एक हफ्ते बाद
“निशांत, अब जागो भी. तुम्हे ऑफिस के लिए देर हो रही है”, चेतना, मेरे जीवन में नई नई आई हुई इस खुबसूरत सी लड़की ने मुझे सुबह सुबह जगाते हुए कहा. मैंने धीरे से अपनी आँखें खोल कर देखा तो चेतना का खुबसूरत चेहरा मेरे सामने था, जो झुक कर मुझे जगाने की कोशिश कर रही थी. कितनी दमक रही थी वो सुबह की सूरज की रौशनी में, और उसके लम्बे बाल मेरे चेहरे के पास तक लटक रहे थे. नाईटी में चेतना का खुबसूरत चेहरा देख कर मुझे अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हुआ और मैं ख़ुशी से मुस्कुराने लगा. इससे अच्छा कोई तरीका हो सकता था भला दिन की शुरुआत करने का?
“हाय! कौन कमबख्त ऑफिस जाना चाहता है …”, मैंने उसे प्यार से अपनी बांहों में खिंच लिया ” … जब मैं इतनी खुबसूरत औरत के साथ यहाँ समय बिता सकता हूँ”. अब मुस्कुराने की उसकी बारी थी. उसने मेरी बांहों से बाहर आने को कोशिश भी नहीं की, बल्कि खुद मुझमे समा गयी. उसके नर्म मुलायम स्तन मेरे सीने से लगकर दबे जा रहे थे. आपको तो पता चल ही गया होगा कि पिछले एक हफ्ते में हम दोनों के बीच काफी कुछ बदल गया था.
“निशु, प्लीज़ मुझे जाने दो!”, चेतना ने प्यार से कहा. कुछ दिनों से उसने मुझे प्यार से निशु कहना शुरू कर दिया था. मुझे भी सुन कर बहुत अच्छा लगता था. आखिर हम दोनों को प्यार जो हो रहा था. “ऐसे कैसे जाने दू, जानू?”, मैंने भी मासूमियत से कहा. उसके पास जवाब नहीं था. उसने अपनी नज़रे झुका ली और मेरे सीने की ओर देख कर शर्म से मुस्कुराने लगी. मेरी बांहों में उसे भी अच्छा जो लग रहा था.
“निशु, मुझे तुमसे कुछ कहना है”, उसने कहा. वो मेरे गले में लगे लॉकेट से अपनी नाज़ुक उँगलियों से खेलते हुए बहुत प्यारी लग रही थी. “क्या बात है चेतना?”, मैं पूछा.
“पता है हमें साथ में सोते हुए एक हफ्ते हो चुके है. मुझे तुमसे गले लग कर सोना सचमुच बहुत अच्छा लगता है. जब तुम मुझे प्यार से गले लगते हो, मुझे बहुत प्यार महसूस होता है. और हमारा साथ में बिताया हुआ समय चाहे हमारी रोज़ की शाम हो या सुबह, सब कुछ सुहावना लगता है. पर हमने वो चीज़ नहीं की जो उस रात…”, वो कहते कहते रुक गयी. “कौनसी चीज़ चेतना?”, मुझे पता था वो क्या कहना चाहती थी, पर मैं झूठ मुठ का नाटक कर रहा था. “तुम्हे पता है मैं क्या कह रही हूँ!”, उसने उत्साह में कहा. “नहीं तो?”, मैं यूँ ही उसे परेशान करता रहा.
“कितने झूठे हो तुम!”, उसने कहा और अपनी हाथो की मुट्ठी से प्यार से मेरे सीने पर चोट की, जैसे कोई नाज़ुक औरत करती है. हाय! क्या अदा थी उसकी! मेरी चेतना किसी भी औरत से कहीं ज्यादा औरत की तरह थी. ख़ास तौर पर मॉडर्न लड़कियों से तो ज्यादा ही. आजकल की लड़कियां अपने स्त्रीत्व को कम महत्व देती है और उन्होंने पुरुषो के गुण अपना लिए है जैसे मानो कोई अच्छी बात हो. पर मेरी चेतना वैसी नहीं थी. उसको स्त्रीत्व सालो के इंतज़ार के बाद मिला था. सालो बाद आज किसी ने उसे स्त्री के रूप में स्वीकार किया था, यह बात वो भूली नहीं थी. इसलिए वो कभी भी अपनी नजाकत ऐसे छोडती नहीं थी. सचमुच बेहद मोहक अदा वाली थी मेरी चेतना!
