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देवदास भाग १

मेरी कहानी का नाम देवदास क्यों है? क्योंकि मेरी कहानी भी देवदास की तरह ट्रेजेडी से भरी हुई है. कम से कम मेरे लिए तो है ही. पर दूसरो के लिए किसी कॉमेडी से कम नहीं है!
बात कई साल पुरानी है जब मैं हाई स्कूल में था.
“यह क्या जंगली की तरह बाल बढ़ा रखे है?”, मेरे पापा ने मेरे घर आते ही मुझसे कहा. “जंगली की तरह नहीं लड़की की तरह.”, मैंने मन ही मन सोचा पर कहा कुछ नहीं. किसमें हिम्मत होती है पापा से जबान लडाने की!
“अब पीछे मत पड़ो मेरे बेटे के. आजकल का फैशन तुम्हे क्या पता”, मम्मी ने मेरी तरफ से कहा.
“फैशन? हमारे ज़माने में स्कूल में ही गुरूजी कैंची लेकर बाल काट देते थे. और इन्हें देखो आजकल चोटी बनाकर घूम रहे है”, पापा ने फिर कहा.
“हाँ हाँ आपके ज़माने के पहले भी एक ज़माना था जब लड़के गुरुकुल जाते थे. इतने लम्बे बाल होते थे उनके कि उन्हें जूडा बना कर रखना होता था. मेरा बेटा तो शरीफ लड़के की तरह पोनीटेल बनाकर रखता है.”, मम्मी ने कहा.
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पापा ने अब मम्मी से और बहस करना उचित न समझा. हाँ, मेरे काफी लम्बे बाल थे जिनको मैं पोनीटेल में रखता था. मुझे पोनीटेल बिलकुल पसंद नहीं थी. मुझे तो लड़कियों की तरह गुंथी हुई चोटी या फिर खुले बाल रखना पसंद था. लम्बे बाल किसी क्रॉस-ड्रेसर के लिए वरदान जैसे होते है. आईने के सामने अकेले में खुले बाल कर खुद में एक लड़की देखता था मैं! भला हो फैशन का, मुझे इस बहाने थोड़ी तो ख़ुशी मिलती थी.
मेरी मम्मी को मेरे लम्बे बाल बड़े पसंद थे. हफ्ते में एक बार मुझे बिठा कर अच्छे से तेल भी लगाती और कहती, “बड़े सुन्दर घने बाल है तेरे. तू मेरी बेटी होता तो सुन्दर सी चोटी बनाती मैं तेरे बालो की”. माँ को बेटी चाहिए थी पर किस्मत ने उन्हें बेटा दिया.
“नमस्ते भाईसाहब. कैसे है?”, तभी गुप्ता आंटी जी अपनी साड़ी का पल्लू लहराते घर में आ गयी. हमसे ३-४ घर छोड़ कर उनका घर था. आंटी जी मोटी तो न थी पर थोडा सा भरा हुआ लुभावना शरीर था उनका. बहुतो की नज़रे उनके बदन को देख कर खिल जाती थी. उनके सामने तो पापा भी ऐसे इंसान बन जाते जैसे उनसे ज्यादा खुशमिजाज़ कोई न हो इस दुनिया में.
“अरे नमस्ते भाभी जी. सब भगवन की कृपा है. आज आपके दर्शन का सौभाग्य कैसे मिला?”, पापा शुरू हो गए.
 
“अरे भाईसाहब १ हफ्ते के लिए अपनी माँ के यहाँ जा रही हूँ, अपनी बेटियों को लेकर.”, आंटी ने कहा और तभी उनकी दोनों बेटियाँ शिखा और दिव्या भी पीछे पीछे आ गयी. और मेरा दिल तो बड़ी बेटी शिखा पर था. वो मेरी ओर देख कर मुस्कुरायी और अपनी माँ के साथ जाकर बैठ गयी.
“अरे वाह भाभी. माँ के यहाँ १ हफ्ता. बड़ी किस्मत वाली है आप.”, मेरी माँ ने लगभग अपना दुखड़ा सुना दिया कि कैसे पापा की वजह से वो कभी अपनी माँ से मिलने नहीं जा पाती.
