Skip to main content

परिणीता भाग ३

एक दुसरे को आश्चर्य से देखते हमको कुछ देर हो गयी थी। अब तक हम दोनों को समझ आ गया था कि रातोरात हम पति-पत्नी एक दुसरे के शरीर में बदल गए थे। सोच कर ही देखो कि आप अपने शरीर को अपनी आँखों के सामने देख रहे है और उस शरीर में आपकी पत्नी है और आप उसके शरीर में। “प्रतीक, अब हम क्या करेंगे?”, परिणिता ने मुझसे पूछा। मेरे पास कोई जवाब न था और मैंने निराशा में नज़रे झुका ली। नज़रे झुकाते ही खुद के सीने पर गयी। कैसे कहूँ कि उस अजीब सी स्थिति में भी अपने सीने में स्तनों को देख कर कितना अच्छा लग रहा था! मैंने पुरुषरूप में तो ब्रेअस्फोर्म्स का उपयोग किया था पर असली स्तनों का वज़न और अनुभव कोई ब्रेअस्फोर्म नहीं दे सकते। खुद के स्तनों को देख कर छूने का जी चाह रहा था, मन कर रहा था की अपने ही हाथों से दबा कर देखूँ। पर परेशान परिणिता के सामने ऐसा कुछ नहीं कर सकती थी मैं! फिर भी बस सुन्दर सुडौल वक्षो को देखती रह गई मैं।
“प्रतीक!!”, परिणिता ज़ोर से चीखी। “यहाँ मैं परेशान हो रही हूँ और तुम ब्रेस्ट्स देखने में मगन हो! तुमको तो अच्छा लग रहा होगा कि तुम्हारा औरत बनने का सपना पूरा हो गया!”
“परिणिता, तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो। मैं भी परेशान हूँ।” मेरे भी चेहरे पे गंभीरता आ गयी। अपनी पत्नी को दुखी नहीं देख सकती थी मैं| आखिर प्यार जो करती थी उससे। मैं उसके थोड़ा पास आयी और अपने बाहों में लेकर उसको ढांढस देना चाह रही थी। लेकिन परिणिता का शरीर अब मुझसे बहुत बड़ा हो गया था, उसको पूरी तरह पकड़ नहीं सकी जो मैं शरीर बदलने के पहले कर सकती थी। फिर न जाने कैसे मानो अपने आप ही मैंने परिणीता का सिर अपने सीने से लगा लिया और उसके सर पे हाथ फेरने लगी। बिलकुल एक नयी तरह की भावना थी वो जो शायद सिर्फ एक स्त्री अनुभव कर सकती है। परिणीता भी चुपचाप अपना सर मेरे स्तनों में छुपा ली। शायद वो भी कुछ पल के लिए ही सही प्यार महसूस कर रही थी। “हम जल्दी ही पता करेंगे परी की ये कैसे हुआ। सब ठीक हो जायेगा, आई प्रॉमिस”, मैंने कहा।
“कैसे होगा प्रतीक ? और कब तक होगा?”, परिणीता मुझसे बोली। “घबराओ मत, मेरी परी! आज संडे है। हमारे पास वक़्त है ये सब समझने के लिए। और वैसे भी किसी और को तो पता भी नहीं चलेगा की हम दोनों का शरीर बदल गया है। दुनिया की नज़रो में तो अब तुम प्रतीक और मैं परिणीता हूँ। हम कुछ न कुछ हल जल्दी निकाल लेंगे। ”
मैं यह सब बोल तो रही थी पर खुद इन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। और सच कहूँ तो यह बात कहते कहते खुद की आवाज़, एक मीठी सुरीली औरत की तरह सुन कर बहुत अजीब भी लग रहा था। यह आवाज़ तो परी की थी मेरी नहीं!
परिणीता ने अब अपना सर उठा कर मेरी ओर देखा। उसकी आँखों में एक उम्मीद थी कि सचमुच सब कुछ ठीक होगा। मैं भी उसकी आखों में देख कर बोली,” चलो पहले हम नहा कर तैयार होते है फिर सोचते है क्या करना है! मैं पहले नहाकर आता हूँ।”
