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परिणीता भाग १४

“साड़ी के पल्ले को ऐसे अपने कंधे पर यूँ फैलाते है और बाकी की साड़ी से अपने पूरे तन को ऐसे फैलाकर ढँककर देखने से आपको बिना साड़ी को पहने ही बेहतर अंदाज़ा हो जाता है कि ये साड़ी पहनने के बाद आप पर कैसी लगेगी| अब बताओ मुझ पर कैसी लगेगी ये साड़ी?” मेरे पतिदेव बड़ी ही ख़ुशी से खुद पर साड़ी लगाकर प्रदर्शन कर रहे थे और मैं उनकी ख़ुशी देख कर हँस हँस कर पागल हो रही थी| अपने पति के तन पर साड़ी देख कर किसी भी औरत को अटपटा ज़रूर लगता पर मैं सामान्य औरत न थी| आज से तीन हफ्ते पहले तक मैं एक क्रॉस ड्रेस करने वाला आदमी थी और मेरे पति तब एक औरत होने के साथ साथ मेरी पत्नी परिणीता थे|
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मैंने ठान लिया था कि मैं अपने पति को साड़ी पहनने में सहयोग करूंगी| जिस स्थिति से मैं खुद गुज़र चुकी थी मैं नहीं चाहती थी की वो भी उस दुःख से गुज़रे|
हाँ जी, मेरे पति, परिणीता, को मैं साड़ी पहनने वाली थी!  ज़िन्दगी भी कैसे कैसे खेल खेलती है| “पत्नी ने पहनाई पति को साड़ी”, जब मैं क्रॉस-ड्रेसर थी, तब न जाने क्यों, कितनी ही बार मैं इन्टरनेट पर यह गूगल में खोजा करती थी| तब मेरी पत्नी परिणीता ने मुझे साड़ी पहनाना तो दूर, वह तो मुझे साड़ी में देखना तक नहीं चाहती थी| मैं सोचती थी कि दुनिया में क्या कोई भाग्यशाली क्रॉस-ड्रेसर है जिनकी पत्नियाँ उनको सहयोग करती है और अपने हाथो से साड़ी पहनाती है? तब मुझे क्या पता था कि एक दिन मैं खुद ही औरत बन जाऊंगी और मेरी तब की पत्नी परिणीता, मेरे पति बन जायेंगे| आदमी बनने के बाद भी परिणीता के अन्दर दिल तो औरत का ही था! और वो फिर से औरत की तरह से सजना संवरना चाहता था| पर उनके दिल में यह चिंता थी कि जब उन्होंने पहले मुझे हमेशा औरतों के कपडे  पहनने से मना किया था तो अब जब वह खुद आदमी बन चुके है तो कैसे वह अब औरतों के कपडे पहने? इसी बात से मेरे पति दुखी थे| अब एक औरत के रुप में मुझे वह करना था जो मैं पहले एक आदमी होते हुए अपनी पत्नी से उम्मीद करती थी| मुझे एक सहयोगी पत्नी बनना था! मैं नहीं चाहती थी कि मेरे पति उस दुःख से गुज़रे जो मैंने सहा था| मैंने ठान लिया था कि मैं उनकी पत्नी, उन्हें अपने हाथो से एक बेहद खुबसूरत औरत बनाऊँगी!