“हाँ वो तो हूँ. वैसे दिव्या के पापा भी तीन दिन के लिए दौरे पर बाहर जा रहे है. और घर खाली रहने वाला है. आपको तो पता है कि आजकल चोरी-चकारी का कितना डर रहता है. हो सके तो आपका बेटा मोनू घर में २ रात सोने को चला जाता तो अच्छा रहता. उसके बाद तो शिखा के पापा भी आ जायेंगे.”, आंटी ने कहा.
“अरे क्यों नहीं! इतनी सी बात! आप चाहे तो मोनू हफ्ते भर सो लेगा वहां. क्यों मोनू?” पापा ने तो मुझे यूँ ही भेंट कर दिया. शिखा वहां बैठी बैठी मंद मंद मुस्कुरा रही थी. अब कहना क्या है, बड़ी सुन्दर लग रही थी वो. जाने के लिए पूरी तरह सजधज कर जो थी वो.
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मेरी कहानी की पारो यानी शिखा जिससे मुझे प्यार था
“बहुत धन्यवाद, भाईसाहब. ये लो बेटा मोनू, घर की चाबी है. और बाहर के कमरे में तुम्हारे सोने के लिए चादर वगेरह रख दी है मैंने.”, आंटी ने कहा और फिर अपनी कमर मटकाते चल दी और उनके पीछे पीछे शिखा और दिव्या. पापा भी बड़े खुश लग रहे थे आंटी को देखकर, पर आंटी के जाते ही मम्मी का मूड ज़रा ख़राब सा हो  रहा था तो पापा ने चुप रहना ही मुनासिब समझा.
जल्दी ही रात हो गयी, और मेरा गुप्ता आंटी के यहाँ जाने का समय हो गया था. मैं तो जाने के लिए पहले से ही उतावला था. “माँ मैं सुबह जल्दी आऊँगा स्कूल जाने के लिए”, मैंने माँ से कहा. “अच्छा बेटा. कुछ गड़बड़ हो तो तुरंत फ़ोन लगा देना”, माँ ने कहा.
एक क्रॉस-ड्रेसर को अकेलेपन से ज्यादा क्या अच्छा लगता है? एक ऐसे घर में जा रहा था जहाँ पूरी रात मेरे पास प्राइवेसी होगी और मेरी उम्र की लड़की के कपडे. शिखा को देखता था तो मुझे कई बार समझ नहीं आता था की मुझे वो पसंद है या उसके गज़ब के टाइट चूड़ीदार सलवार सूट! शिखा वैसे तो मेरी बचपन की दोस्त थी पर बड़े होने पर बात थोड़ी अलग हो जाती है. तन मन में कुछ कुछ होने लगता है.
खैर मैं घर पहुंचा और पहुँचते ही शिखा के कमरे में चला गया. इस उम्मीद में की शिखा के सलवार सूट पहनूंगा. सोच कर ही अच्छा लग रहा था कि आज अपने लम्बे खुले बालों और चूड़ीदार में कितना हसीं लगूंगा मैं! किसी लड़की की तरह आईने के सामने खुद को देख कर शर्मऊंगा और मुस्कुराऊँगा.
पर फूटी किस्मत तो मैं पैदा होते ही लिखवा के आया था. शिखा की अलमारी में ताला लगा था जिसकी चाभी मेरे पास नहीं थी. साला घर में पहनने वाला फटीचर सूट तक नहीं रखा था बाहर! तभी मेरी नज़र दरवाज़े के पीछे पड़ी. शिखा का स्कूल यूनिफार्म वाला सूट टंगा हुआ था वहां. बोरिंग सा सूट था फिर भी जो मिला उससे खुश. मैंने ख़ुशी से अपनी पोनीटेल को खोलकर अपने बालो को लहराया जैसे अब बस सजने सँवरने को तैयार हूँ मैं. पर मैंने शुरू से ही कहा था कि मेरी कहानी ट्रेजेडी वाली है. शिखा मेरी हमउम्र तो थी पर मैं आकार में उससे बड़ा था. उस सूट में घुन्सने के चक्कर में उस सूट के चिथडे उड़ जाते. अब क्या करे? अपनी किस्मत को मैं कोसने लगा.