“निशु, मुझे कहने को मजबूर न करो”, उसने झूठ मुठ के गुस्से में कहा. “मैं बस इतना कहना चाहती हूँ कि अब मैं उस चीज़ के लिए तैयार हूँ”, उसने आगे कहा. “किस चीज़ के लिए तैयार हो तुम, चेतना?”, मैं यूँ ही नाटक करता रहा उसे छेड़ने के लिए. उसने नाटक करते हुए मेरी बांहों से निकलना चाहा पर मैं ऐसे थोड़ी जाने देता उसे. उसने फिर कहा, “ठीक है, तुम जिद करते हो तो तुमको एक हिंट देती हूँ”, यह बोलकर उसने मुझे एक प्यार भरा चुम्बन दिया. उसके नर्म होंठो के किस में मानो मुझमे गर्माहट आ गयी और मैंने भी जवाब से उतने ही प्यार से उसे चुम्बन दिया. पर फिर हम दोनों रुक गए. मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया.
वो फिर मेरी आँखों में देख कर मुस्कुराने लगी. “आज जब तुम ऑफिस से वापस आओगे मैं यहाँ तैयार रहूंगी. बस इतना बता दो कि मैं वो अनारकली सूट पहनू जो हमने साथ ख़रीदे थे या तुम मुझे साड़ी में देखना पसंद करोगे?”
मैंने कुछ देर सोचा और फिर कहा, “हम्म … तुम्हे कभी अनारकली में तो देखा नहीं है मैंने पर मेरे लिए तुम्हारी साड़ी उठा कर झट से तुम्हारे अन्दर जाना आसान होगा! तुम समझ रही हो?”, मैंने थोड़ी अश्लील सी मुस्कान दी.
“ईइश्श्श … गंदे हो तुम बहुत!”, उसने मेरी बांहों से निकलते हुए कहा. मैं इस बार उसे जाने दिया. उसे जाते देख मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था. “मैं तुम्हे sms भेजूंगी जब मैं तैयार हो जाऊंगी शाम को. तब तुम घर आ जाना. इंतज़ार करूंगी तुम्हारा.”, उसने मोहक सी मुस्कान के साथ कहा और बाथरूम की ओर हिरणी की तरह कमर लचकाते हुए चल दी. मैं तो बस उसकी ओर हसरत भरी निगाहों से देखता ही रह गया.
SMS हमारा तरीका था ताकि जब मैं घर पहुचू तो घर पर चेतन नहीं, मुझे मेरी प्यारी चेतना मिले. चेतना को तैयार होने में थोडा समय जो लगता था. चेतना ने मेरा जीवन बदल दिया था, अब सब कुछ बहुत सुन्दर हो गया था. हर शाम हमारा समय बहुत सुन्दर होता, हम बातें करते, खाना खाते, और साथ में टीवी देखते. हम सब कुछ करते थे बस शारीरिक सम्बन्ध को छोड़कर. हमने पहली रात के बाद दोबारा सेक्स नहीं किया था. हमने निश्चय किया था कि जब तक अपने के दिल की बात नहीं समझ लेते, हम सेक्स नहीं करेंगे. सच कहूं तो यह समय बहुत मददगार रहा था खुद के दिल की भावनाओं को समझने में. पहले तो मैं चेतना के प्रति कुछ महसूस नहीं करना चाहता था, क्योंकि मेरी नजरो में कहीं न कहीं वो मेरा दोस्त चेतन थी, पर धीरे धीरे एहसास हुआ कि वो एक खुबसूरत औरत थी, इतनी खुबसूरत जितनी पहले कभी मुझे मिली नहीं कोई. और पिछले हफ्ते में हम दोनों में लगाव बढ़ता जा रहा था. हम दोनों में प्यार हो गया था. और अब मैं शाम का इंतज़ार नहीं कर पा रहा था जब हम दोनों तन से जुड़ जायेंगे.
उस दिन ऑफिस में, चेतन और मैं लंच के लिए मिले. जब से हमने जॉब शुरू की थी, तभी से हम अक्सर लंच साथ ही करते थे. और कभी कभी हमारा साथी रोहित भी हमारे साथ आ जाता था. उस दिन चेतन और मैं बहुत खुश लग रहे थे और रोहित ने ये नोटिस कर लिया था.
“क्या बात है दोस्तों? तुम दोनों इतने खुश? कोई लड़की वगेरह मिल गयी है क्या? और वो भी तुम दोनों को एक साथ?”, रोहित ने पूछा.
“रोहित! तुझे कैसे पता चल गया? तू शायद सही है. मुझे लगता है कि मुझे मेरे जीवन में लड़की मिल गयी है.”, मैंने कहा.
“शायद मिल गयी है? इसका क्या मतलब हुआ?”, रोहित ने पूछा. “इसका मतलब ये है कि अभी कुछ कहना जल्दी होगी. अभी मेरे और उसके बीच सब ठीक चल रहा है पर पता नहीं आगे क्या होता है. समय ही बताएगा कि यह रिश्ता आगे बढ़ता है या नहीं”, मैं चेतन की ओर देख कर मुस्कुराते हुए कहा.
