जब भी हम पति-पत्नी कहीं बाहर साथ में बाहर जाते है तो हमेशा मैं ही कार चलाया करती थी। क्योंकि तब मैं रिश्ते में पति थी। आज बात कुछ उलट थी। अब मैं एक औरत थी, और परिणिता एक आदमी जो मेरा पति है। फिर भी मेरी आदत के अनुसार मैं कार चलाने ड्राइवर सीट पर बैठने गयी, और परिणीता पैसेंजर सीट पर। सीट पर बैठते ही मैंने अपना लेडीज़ बैग कंधे से उतार कर परिणिता को थमा दिया।
परिणिता मुस्कुराई और मेरी जांघो की ओर इशारा करके बोली, “प्रतीक, तुम्हारी ड्रेस उठ गयी है। ठीक कर लो उसे।” मैंने अपनी ड्रेस की और देखा। सचमुच मेरी चिकनी मुलायम जाँघे साफ़ दिखाई दे रही थी। मैं मन ही मन शर्मा गयी और दोनों हाथों से ड्रेस को नीचे की और खींचने लगी। परिणिता ने फिर मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “सुनो पतिदेव। आज प्लीज ज़रा ड्रेस की ओर ध्यान रखना। कार के उतरने से पहले एक बार फिर चेक कर लेना की उठ न गयी हो। और बाहर अनजान लोगो के बीच उसे खींचने की कोशिश मत करना। वह काफी असभ्य लगता है।”
“हाँ, परी! मैं ध्यान रखूँगा। और वैसे भी तुम साथ हो तो मुझे किस बात की चिंता।”, मैंने कहा। पर चिंता तो थी। घर में बैठ कर सजना संवारना एक बात है और बाहर जाना एक बात। मैं कोई भी अपनी मर्दानी हरकत से किसी का ध्यान आकर्षण नहीं करना चाहती थी।
“मैं सिंसेरिली कह रही हूँ प्रतीक। तुम्हारी ही नहीं मेरी इज़्ज़त का भी सवाल है! जब हमारे शरीर वापस बदल जायेंगे तब मैं नहीं चाहती कि आज की किसी बात की वजह से मुझे शर्मिंदा होना पड़े।”
मेरा नया शरीर कद में पहले से काफी छोटा था। मुझे अपनी सीट एडजस्ट करनी पड़ी। फिर भी कार के शीशे के बाहर पहले मुझे जितना दीखता था, उससे कम ही दिख रहा था। भगवान का नाम लेकर मैं चल पड़ी। कुछ ही देर में हम पटेल स्टोर नाम की किराना दूकान के बाहर पार्किंग में थे।
कार से निकलने से पहले मैंने झट से अपनी ड्रेस को फिर से खिंच कर ठीक की। कार के शीशे को अपनी ओर पलट कर मैंने अपने बालों को देखा। अपनी उँगलियों से उन्हें सीधा किया और न जाने क्यों, अपने हाथों से बालो को पीछे कर उनका जुड़ा बना लिया। मैंने पलट कर परिणिता की ओर देख कर कहा, “अब सब ठीक है। चलो अब चलते है।” मैंने एक छोटी सी मुस्कराहट दी। परिणिता मेरी ओर हैरत से देखती रह गयी। वह कुछ कह पाती उसके पहले ही मैंने कहा, “क्या तुम्हे मेरे बाल ऐसे अच्छे नहीं लग रहे? ठीक है। मैं इन्हें खुले ही रखता हूँ।”
“प्रतीक, तुम्हे यह बालों को पीछे बाँधने का आइडिया कैसे आया? तुम बिलकुल किसी औरत की तरह ऐसे कैसे कर सकते हो? कहीं तुम पहले भी कहीं औरत बनकर घर से बाहर तो नहीं जाते थे?”, परिणिता ने मुझसे पूछा।
“नहीं, परी। ऐसा कुछ नहीं है। सच में! आज से पहले मैंने सिर्फ घर के एक कमरे में ही खुद को औरत के रूप में देखा था। मैं कभी औरत रूप में उस कमरे से बाहर नहीं निकल था। तुमने ही मुझसे थोड़ी देर पहले कहा था कि तुम्हारी इज़्ज़त का सवाल है। इसलिए मैंने खुद को शीशे में चेक किया कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं। और ऐसा करते तो मैंने तुम्हे कई बार देखा है।”, मैंने परिणीता का हाथ पकड़ कर कहा। मेरी बात में सच भी था और झूठ भी। हाँ, आज के पहले मैं कभी घर से बाहर औरत के रूप में नहीं निकली थी। पर यह दर्पण में खुद को देख कर बालों को सुधारना, इस बारे में तो मैंने कुछ सोचा भी न था। न जाने कैसे बिना सोचे समझे बस यह हो गया। बालों का जूड़ा कैसे बनता है, मुझे तो यह पता भी नहीं था फिर भी मैंने क्यों और कैसे यह किया मुझे भी समझ नहीं आ रहा था।
परिणिता सोच में पड़ गयी। फिर कुछ देर सोच कर उसने पर्स से लिपस्टिक निकाल कर मुझे देते हुए कहा, “अच्छा। तुम अपनी लिपस्टिक रिफ्रेश कर लो। थोड़ी फीकी हो गयी है।”
मैं भी सोच में पड़ गयी क्योंकि मेरा लड़कियों वाला व्यव्हार परिणीता को कभी पसंद नहीं था। पर शायद आज वो कुछ और नहीं कर सकती थी। मैंने चुप चाप लिपस्टिक लगा ली। माहौल में थोड़ा तनाव हो रहा था। तो उसे दूर करने को मैंने उसे गालों पर किस किया और कहा, “मैडम, मुझे यकीन है कि ये सिर्फ आज की बात है। कल तक फिर हम अपने अपने शरीर में होंगे। और सच कहूँ तो यह ड्रेस, लिपस्टिक, ब्रा वगेरह मुझसे और ज्यादा समय नहीं हो पायेगा। मुझे ब्रा पहनने से ज्यादा, अपनी पत्नी की ब्रा उतारना पसंद है।” मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दी।
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