आईडिया! गुप्ता आंटी! आंटी जी तो थोड़ी मोटी भी है. उनके कपडे तो मुझे आ ही जायेंगे. थोड़ी उम्मीद मन में जगी और मैं तुरंत उनके कमरे की और दौड़ा. लो! यहाँ भी अलमारी लॉक! पर मेरी किस्मत को उस दिन कुछ और ही मंज़ूर था. आंटी जी की एक गुलाबी सफ़ेद रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज बाहर रखा हुआ था. और ख़ुशी में मैं फटाफट से ब्लाउज को पहनकर देखने लगा कि मैं उसमे आ पाऊँगा या नहीं! और मेरी किस्मत देखो, वो ब्लाउज फिट आ गया! फिर मैंने आंटी की साड़ी को अपने हाथों में पकड़ा. उफ्फ, मेरे तन मन में तो रौंगटे खड़े हो गए. और साथ में कुछ और भी! टीनएज में आखिर हॉर्मोन तेज़ी से दौड़ते है!
साड़ी पहनना आता तो नहीं था मुझे पर मेरे पास समय की कमी भी नहीं  थी. करीब २ घंटे की मेहनत के बाद, साड़ी ठीक ठाक बांध ही ली मैंने! ब्लाउज मे एक छोटा तौलिया भर कर मैं खुले बालो के साथ अब खुद को आईने में देख शर्माने लगा. पता नहीं किस्से शर्मा रहा था. पर मज़ा बहुत आ रहा था. अब आंटी के ड्रेसिंग टेबल से कुछ क्लिप उठा कर मैंने अपने बालो में लगायी और फिर होंठो पर लिपस्टिक और माथे पर सुहागनों वाली लाल बिंदी! टेबल पर आंटी की ७-८ कांच की चूड़ियाँ भी थी. अब भला मैं खुद को चूड़ियों से कैसे दूर रखता? अपने हाथो में चूड़ियां देख कितना खुश हुआ था मैं! खुद को आईने में दिख इठलाने लगी मैं! गुप्ता आंटी से ज्यादा हॉट लग रहा था मैं. इस वक़्त तक करीब रात के १२:३० बज गए थे.
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२ पल हुए थे साड़ी पहने और इतने जल्दी मेरा दिल ही टूट गया
अपनी साड़ी को लहराते हुए मैं शिखा के कमरे में ख़ुशी ख़ुशी आ गया. पहली बार साड़ी पहना था तो मेरी ख़ुशी का अंदाज़ा लगा लो आप. तभी वहां टेबल पर मेरी नज़र एक कागज़ पर पड़ी. शिखा ने उस पर कुछ लिख रखा था. किसी चिट्ठी की तरह था वो. और उस पर सबसे पहली लाइन लिखी हुई थी. “जाने कब देखेगा वो मेरी तरफ. कैसे बताऊँ उसे कि मुझे कितना प्यार है उससे.” लो! २ पल की तो ख़ुशी मिली थी अभी साड़ी पहन कर,  और मेरी कहानी की पारो मतलब शिखा किसी और के प्यार में थी! मैं एक जगह बैठकर चिट्ठी पढने लगा यह जानने के लिए कि किस्से प्यार करती है वो. पहले पन्ने पर उसने सिर्फ अपने दिल को बयान किया था पर लड़के का नाम कहीं नहीं लिखा था. पन्ने पर आखिरी लाइन थी, “आज मैं उससे …” मुझे लग रहा था कि अब अगले पन्ने पर तो पता चल ही जाएगा. टूटते हुए दिल के साथ मैंने पन्ना पलटा.
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मेरी किस्मत को थोडा सा फूटना और बाकी रह गया था. और फोन भी डेड था!