“अच्छा तो यह बात है. और चेतन, तू बता? तेरी ख़ुशी का राज़ कौनसी लड़की है?”, रोहित ने चेतन से पूछा.
“अरे कोई लड़की वगेरह नहीं है यार. मैं तो बस ऐसे ही खुश हूँ. अपने जीवन में तो गिटार बजाकर ही ख़ुशी है.”, चेतन ने कहा. चेतन गिटारिस्ट था और उसे गिटार बजाना वैसे ही बहुत पसंद था.
“मुझे तो यकीन नहीं हो रहा कि तुम दोनों में निशांत को लड़की पहले मिल गयी. मुझे तो लगता था कि यह रॉक स्टार चेतन पहले लड़की पटायेगा”, सभी की तरह रोहित भी यही सोचता था. उसे क्या पता था कि चेतन को गर्लफ्रेंड न मिली हो पर वो खुद कितनी कमाल की गर्लफ्रेंड बन सकता है!
“वैसे निशांत, यह लड़की कहीं हमारे HR डिपार्टमेंट की सपना तो नहीं है न?”, रोहित ने पूछा.
“नहीं भाई, वो सपना नहीं है. पर वो जो भी है, उसे और मुझे थोडा समय चाहिए अपने रिश्ते को समझने के लिए”, मैं थोडा अनमने मन से कहा.
लंच के बाद, मैं अपनी डेस्क पर आ गया. काम पर मन नहीं लग रहा था. मेरे दिमाग में तो चेतना बसी हुई थी. बस यही सोच रहा था कि कैसे कब घर पहुचूँ और चेतना को अपनी बांहों में ले लू. मैं पल पल घडी देखता रहा और फ़ोन पर SMS का इंतज़ार करता रहा. पर शाम हो ही न रही थी. समय जैसे ठहर सा गया था. कई घंटो के इंतज़ार के बाद मेरे फ़ोन पे आवाज़ हुई. करीब ६:३० बजे SMS आया, “घर आ जाओ. मैं तैयार हूँ – तुम्हारी C.” मैं तुरंत घर की ओर निकल पड़ा.
मुझे ट्रैफिक की वजह से घर पहुचने में थोड़ी देर हो गई थी. मैं दौड़ा दौड़ा घर के दरवाज़े तक पंहुचा. आखिर जिस औरत से प्यार हुआ था वो मेरा इंतज़ार कर रही थी. मैंने दरवाज़े पर घंटी बजायी. मुझे चेतना के कदमो की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी, वो दौड़े दौड़े दरवाज़ा खोलने के लिए आई. और जैसे ही दरवाज़ा खुला, मेरी प्यारी चेतना मेरी आँखों के सामने थी. वो सेक्सी और प्यारी दोनों ही लग रही थी. उसने मेरी इच्छा के अनुसार साड़ी पहनी थी. कुछ दिन पहले हमने मेरी चॉइस से साथ ही खरीदी थी चेतना के लिए. उसने बिलकुल बराबर सलीके से प्लेट बनाकर अपने कंधे पर ब्लाउज से पिन लगायी हुई थी. बिल्ल्कुल परफेक्ट. और उसकी साड़ी की बॉर्डर उसकी दाई निप्पल पर से जा रही थी. जिससे उसका गोल भरा हुआ स्तन बेहद आकर्षक लग रहा था. उसका टाइट ब्लाउज गोल कटोरी वाला सचमुच सेक्सी था. मैं शब्दों में बता नहीं सकता कि मैं कैसा अनुभव कर रहा था चेतना को देख कर. आज मेकअप लगा कर उसके चेहरे पे लाली बहुत सुन्दर लग रही थी. और उसे भरे हुए रसीले होंठ गुलाबी लिपस्टिक में मानो मुझे चूमने को आतुर थे. और उसकी गहरी नशीली आँखों में तो बस डूब जाने का दिल हो आया था मेरा. काजल लगे हुए कजरारे नैन तो मुझे नशे में सराबोर कर रहे थे. दुनिया की सबसे खुबसूरत औरत मेरी ओर देख कर मुस्कुरा रही थी. उसके कानो के झुमके उसके नाज़ुक कानो पर चमक रहे थे, और उसकी प्यारी नाज़ुक कलाईयों पर अनगिनत चूड़ियां, हाय! मेरी चेतना मेरे लिए कितने प्यार से सजधज कर खड़ी थी. सिर्फ मेरे लिए!मुझे तो सोच कर ही अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था.

