इत्तेफाक देखिये, मैं औरत बन गयी और मुझे पति मिला, वह भी क्रोस्ड्रेसर!

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