“ठीक है, प्रतीक। जल्दी आना। अकेले बैठ कर इस बारे में सोचते हुए तो मैं पागल हो जाऊंगी। ” मेरी प्यारी परिणीता सचमुच परेशान थी।
मैं उठ कर बाथरूम की ओर बढ़ने लगी। न चाहते हुए भी अपने नए मोहक सुन्दर शरीर पर चलते हुए ध्यान चला ही गया था। पहले तो चलते हुए बहुत हल्का महसूस कर रही थी। मेरे छोटे छोटे क़दम भी बड़े मादक लग रहे थे। और उस खुली खुली सी नाईटी में चलते हुए मेरे स्तन जो उछल रहे थे, हाय! कैसे बताऊँ उस फीलिंग को! थोड़ा सा ध्यान देने पर ये एहसास की मेरी जांघो के बीच अब कुछ नहीं है और सॉफ्ट सी पैंटी मेरी नितम्ब से कस के लगी हुई है, मुझे उतावला करने लगा। बाथरूम बस २० कदम की दूरी पर था पर उन २० कदमो में जो अंग अंग का अनुभव था, बहुत ही मादक था। मेरे रोम रोम उत्तेजना से भर रहा था।
बाथरूम पहुच कर मैंने अपनी नाईटी उतारी। मेरे नए शरीर को मैं निहारने लगी। उफ़ मेरे स्तन में एक कसाव महसूस हो रहा था। बिलकुल वैसे ही जैसे परिणीता के साथ होता था जब वो कामोत्तेजित होती थी। मेरे निप्पल भी बड़े होकर तन गए थे। समझाना बहुत मुष्किल है पर मैं ही जानती हूँ की कैसे मैं अपने आपको अपने ही स्तनों को अपने हाथो से मसलने से रोकी हुई थी। मैं बाथरूम में ज्यादा समय नहीं लगाना चाहती थी क्योंकि बाहर परिणीता मेरा इंतज़ार कर रही थी। शावर में नहाने जाने से पहले मैंने पेंटी उतारी। उफ्फ, मेरी नयी स्मूथ त्वचा पर पेंटी तो जैसे मख्खन की तरह फिसल गयी। अब मेरे पैरों के बीच पुरुष लिंग की जगह स्त्री योनि थी। मेरा मन तो कामुक भावनाओं से मदमस्त हो रहा था। दिल तो किया योनि को हाथ लगा कर देखूँ कि कैसा लगता है। दिमाग कह रहा था कि शायद यह सपना है, सपना टूटने के पहले हाथ लगा कर जो मज़ा ले सकती हूँ ले लूँ। फिर भी किसी तरह मन को काबू में कर के मैं शावर में गयी।
पानी मेरे स्तनों पर पड़ रहा था। मैंने पहले अपने बालो पे शैम्पू लगाया और अपने उँगलियों से अपने लंबे बालों को धोने लगी। अब साबुन से तन तो धोने का वक़्त आ गया था। अब तो मुझे अपने नए शरीर को हाथ लगाना ही था। पहले अपने हाथो से साबुन मैंने अपने स्तनों पर लगाया। और न जाने कैसे अपनी उँगलियों से मैंने अपने निप्पल को ज़ोर से दबा दिया। जो कसक हुई और जो नशा मैंने महसूस किया, उसको काबू करने के लिए मैं अपने ही नाज़ुक होठो को अपने ही दांतो से काट गयी। किसी तरह रुक कर मैंने फिर पूरे शरीर पे साबुन लगाया। फिर हाथ से अपने शरीर को नहलाने लगी मैं। गरम बहते पानी में मेरी उँगलियाँ फिर मेरे स्तनों को छूती हुई मेरी नाभि की ओर बढ़ने लगी। नाभि पर कुछ देर उँगलियाँ घूमने के बाद मेरी ऊँगली निचे की ओर बढ़ने लगी। वहां जहाँ योनि होती है। दिमाग कह रहा था रुक जा रुक जा। पर उँगलियाँ तो मानो खुद ही बस योनि के अंदर जाने को आतुर थी और वो धीरे धीरे नीचे बढ़ती चली गयी और बिलकुल पास आ गयी।
मैं मानो मदहोश होती चली जा रही थी। मन पे काबू ही नहीं हो रहा था। आज भी उस दिन को याद करती हो तो रोम रोम में मानो करंट दौड़ पड़ता है। आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार करें! जल्दी ही लिखूंगी!