“कितनी देर लगा दी निशु? तुमको पता है कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ?”, मेरी हुस्न्परी ने कहा. “जितना बेसब्री से मैंने किया, उससे ज्यादा तो नहीं की होगी तुम”, मैंने कहा और उसे कमर से पकड़ कर अपनी बांहों में खिंच लिया. मैंने दरवाज़ा अपने पीछे बंद कर दिया. चेतना किसी हाउसवाइफ की तरह शिकायत करना चाहती थी. “निशु, तुमको पता है मैं…”, मैंने उसके कुछ कहने के पहले ही उसकी बात को रोकते हुए उसके होंठो पर अपनी ऊँगली रख दी. “श्श्श … कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है जानू”, मैंने धीमी आवाज़ में कहा.
चेतना मेरी मजबूत बांहों में लटक कर मेरी आँखों में हतप्रभ एक टक देखती रह गयी. मैं उसके होंठो को अपनी ऊँगली से छूकर उसे एहसास कराया की हम कितने करीब है. हम दोनों के दिल इतने करीब होकर तेज़ी से धड़कने लगे थे. मेरी चेतना मेरी बांहों में और अधिक खुबसूरत लग रही थी. हम दोनों बिलकुल चुप एक दुसरे की आँखों में खो गये थे. चेतना ने उस चुप्पी को तोड़ते हुए कहा, “निशु, एक बात पूछू? आज तुमने दोपहर में रोहित से जो कहा उस बारे में. क्या मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूँ?” कितना प्यारा सवाल था वो. और कितनी मासूमियत से पूछा था चेतना ने मुझसे. “हाँ चेतना, तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो. तुम दुनिया के सबसे खुबसूरत औरत हो और मैं बहुत ही किस्मत वाला हूँ जो तुम मुझे मिल गयी”, मैंने जवाब दिया.
मेरे जवाब से चेतना की आँखों में ख़ुशी की चमक आ गयी. मैंने उसे अपने और करीब खिंच लिया. उसकी नर्म साड़ी और अनगिनत चूड़ियाँ खनकने लगी. उसकी साँसे और गहरी होती जा रही थी. हर सांस के साथ उसके स्तन फूलते और मेरे सीने से लग जाते. उसके होंठ भी मेरे होंठो के करीब आ चुके थे. चेतना के होठ आतुरता में कंपकंपा रहे थे. मैंने उसे और इंतज़ार न कराते हुए एक गहरा चुम्बन दिया. शायद १ मिनट तक मैं उसके होंठो को चूमता रहा और फिर धीरे से मैं उसके होंठो को छोड़ दिया. चेतना की आँखें अब भी बंद थी जैसे मेरे चुम्बन को अब तक अपने होंठो पर अनुभव कर रही थी. हमारे पहले किस की तरह ये भी जादुई किस था. चेतना को देख कर लग रहा था कि अब वो मेरी तरफ पूरी तरह समर्पित हो गयी थी.
“चेतना”, मैंने उसके बालो पर अपनी उँगलियों को फेरते हुए कहा, “मुझे तुम्हारे साथ बिताया हुआ एक एक पल कीमती लगता है. और अब मैं हमारे रिश्ते को अगले कदम की ओर बढ़ाना चाहता हूँ. मैं तुम्हे प्रेशर नहीं करना चाहता पर क्या मैं तुम्हे अपनी प्रेयसी की तरह तुम्हारे तन को छूकर प्यार कर सकता हूँ?” मैंने चेतना से सेक्स के लिए पूछा. मैं चेतना को इज्ज़त देते हुए उसकी इच्छा जानना चाहता था. और उसकी आँखों ने मुझे मेरा जवाब दे दिया था. मैं अपने हाथो से उसकी मखमली कमर को छूने लगा. मेरा पुरुषत्व जागकर उसकी साड़ी की प्लेट पर उसकी नाभि के निचे अपनी उपस्थिति चेतना को महसूस कराने लगा. चेतना भी उत्तेजित हो चुकी थी. उसका लिंग भी साड़ी से उठ कर मुझे महसूस हो रहा था. उसकी सॉफ्ट पेंटी उस कठोर लिंग को अपने भीतर और नहीं संभाल सकी. मुझे उसके लिंग से कोई फर्क न पड़ा, आखिर हम दोनों अब प्यार में जो थे!
