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परिणीता भाग ४

तभी अचानक मेरे अंदर का पति जाग गया और बिना कुछ किये मैं झट से शावर से बाहर आ गयी। अपने लंबे काले गीले बालो को आदतन रगड़ रगड़ कर टॉवल से पोंछने लगी। पर जैसे मेरे हाथों का अपना खुद का दिमाग चल पड़ा और वो फिर धीमे धीमे टॉवल से दबा कर बालों को सुखाने लगे। और फिर सामने झुक कर झट से सर उठा कर मैंने बालों को झटक कर बाल सीधे किये। इस दौरान मेरे स्तन ज़ोर से हिल पड़े। एक औरत बनने की मादकता मुझ पर भारी पड़ रही थी। रह रह कर अपने नए शरीर से खेलने का मन कर रहा था। किसी तरह कुछ करके मैं बाहर निकली।
बाहर परिणीता अपने घुटनो को पकड़ कर उसमे सिर छुपाये उदास बैठी थी। मेरे लिए अजीब सी स्थिति थी। सामने परिणीता मेरे पुराने पुरुष शरीर में थी। मेरे बाहर आने की आवाज़ सुनकर उसने सिर उठाया और मेरी ओर देखा। उसकी वो आँखें तो मेरी थी पर उसमे गुस्सा परिणीता का साफ़ झलक रहा था जिसे देख कर मैं समझ गयी कि मैंने कुछ गलती कर दी है।
“प्रतीक!!!”, वो मुझ पर चीख पड़ी। “यह क्या तरीका है? तुम पागल हो गए हो! टॉवल कोई ऐसे ब्रेस्ट्स के निचे लपेटता है?जल्दी से ब्रेस्ट्स पर से लपेटो!”
मैंने अपने लड़के वाली आदत अनुसार कमर के निचे टॉवल लपेटा था। जल्द से मैंने अपने स्तनों को ढका। चूँकि मैंने अपना टॉवल उपयोग किया था, उसकी लंबाई थोड़ी छोटी थी और मेरी कमर के नीचे का हिस्सा अब दिख रहा था।
मैं आगे कुछ कह पाती उसके पहले ही परी मुझ पर भड़क पड़ी, ” यह क्या है? तुमने अपना लड़को वाला अंडरवियर पहन लिया है!”
“पर परी! मैं तुम्हारी पेंटी कैसे पहन सकता हूँ? तुम्हे पसंद नहीं कि मैं कोई भी लड़कियों वाले कपडे तुम्हारे सामने पहनू। “, मैंने ईमानदारी से जवाब दिया क्योंकि सचमुच परी को यह पसंद नहीं था।
“तुम भूल रहे हो कि तुम मेरे शरीर में हो! मेरे शरीर को मेरे कपडे पहनाओ!”
“तो क्या तुम भी अब मेरे लड़को वाले कपडे पहनोगी?”, मैंने पूछा।
“हाँ! मैं अपनी ड्रेसेस तुम्हारे शरीर पर चढ़ा कर निकलूंगी तो दुनिया तो हम पर हँसेगी ही और मेरी ड्रेसेस भी ख़राब हो जाएगी! क्या तुम्हारे पास ज़रा भी अक्ल नहीं है? और किसने तुम्हे मेरे बालों को धोने कहा था। मैंने कल ही तो धोये थे। और देखो कैसे तुमने उन्हें गूँथ दिया है। मैंने इतने प्यार से संभाल कर इन्हें लंबा किया और तुम इन्हें एक दिन में ख़राब कर दोगे।” परिणीता की बात तो सच थी। मुझे भी लग रहा था कि मुझे बालों को इस तरह रगड़ रगड़ कर नहीं पोंछना चाहिए था। पर मेरे पास औरत होने का अनुभव न था।
“चलो, अब जल्दी से सही कपडे पहनो।”, गुस्से में परिणीता बोली।