पर मेरी फूटी किस्मत को थोडा और फूटना बाकी था. मुझे कुछ खटपट सुनाई दी. मेरा ध्यान उधर चला गया. और कुछ ही पल में बाहर के दरवाज़े का ताला टूट कर गिरने की आवाज़ सुनाई दी. लो भाई! घर में चोर उचक्के आ गए थे. और मैं साड़ी पहन कर लिपस्टिक लगाकर सज धजकर बैठा हुआ था! अब बस यही बाकी रह गया था. मैंने तुरंत कमरे की लाइट बंद किया. किस्मत से मैं अन्दर के कमरे में था जो मुझे छुपने का मौका तो मिला. और शुक्र था कि उस कमरे में फोन भी था. चोर बाहर अभी भी दरवाज़ा खोल रहे थे. मैंने धीरे धीरे आगे बढ़ कर फोन उठाया कि माँ को बता दूं यहाँ क्या हो रहा है. पापा और मम्मी आयेंगे तो वो मुझे साड़ी में देख लेंगे आज पर कम से कम जान तो बचेगी! और मैंने फोन उठाया. पर मैंने आपको अपनी किस्मत के बारे में तो पहले ही बताया था. चोर बड़े शातिर थे. उन्होंने फोन की लाइन पहले ही काट दी थी. मैं अपनी किस्मत पे रोता उसके पहले ही चरर्र की आवाज़ के साथ अब बाहर का दरवाज़ा खुल गया था. मैं निचे झुककर छुपने लगा. ऐसा लगा जैसे करीब ३ लोग घर के अन्दर आ गए थे.
“तुम दोनों हर कमरे में देख कर आओ कि कोई घर पे है तो नहीं.”, एक आवाज़ सुनाई पड़ी. अब मेरे पास बस एक ही चारा था कि मैं बिस्तर के निचे घुसकर छुप जाऊं जब तक वो चोरी करके निकल नहीं लेते. और संभलकर मैं बिस्तर के निचे पहुच ही गया था. थोड़ी जान में जान आई और मैंने खुद को शाबाशी देते हुए अपने सीने पर हाथ रखा. किसी डरी हुई औरत की तरह. बस वहीँ गलती हो गयी और मेरे हाथो की चूड़ियां खनक उठी. चोरो के कान में वो आवाज़ जा चुकी थी. और तीनो मेरे कमरे में आ गए. “चुपचाप बाहर आ जाओ”, एक चोर ने कहा.
मरता क्या न करता. मेरे हाथ में बिस्तर के निचे रखा एक बक्सा आया. मैंने उसे पकड़ा और बाहर निकल कर चीख पड़ा, “मेरे पास मत आना”. डर में न मेरी आवाज़ लड़के की तरह बुलंद थी और न ही लड़कियों की तरह कोमल. पता नहीं क्या थी वो. ३ चोरो के सामने एक औरत खड़ी थी. मेरी आवाज़ से उनको पता न चला कि मैं लड़का हूँ. और तुरंत एक चोर ने आगे बढ़ कर मेरा मुंह पकड़ लिया और झट से मेरे मुंह पर पट्टी बाँध दी. “ज्यादा छटपटाओ मत मैडम. और चीखने की कोशिश मत करना.”, चोर मुझे औरत समझ रहे थे और मैं उन तीनो की गिरफ्त से छूटने की कोशिश करने लगा. एक ने तो अपना सर पिट लिया. मुझे ज़बरदस्ती कुर्सी पर बैठकर उन्होंने मेरे हाथ पैर भी बाँध दिए. और उनको शायद अब चोरी करना ठीक न लगा और वो मुझे वैसा ही छोड़कर निकल लिए.
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किस्मत भी देखो, चोरो ने मुझे औरत के रूप में ही बाँध दिया!
अब बस मुझे सुबह होने का इंतज़ार करना था. जब कोई मुझे देखने आएगा और मुझे आज़ाद करेगा. पर फिर सबको पता चल जायेगा कि मैं एक क्रॉस-ड्रेसर हूँ! अब क्या करूं मैं? पूरी रात मैं अपने हाथ पैर की रस्सी छुड़ाने की कोशिश करता रहा पर नाकाम रहा और अंत में कुर्सी से नीचे गिरकर असहाय फर्श पर पड़ा रहा. पहली बार साड़ी पहनने का मौका मिला और यह हाल हुआ मेरा. अब जो होगा सो होगा और मैं सुबह होने का इंतज़ार करता रहा! इसको कहते है फूटी किस्मत!