चेतना ने एक बार फिर लम्बी सांस ली और मुझसे बेहद ही सेक्सी आवाज़ में बोली. “निशु, मैं भी तन से तुम्हारी हो जाना चाहती हूँ. पर मैं हमारी यह रात बहुत ही स्पेशल बनाना चाहती हूँ. मैंने तुम्हारे लिए ख़ास खाना बनाया है. क्या हम वहां से शुरू करे?” मैंने हाँ में सर हिला दिया. मेरे लिए चेतना को अपनी बांहों से छोड़ना इस उत्तेजना में आसान तो नहीं था. वो मेरी बांहों से निकल कर पलट कर किचन की ओर जाने लगी. पर मैंने एक बार फिर उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया. मेरे उस झटके से उसके हाथो की चूड़ियां फिर खनक उठी. उसने पलट कर मेरी ओर देखा और मुस्कुराते हुए बोली,”मैं फिर वापस आ रही हूँ. थोडा सब्र करो. अब तो मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूँ न” ये कहकर वो दौड़कर किसी फूल की तरह हवा में उडती चली गई. और मैं उसे देखता रह गया. “मेरी गर्लफ्रेंड”, मैंने मन ही मन सोचा और मुस्कुरा दिया.
जब डाइनिंग रूम में पंहुचा, तो चेतना ने उस कमरे को बेहद ही रोमांटिक बना रखा था. मोमबत्ती की हलकी रौशनी और कुछ डेकोरेशन, माहोल को बेहद रोमांटिक बना रहे थे. टेबल पर प्लेट पहले ही सजी हुई थी. कितना भाग्यशाली था मैं जो चेतना मुझे मिली. थोड़ी देर में चेतना एक बर्तन में उसकी बनायीं हुई दिश लेकर आई. आज ऑफिस से वो कुछ ज्यादा ही जल्दी आई होगी क्योंकि डेकोरेशन, खाना बनने और सजने सँवारने में उसे काफी समय लगा होगा. और यह सब वो सिर्फ मेरे लिए कर रही थी. उसने मुस्कुराते हुए मेरी थाली में खाना परोसा. मैं तो उसकी चूड़ियों की खनक का ही दीवाना हुआ पड़ा था. उसकी एक एक अदा मोहक थी. किसी शहरी लड़की से प्यार करने पर ये सुख कम ही मिलता है क्योंकि वो तो ऐसे पारंपरिक कपडे और चूड़ियां कम ही अवसरों पर पहनती है.
उस प्यार भरी शाम को, हम दोनों ने एक दुसरे के प्रति अपना प्यार जताया. हमने बातें की, मुस्कुराये, खिलखिलाकर हँसे भी, और खाने का भी आनंद लिया. और चेतना एक परी की तरह मेरी ओर देखती रही . मोमबत्ती की रौशनी में वो सचमुच परी लग रही थी. हर जगह गुलाब की खुश्ब्हू थी जो मुझे चेतना की तरफ और मोहित करा रही थी. हम दोनों एक दुसरे के लिए बहुत प्यार महसूस कर रहे थे. खाने के बाद मैंने चेतना की टेबल साफ़ करने में मदद की. मुझे जब मौका मिलता मैं उसकी कमर को छूकर उसे गुदगुदी लगाता. वो झूठ मुठ का गुस्सा अपनी आँखों से दिखाती पर मुझे रोकती नहीं थी.
फिर मैं चेतना का हाथ पकड़ कर उसे बाहर सोफे तक ले आया. वो मेरी बगल में बैठ गयी. उसने धीरे से अपने पैर उठाये और उसे साड़ी से ढँक ली. उसने धीमे से अपना सर मेरे सीने पर रख दिया. उसका एक स्तन मेरे सीने से दबने लगा. मेरे मन में उत्तेजना बढ़ रही थी. मैंने अपना एक हाथ उसके कंधे पर रख कर उसकी बांहों को छूने लगा. और दुसरे हाथ से उसकी हाथ की चूड़ियां देखने लगा. मैं धीरे से उसकी कमर को छूना शुरू किया. और फिर उसके चेहरे पर से बाल हटाते हुए, उसके चेहरे को अपनी ओर घुमा लिया. उसके बालो को प्यार से छूते हुए, हम दोनों एक दुसरे की आँखों में देखने लगे.वो मुझसे एक हो जाने को तैयार थी. उसके होंठ फिर आतुर थे.वह अपनी पीठ सीधी करते हुए मेरे और करीब आ गयी. हम दोनों की नाक छूने लगी और उसके स्तन मुझसे पूरी तरह से दबने लगे. “निशु…”, उसने कहा. “हाँ, चेतना” “अब क्या… अब क्या हम मेरे बेडरूम चल सकते है?” मैं तो बस तैयार ही बैठा था इस पल के लिए.