मैंने उसके ड्रावर से एक सुन्दर सी गुलाबी रंग की पेंटी और मैचिंग ब्रा निकाली। मुझे एक बात की ख़ुशी तो थी की मुझे झट से ब्रा पहनना आता था। छुप छुप कर ही सही पर आसानी से ब्रा पहनना सिख चुकी थी मैं। परिणिता ने मुझे ब्रा पेंटी पहनते देखा पर कुछ बोली नहीं। ब्रा और पेंटी मेरी स्मूथ त्वचा पर परफेक्ट फिट आ गयी। पहली बार मैं असली स्तनों पर ब्रा पहन रही थी। परफेक्ट फिट का कम्फर्ट मेरे स्तनों पर पहली बार महसूस की थी। अचानक ही मेरे दिमाग में कहीं से एक तस्वीर उभरी कि जैसे कोई मेरी ब्रा उतार कर मेरे स्तनों को होठो से चुम रहा है। मैंने अपना सिर हिलाया तो थोड़ा होश सा आया। मैं खुद को कमरे में लगे आईने में एक पल को देखि। मैं बहुत सेक्सी लग रही थी। क्योंकि परिणीता मुझे देख रही थी, मैं जल्दी से उसका क्लोसेट खोल कर कपडे ढूंढने लगी पहनने के लिए। मैं फिर किसी कारण से उसे नाराज़ नहीं करना चाहती थी।
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क्लोसेट खोलते ही एक तरफ मुझे उसकी सुन्दर महँगी साड़ियाँ दिखी। परी ने इन्हें मुश्किल से एक बार पहनी होगी या वो भी नहीं। मेरा उन्हें पहनने का बड़ा मन करता रहा है पर मैंने कभी उसकी साड़ियों को हाथ नहीं लगाया। आज तो जैसे मैं हक़ से इन साड़ियों को देख कर निहार रही थी। क्या आज एक पहन लूँ ? कौनसी पहनू? सच कहूँ तो मुझे पता था कि किस साड़ी पर मेरा पहले से दिल आया हुआ था। पर परिणीता के सामने मैं कुछ देर कंफ्यूज होने का नाटक करना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि उसे लगे कि हमारी इस नयी स्थिति में मैं बहुत खुश हूँ। मैं यह सब सोच ही रही थी कि परिणिता ने कहा, “आज दिवाली नहीं है कि आप साड़ी पहनो। मैंने एक ड्रेस निकाल कर रखी है कल रात से ही, आज पहनने के लिए। उसे पहन लेना। मैं नहाने जा रही हूँ। मेरे आते तक तैयार रहना| मुझे पता है तुम्हे ड्रेस पहनना आता ही होगा।
परिणीता इस बारे में गलत थी। मैं पारंपरिक भारतीय नारी के सामान थी, मुझे ड्रेस पहनने का ज्यादा अनुभव नहीं था। मैं ही जानती हूँ कि कितनी मुश्किल से मैंने ड्रेस में पीछे पीठ पर चेन चढ़ाई थी। परी ने साथ में एक पेंटीहोज भी रखी थी पहनने के लिए। यहाँ ठण्ड के दिनों में औरतें पैरो को ढकने के लिए पेंटीहोस पहनती है। स्मूथ पैरो पे पैंटीहोज पहनना बड़ा आसान था। मुझे बहुत ज़रुरत भी महसूस हो रही थी क्योंकि मुझे ठण्ड लग रही थी। घर का तापमान तो ठीक ही था पर पता नहीं क्यों आज ज्यादा ठण्ड लग रही थी और ऊपर से यह घुटनो तक की ड्रेस। पता नहीं परी ऐसे मौसम में भी क्यों छोटी लंबाई की ड्रेस पहनती है! मुझे मेरी अपनी हरी साड़ी याद आ गयी जो मैंने कल शाम को पहनी थी। ठण्ड में भी अच्छी गर्म थी वो और मैं ऊपर से निचे तक पूरी तरह उससे ढंकी हुई थी। कहीं से ठण्ड लगने का सवाल ही नहीं था।
अब मैंने एक मैचिंग स्वेटर भी निकाल कर पहन लिया था। और बस परी के बाथरूम से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगी। परी बहुत देर लगा रही थी। मुझे थोड़ी चिंता होने लगी थी। न जाने क्या बात हो गयी थी।

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