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अगली सुबह माँ चिंता में आ गयी. घर से बाहर निकल कर मेरे आने का इंतज़ार करने लगी. मेरे स्कूल जाने का समय हो रहा था. “क्या हुआ आंटी?”, बगल वाली निर्मला भाभी ने मम्मी से पूछा.
“अरे पता नहीं मोनू अब तक गुप्ता आंटी के यहाँ से आया कैसे नहीं. कल उनके यहाँ सोने गया हुआ था. कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गयी.”
“चिंता मत करो आंटी. वो आज ज्यादा देर सोता रह गया होगा. मैं देख कर आती हूँ.”, निर्मला भाभी ने कहा.
निर्मला भाभी जब गुप्ता आंटी के घर आई तो दरवाज़ा खुला हुआ था और मैं निचे फर्श में बंधा पड़ा था. भाभी ने टुटा ताला देखा और तुरंत अन्दर दौड़कर आई. “मोनू, कहाँ है तू?”
मैंने ज़रा हाथ पैर हिलाकर कुर्सी को धकेल कर आवाज़ की तो भाभी मेरी तरफ दौड़ी आई और तुरंत मेरे मुंह की पट्टी खोलने लगी. “हे भगवन! कैसे चोर थे यह! और तुझे साड़ी पहनाकर क्यों चले गए वो? कैसे कैसे लोग हो गए है इस दुनिया में!”, भाभी ने चिंतित स्वर में कहा.
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और सुबह निर्मला भाभी मुझे छुड़ाने आई.
“हाँ भाभी. चोरो ने किया है यह!”, बचने का अब बस यही रास्ता था. भाभी ने रस्सी खोली और मुझे लेकर घर जाने लगी. “भाभी कपडे बदल लेने दो. ऐसे कैसे जाऊँगा मैं?”, मैंने कहा. “अरे तेरी माँ वैसे भी इधर आ ही रही है. चल ऐसे ही. घर में पहले थोडा आराम से बैठ कर पानी पि लेना.”, भाभी ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे ले चली.
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घर में भाभी ने सबको पूरी बात बताई
तो यह थी औरत के रूप में मेरी पहली आउटिंग. मुझे थोड़ी शर्म तो आ रही थी पर मेरे पास अब अच्छी कहानी थी कि चोरो ने ऐसा किया मेरे साथ. घर पहुचते ही भाभी ने मम्मी पापा को सब बात बता दी. माँ मुझे एक जगह बिठाकर मुझे चाय पानी देने लगी और पापा पुलिस को फोन लगाने लगे. मैंने सोचा थोड़ी देर शान्ति से नाश्ता कर लू, इस बहाने आज़ादी से कुछ देर साड़ी तो पहन लूँगा बिना किसी शर्म के. थोडा डरे सहमे होने का नाटक तो करना था मुझे पर अन्दर ही अन्दर थोड़ी ख़ुशी भी थी. किसी को भी मुझे देख कर लगता की घबरायी हुई औरत है. खैर, मुझे इस रूप में सिर्फ मम्मी पापा और भाभी ने ही देखा था.
अब वो न जाने कौनसी घडी थी कि उस दिन फोन के १५ मिनट के अन्दर घर तक पुलिस भी आ गयी. मैं तो अब तक साड़ी, चूड़ी और मेकअप के साथ बस नाश्ता ही कर रहा था. और इंस्पेक्टर साहब मुझसे सवाल जवाब भी करने आ गए. “ओहो देखो तो बेचारे लड़के को किसी औरत की तरह बना दिया है. कितना बुरा हुआ है बेटा तुम्हारे साथ!”, इंस्पेक्टर साहब सहानुभूति जताने लगे. अब तो मुझे सच में शर्म आने लगी थी.