उसे बांहों में उठाकर मैं उसे उसके बेड तक ले आया. और उसे प्यार से लिटा दिया. मैं चेतना के बदन को ऊपर से निचे तक निहारने लगा. और वो मुझे निहारती रही. मैंने झुककर, पहले उसकी कमर को छुआ और उसकी साड़ी हटाते हुए उसकी नाभि के आसपास चूमने लगा. चेतना ने अपनी आँखें बंद कर ली और उसका तन बदन मेरे स्पर्ष से मचलने लगा. मैं धीरे धीरे ऊपर होते हुए उसकी गर्दन तक पहुच गया. उसकी मुलायम गर्दान पर मैंने जैसे ही उसे जोरो से चूमा, वो तो जैसे कामोत्तेजना में पागल ही हो गयी. उसने मुझे अपने करीब खिंच लिया, और मेरे सर को दबाकर इशारा करने लगी कि मैं उसे और जोर से चुमू. जोश में उसकी सांसें और गहरी होती जा रही थी.मैं अपने हाथो से अब उसकी साड़ी को उठाते हुई उसकी चिकनी जांघो को छूने लगा. चेतना मेरे स्पर्श से उत्तेजना में आवाजें निकालने लगी. और मुझे जोर से खिंच कर अपने होंठो से बेइंतहा चूमने लगी. हम दोनों एक दुसरे को मदहोशी में चुमते रहे. पर मैं एक बार फिर रुक गया. चेतना ने अपनी आँखें खोल कर मेरी ओर हसरत भरी निगाहों से देखा. उसकी धडकने और तेज़ हो चुकी थी और होठ लालायित. वो मुझे और चूमना चाहती थी. उसकी आँखों में एक गज़ब सी तड़प थी मेरे लिए.
मैंने उसकी साड़ी को और उठा लिया. उसका पेटीकोट हटाकर मैंने झट से उसकी पेंटी उसकी मखमली टांगो से उतार दी. मैंने उसके दोनों पैरो को फैला कर अलग कर दिया. चेतना समझ चुकी थी आगे क्या होने वाला है. उसकी धड़कने बेहद तेज़ हो गयी थी. हम दोनों ये पहली बार करने वाले थे. वो एक औरत बनने के लिए उत्तेजित भी थी और नर्वस भी. एक औरत की तरह, वो चाहती थी कि वो मुझे अपना तन समर्पित कर मुझे खुश कर सके. पर पहली बार ऐसा करते हुए वह नर्वस भी थी. उसने मेरी आँखों में देख कर कहा, “निशु, प्लीज धीरे से अन्दर ले जाना.” मैं जानता था मुझे यह धीरे से करना था. मैं चेतना की परवाह करता था, मैं उसे दर्द नहीं देना चाहता था.
झूठ होगा यदि मैं कहूं की उस रात सब कुछ आसानी से हो गया. पर हम दोनों में सब्र था. पर अंत में मैं चेतना के अन्दर प्रवेष कर ही गया. उसकी सांसें ठहर गयी, कभी जोश में वो चीख पड़ती कभी अपनी मुट्ठी से चादर को पकड़ लेती, कभी कुछ सेक्सी अपशब्द भी कहती, उफ़ क्या जोश उन्माद था उसमे उस रात. एक औरत बन कर उस जोश में कभी वो मुझे दांतों से काट देती तो कभी अपने नाख़ून मेरी पीठ में गडा देती. पर उसने मेरे लिंग को पूरी तरह अन्दर लेकर मुझे सुख देकर ही रही. हमने पहली बार यह किया था पर वो कहीं से भी कम नहीं थी. मैं डिटेल नहीं दूंगा पर यह एक और यादगार रात थी मेरे जीवन की.
उस दिन एहसास हुआ कि शारीरिक प्रेम और आनंदमयी होता है जब दो प्यार करने वालो का जिस्म एक हो जाता है. प्यार सब कुछ और सुन्दर बना देता है. हम दोनों एक दुसरे के प्रति समर्पित थे. “चेतना, तुम्हारी जैसी गर्लफ्रेंड पाकर मैं बहुत खुश हूँ”, सोने के पहले मैंने चेतना से कहा था. “और तुम्हे बॉयफ्रेंड पाकर मैं भी बहुत खुश हूँ निशु. गुड नाईट , माय लव”, चेतना ने कहकर मुझे एक और चुम्बन दिया. और हम दोनों एक दुसरे के बांहों में प्यार महसूस करते हुए सो गया.
चेतना घर का बिलकुल एक औरत की तरह ख्याल रखती थी.उसने अपने स्त्रीत्व से हमारे किराये के मकान को घर बना दिया था!