Comments

Popular posts from this blog

नेहा भाभी

“मेरे प्यारे देवरजी आ गए! देखो तो कितने लम्बे हो गए हो तुम!”, मेरी प्यारी नेहा भाभी ने मेरे आते ही मुझे गले लगा लिया| और मैं भी अपनी खुबसूरत भाभी को देखते ही उनसे गले लिपट गया| नेहा भाभी बेहद ही सुन्दर थी, वैसी ही जिनके बारे में लोग सपने देख कर न जाने कैसी कैसी कहानियां लिखते है| सुन्दर चेहरा, दुबला पतला छरहरा बदन, भरे हुए स्तन, लम्बे बाल, कोई भी कमी न थी उनमे| वो आज हरी रंग की साड़ी पहनी हुई थी, जिसमे भूरे रंग की बॉर्डर थी| उनके छोटे आस्तीन वाले मैचिंग ब्लाउज में उनकी काया तो बस मंत्र-मुग्ध कर रही थी| उनके मुलायम स्तन गले लगाने पर जिस तरह मेरे सीने पे महसूस हो रहे थे, उन्हें छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था| पर मेरी भाभी थी वो! और मुझे उनका सम्मान करना चाहिए| मैं १०वी की परीक्षा के बाद गर्मी की छुट्टी बीताने तनुज भैया और नेहा भाभी के घर अभी अभी पहुंचा था| तनुज भैया मुझे  स्टेशन लेने आये थे| मुझे उनके यहाँ छुट्टी बीताना बड़ा पसंद था| आखिर नेहा भाभी मुझे इतना प्यार जो देती थी| भैया और भाभी की शादी को २ साल ही हुए थे और उन दोनों में अब भी नए शादीशुदा दंपत्ति वाली चमक थी| कोई भी मेरी भा...

आंटी

कमरे में एक कैलेंडर टंगा हुआ था जिसमे साल १९९५ लिखा हुआ था| उस कमरे में किसी की हलचल की आवाज़ आ रही थी| वो लड़का बेहद गहरी नींद में था पर आवाज़ सुन उसकी नींद खुल गयी और वो बहुत घबरा गया| मम्मी पापा तो अगले दो दिन के लिए शहर से बाहर थे| तो कौन हो सकता था? सबसे ज्यादा डर तो उसे पकड़े जाने का था| किसी तरह हिम्मत करके उसने अपनी चादर से बाहर झाँका| एक ३५-४० साल की औरत उसके बिस्तर के सामने एक कुर्सी पे बैठी गृहशोभा मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी| उसने अपनी टाँगे एक पर एक रखी हुई थी जिस पर उसकी साड़ी की प्लेट उसकी कमर से होती हुई नीचे किसी फूल की तरह खिल कर खुल रही थी| उसने काफी ऊँची हील की सैंडल पहन कर रखी थी| ज़रूर कोई बाहर से आई है| लड़के ने सोचा क्योंकि उसके घर में किसी के पास भी ऐसी सैंडल नहीं थी| किसी भी १४ साल के लड़के को ऐसी औरत बेहद आकर्षक लग सकती है, उस लड़के को भी लगी| चादर से झांकते हुए उस औरत ने लड़के को  देख लिया था| आज तो वो पक्का पकड़ा जायेगा| एक अनजान ३५-४० वर्षीया औरत उस लड़के के बिस्तर के पास बैठी हुई थी| कोई भी १४ वर्ष का लड़का उनकी तरफ आकर्षित हो जाता| “तो तुम्हे औरतों की किताबें प...

Neha Bhabhi

“Oh my dear brother-in-law! Look how tall you have grown”, said my dear sister-in-law Neha, or Neha  bhabhi (sister-in-law) , as I used to call her. She hugged me, and I hugged her back as soon as I reached her home. Neha  bhabhi  was a sexy woman, the kind of woman people fancy about and write those special kind of stories. Beautiful face, slim figure, big bosom, long hair, she had it all. Today, she was wearing a green colored saree, with a light brown border. She had a mesmerizing effect on me as I looked at my sexy bhabhi in that matching blouse with short sleeves.  I could feel her soft breasts pressing against me, and I didn’t wanna release her from my hug yet. But she was my sister-in-law, I guess I should respect her, I thought. After completion of my Class 10 exams, I had decided to visit my elder brother Tanuj and his wife Neha at their home. Tanuj had come to pick me up at the station, and we had just arrived at his home. I loved spending my summer vaca...