पर किस्मत को थोडा और फूटना बाकी था! इंस्पेक्टर साहब का सवाल जवाब चल ही रहा था कि एक न्यूज़ रिपोर्टर अपने साथ फोटोग्राफर लिए आ गया. और उस फोटो और इंटरव्यू के साथ मैं शहर के हर अखबार में साड़ी पहने सबसे पहले पन्ने पर था. एक बार साड़ी पहनने पर इतनी पब्लिसिटी मल्लिका शेरावत या सनी लियॉन को भी न मिली होगी जितनी मुझे मिली. अब दोबारा कभी साड़ी नहीं पहनूंगा, मैंने सोच लिया था.
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घर में पुलिस और न्यूज़ रिपोर्टर भी आ गए मेरी कहानी सुनने. मैं अब सनी लियॉन से ज्यादा फेमस होने वाला था!
मेरी दुःख भरी हालत देख कर पुलिस भी हरकत में आ गयी और २४ घंटे के अन्दर चोरो को पकड़ ले आई. उनको पीटते हुए मुझसे शिनाख्त भी करवाई. “साले लड़के को लड़की के कपडे पहनायेगा. बड़ा मेकअप करने का शौक है तुझे?”, इंस्पेक्टर साहब ने कहा और उन तीनो पर डंडा बरसाने लगे. और तीनो चोर हतप्रभ कि उन्होंने कब किसी लड़के को लड़की बनाया.
अगले ही दिन गुप्ता आंटी भी खबर सुनकर वापस आ गयी. वो हमारे घर आई और मेरे पास आकर बोली, “मोनू बेटा. तुम ठीक तो हो न?”
“हाँ आंटी. बिलकुल ठीक हूँ.”, मैंने कहा.
“मैं बहुत क्षमा चाहती हूँ भाईसाहब. मेरी वजह से यह परेशानी उठानी पड़ी आप लोगो को”, आंटी ने पापा से कहा.
“अरे इसमें आपकी गलती कहाँ है. वैसे भी सब ठीक है. मोनू को कोई चोट नहीं लगी है. और आपके घर से कोई सामान भी नहीं गया.”, पापा ने आंटी को समझाया.
आंटी के साथ आई शिखा खिलखिला कर हँस रही थी. एक तो वैसे ही वो किसी और से प्यार करती है और मुझ पर हँस रही है. मैं चुपचाप अपने कमरे में चला गया. पर वो बेशर्म की तरह हँसते हुए मेरे पीछे आ गयी.
“तू मुझ पर हँस रही है? भाग जा यहाँ से”, मैं उससे पहले ही नाराज़ था.
“अरे मैं तुझ पर नहीं हँस रही. मैं तो बाकी लोगो पर हँस रही हूँ. आखिर तूने इतने सारे लोगो को कैसे समझा दिया कि तुझे चोर साड़ी और मेकअप पहना कर गए है” शिखा बोली.
“तुझे लग रहा है मैं झूठ बोल रहा हूँ?”, मैंने कहा.
“और नहीं तो क्या? कौनसा चोर होगा जो भागने की जल्दी में होगा पर तुझे पहले साड़ी पहनायेगा, चूड़ी पहनायेगा, बाल संवारेगा और तेरे मुंह से पट्टी हटाकर लिपस्टिक भी लगाएगा! मैं तो नहीं मानती!”, शिखा ने कहा.
“तू निकल ले यहाँ से! जा उसके पास जिससे प्यार करती है!”, मैंने गुस्से में कहा.
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मैं शिखा की बात सुन बस हथप्रभ बैठा रह गया
“जा रही हूँ. पर सच मैं जानती हूँ. तू मुझे बेवकूफ नहीं बना सकता. वैसे मैं उसी के पास आई थी जिससे प्यार करती हूँ. पर अब मैं जा रही हूँ.”, शिखा ने कहा.
उसने जाते जाते पीछे पलट कर मुस्कुरायी और अपने कंधे पर लटकते दुपट्टे को ठीक करते हुए निकल गयी. और मैं उसके मुस्कुराते चेहरे और उसकी आखरी बात “उसी के पास आई थी जिससे प्यार करती हूँ” की गूंज में हथप्रभ रह गया.
शिखा, मेरे जीवन की देवदास वाली ट्रेजेडी की पारो थी, जिसे मैं बेहद प्यार करता था.
क्रमशः

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