हमारा जीवन बहुत सुन्दर गुजरने लगा था. ऐसा नहीं था कि चेतना के आने से चेतन का अस्तित्व ख़तम हो गया था. पर चेतना हमारे जीवन में अब ज्यादा समय बीताने लगी थी. वो सचमुच खिल रही थी. धीरे धीरे उसके कमरे की अलमारी में ढेरो रंग-बिरंगी साड़ियाँ, सेक्सी सलवार सूट और कई पाश्चात्य ड्रेस भी आ गए थे. उसके ड्रावर कई पेंटीयों, ब्रा , नाईटीयो और lingerie से भर गए थे. मुझे भी उसे अपनी पसंद के कपडे गिफ्ट करना पसंद था. चेतन के कपडे अब नज़रो से छुप गए थे. चेतना का कमरा अब एक औरत का कमरा बन चूका था. चेतना के मेरे जीवन में आने से हमारा घर भी अब बैचलर लडको के बेतरतीब घर की तरह नहीं रह गया था, चेतना ने उसे एक गृहिणी की तरह अब प्यार से सजा कर रहने लायक बना दिया था. वो बहुत मेहनत भी करती थी घर की साज-सज्जा और साफ़ सफाई में. क्योंकि चेतना बाहर की दुनिया से अब तक छुपी हुई थी, हम घर में साफ़ सफाई करने के लिए किसी और को बुला भी नहीं सकते थे. इसका एक फायदा भी था, चेतना सिर्फ मेरी थी!
जहाँ तक मेरी बात है, मैं चेतना के साथ उसके कमरे में रहने लग गया था. हम साथ में सोते, और हफ्ते में एक दो बार सेक्स भी करते. मुझे बहुत अच्छा लगता था चेतना को घर की साज सज्जा करते देखना, कभी झाड़ू लगते या कभी किचन में काम करते पसीना पोछती चेतना एक सेक्सी हाउसवाइफ बन गयी थी. हर सुबह उठकर सबसे पहले उसका चेहरा देखना, इससे बढ़िया कुछ नहीं हो सकता था. और हर रात, थकी हारी चेतना जब अपनी साड़ी या सलवार सूट बदल कर नाईटी पहनती, वो अक्सर मुझे आँखें बंद करने या मुंह मोड़ने कहती थी. पर मैंने कभी आँखें बंद नहीं करता. आखिर दृश्य ही इतना मोहक होता था, बड़ी ही नजाकत से मेरी चेतना अपना ब्लाउज और अपनी ब्रा उतारती, और उसकी नग्न भरी हुई पीठ देख कर मैं आनंदित होता. कपडे बदलते ही चेतना तुरंत मेरी बांहों में आकर सो जाती. कभी किसी रात वो एक हाउसवाइफ की तरह कई तरह की शिकायत भी करती. एक तरह से हमने शादीशुदा ज़िन्दगी जीना शुरू कर चुके थे. मैं अपने जीवन से सचमुच बहुत खुश था.
ऐसी ही एक रात, हम दोनों मुंबई वि. चेन्नई सुपर किंग्स का मैच देखते हुए बियर पि रहे थे. मुंबई पहले बैटिंग कर रही थी और गेम कुछ अच्छा नहीं जा रहा था. विकेट गिरते जा रहे थे, और सचिन ही आखिरी उम्मीद था. मैं तो गुस्से में ही न जाने कितनी बियर पि चूका था. और जल्दी ही सचिन भी ११ रन बनाकर आउट हो गया. “यार, इस गेम का अब कुछ नहीं हो सकता”, मैंने कहा सोफे की तरफ देखते हुए जहाँ चेतन बैठा हुआ था. पर वो वहां नहीं था. मैंने यहाँ वहां नज़र घुमा कर देखा, किचन में भी देखा, पर वो कहीं न मिला.गेम के समय कभी ऐसा तो नहीं करता था चेतन. पूरा गेम देख कर ही कहीं जाता था.
“हाय, कितनी गर्मी है यहाँ. अच्छा हुआ जो किसी ने मुझे ये हवादार नाईटी गिफ्ट की थी. कम से कम थोडा तो आराम मिला.”, चेतना अपने कमरे के दरवाज़े से टिककर मुस्कुरा रही थी. उसकी मुस्कान बेहद मादक थी. “चेतना, वो नाईटी भले तुम्हारे लिए गिफ्ट रही हो, पर मुझे मेरा गिफ्ट भी दिख रहा है जिसको खोलने के लिए मैं बेताब हो रहा हूँ. इतने सुन्दर गिफ्ट को अब और व्रैप करके नहीं छोड़ सकते.”, मैंने इशारे करते हुए चेतना से कहा. मैं नशे में था, और उत्तेजित भी, और गेम भी तो ख़राब चल रहा था.
मैं अचानक ही सोफे से कूदकर उठ पड़ा और चेतना को अपनी बांहों में पकड़ने के लिए दौड़ने लगा. मुझे अपनी ओर दौड़ते आते देख, चेतना ने एक स्त्री की तरह चीख निकाली और मुझसे दूर भागने लगी. मुझे तडपाना चाहती थी वो! हँसते हँसते वो बस घर भर में भागती जा रही थी. आखिर में मैंने उसे अपनी बांहों में पकड़ ही लिया. हम दोनों की सांसें फूल रही थी और हम जोर जोर से हँस रहे थे. मैं चेतना का हाथ पकड़ कर बेडरूम ले गया. उस नाईटी में वो बेहद सेक्सी और सुन्दर लग रही थी. तन बदन में आग तो लग रही थी, पर उसके बावजूद उस रात हमने सेक्स नहीं किया.
जब हमारा हँसना रुका, तब हम यूँ ही बाते करने लगे. न जाने कैसे, चेतना अपने बचपन की यादें मेरे साथ शेयर करने लगी. बचपन से ही चेतना के कई अधूरे सपने थे, हमेशा से ही वो लड़कियों के कपडे पहनना चाहती थी पर कभी हिम्मत नहीं कर सकी कि किसी से वह बोले. उसे बड़ी अच्छी तरह से वो एक दिन याद था जब उसकी माँ ने उसे एक प्यारी सी फ्रॉक पहनाई थी. चेतना की उम्र बहुत ही कम रही होगी तब. चेतना की माँ ने उस दिन चेतना की तस्वीर भी खिंची थी. और आज तक चेतना उस फोटो को देख कर बेहद खुश होती है. उसने मुझे बताया कि उसकी माँ का उस पर बेहद प्रभाव है, वह बिलकुल अपनी माँ की तरह बनना और दिखना चाहती है. इसलिए चेतना को साड़ियाँ बेहद पसंद है. “काश! एक दिन मैं अपनी माँ के सामने उनकी बेटी बन कर जा सकू. मेरे लिए सबसे ख़ुशी का दिन होगा यदि मेरे माँ मुझे बेटी के रूप में स्वीकार करती है”, चेतना ने कहा. वो इमोशनल हो गयी थी, और उसे इस वक़्त एक सहारे की ज़रुरत थी. मैंने चेतना को गले लगाकर अपना कन्धा देकर उसका सहारा बनने का प्रयास किया, वैसा ही मजबूत सहारा जैसा एक आदमी एक स्त्री को देता है. वो भी एक अद्भुत रात थी जब मैं चेतना के बारे में काफी कुछ जान पाया. “मेरी चेतना”, उसका ध्यान रखना मेरा ही तो काम था.
सालो बाद, आज मैं चेतना के साथ बिताये सुन्दर पलों को याद कर रहा हूँ. हवाईजहाज में बैठे बैठे, जो मुझे कैलिफ़ोर्निया ले जा रहा है. समझ नहीं आ रहा था कि यह हवाई यात्रा है या बीते समय की यात्रा. आज मैं कुछ घंटो में उस शहर पहुच जाऊँगा जहाँ चेतना रहती है, जिसे मैं सालो से नहीं देखा है. मुझे तो पता भी नहीं कि इतने सालों से चेतना कैसी है. सोचता हूँ तो एहसास होता है कि मेरा चेतना के साथ रिश्ता बेहद प्यार भरा था. सेक्स, एक छोटा सा हिस्सा था हमारे प्यार भरे जीवन का, पर वो भी कमाल का था. आखिर हमारे रिश्ते में बहुत कुछ था. मुझे चेतना के साथ रहना और उसकी आँखों में घंटो तक देखना अच्छा लगता था. उसकी एक एक मुस्कान के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार रहता था. पर यह भी नहीं भुला सकता कि चेतना मेरे जीवन में आई सबसे हॉट औरत थी, बेहद सेक्सी. हमारे रिश्ते के शुरूआती दिन बेहद खुशनुमा थे. मेरे पास चेतना में एक प्यार करने वाली गर्लफ्रेंड थी, तो चेतन में मेरा बेस्ट फ्रेंड भी था. हम तीनो बहुत खुश थे. अब जब सब इतना अच्छा था तो आखिर क्या वजह थी कि मैंने चेतना को इतने सालों से नहीं देखा? हमारा दिमाग भी न, हमारे साथ कैसे कैसे खेल खेलता है. जब याद करो तो बस ख़ुशी के पल याद दिलाता है. चेतना मेरी ज़िन्दगी में ख़ास थी, और वैसे भी चेतना एक “स्पेशल” औरत थी, और मुझे तब तक एहसास भी नहीं था कि एक क्रॉस-ड्रेसर के साथ रिश्ते में कैसी कैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. काश! चेतना और मैं एक साथ जीवन बिताने का रास्ता निकाल पाते, तो इतने प्यार के बाद भी हमें यूँ अलग न होना पड़ता.
क्रमश: …
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