और इसीलिए मैं अपना पुराना क्रॉसड्रेसिंग का बक्सा लेकर उनके सामने बैठी थी| और वो, मेरी खरीदी हुई मखमली साड़ियों को खोल खोलकर अपने हाथो से छूकर अपने तन पर लगा कर देख रहे थे कि वो कौनसी साड़ी पहनेंगे| मैंने उन्हें अपनी ड्रेस्सेस भी दिखाई थी पर उन्हें कोई पसंद नहीं आई थी| उनके विचार में मेरी ड्रेस की चॉइस बड़ी ख़राब थी| पर ६ फूट की औरत के कद के लिए अच्छी ड्रेस मिलना आसान भी तो नहीं होता! पर फिर भी आज बड़े दिनों बाद उनकी आँखों में मैं ख़ुशी की चमक देख रही थी|
“प्रतीक, मानना पड़ेगा कि तुम्हारी साड़ियों की चॉइस बड़ी है|”, उन्होंने कहा| वो अब भी मुझे प्रतीक कहते है| आखिर में मैं प्रतीक ही हूँ भले अब एक औरत के शरीर में हूँ| मैं मुस्कुरा दी| उन्हें साड़ियों को खोलते हुए देख कर मुझे बेहद ख़ुशी मिल रही थी| वो एक एक साड़ी को खोल कर पल्ले को अपने कंधे पर लगाकर देखते, जैसे औरतें करती है| यह भी ज़िन्दगी का अजीब पल था, परिणीता जब औरत थे, तब उनका साड़ियों में कम और ड्रेस में ज्यादा इंटरेस्ट था पर अब इस नए जीवन में साड़ियों के लिए कितने उत्साहित लग रहे थे| वैसे सच कहूँ तो शायद उन्हें ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी कि वह फिर से औरत होना महसूस करने वाले थे|
जहाँ मैं उन्हें खुश देखने में खोयी हुई थी, मेरा ध्यान ही न रहा कि मेरे पास उस बक्से में कुछ ऐसे कपडे भी थे जो मुझे सेक्सी औरत की तरह महसूस करने में मदद करते थे| मैं  नहीं चाहती थी कि उनकी नज़र उन पर पड़े| पर अब तो देर हो चुकी थी|उन्ही में से एक था मेरा ब्लाउज जो कि सच कहू तो बेहद सेक्सी था| उसमे पीठ काफी खुली रहती थी और पीछे से हुक लगती थी|उन्होंने उसे उठा कर कहा, “हम्म तो तुम्हे सेक्सी ब्लाउज पसंद है! इतना एक्स्पोस तो मैं औरत होकर भी नहीं करता था! और ब्लाउज की कटोरियों को देख कर तो लगता है कि तुम्हे बड़े बूब्स बहुत पसंद है|” वो मसखरी कर रहे थे|
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अपने पति को साड़ी पसंद करते देख मुझे बेहद ख़ुशी हो रही थी| अब वो मेरे जीवन का क्रॉस ड्रेसर वाला पहलु समझ सकते थे
“पतिदेव! जब मैंने वो ब्लाउज सिलवाई थी तब मैं एक ६ फूट की आदमी थी| और जब ६ फूट की औरत बनना हो तो स्वाभाविक दिखने के लिए बड़े बूब्स ही चाहिए|”, मैंने थोडा शरमाते हुए कहा| मुझे थोड़ी लाज तो आ ही रही थी क्योंकि मेरे क्रॉस ड्रेसर जीवन का पहलु मैं उनके साथ पहली बार इस तरह खुलकर शेयर कर रही थी| और यह सच था कि परिणीता से कहीं अधिक सेक्सी ब्लाउज थे मेरे पास|
“चलो पतिदेव, अब तुमने साड़ी पसंद कर ली हो तो मैं तुम्हे तैयार कर दूं|”, मैंने कहा| मैं भी अपनी पहनी हुई साड़ी की प्लेट ठीक करते हुए उठी और उनसे बोली की चलो अब कपडे उतारो|
“मुझे तैयार करना है? मैडम मैं तुम्हारे सामने कपडे नहीं उतारूंगा|”, उन्होंने कहा| “मेरे प्यारे पतिदेव, आपको याद न हो तो पिछले तीन हफ्तों में आपकी पत्नी बन कर रातों को मैंने आपको कई बार नग्न देखा है| तब तो आपको कोई परेशानी न थी|”, मैंने उनके चेहरे के बेहद करीब आकर कहा और उनके शर्ट के बटन खोलने लगी| भला वो उन हसीं रातों को कैसे भूल सकते थे जब मैंने पत्नी बन कर उनको सुख दिया था| मेरी सेक्सी मुस्कान से वो थोडा शर्मा गए|
“सुनिए मैडम, तुम भूल रही हो कि तुम्हे सिर्फ तीन हफ्ते हुए है औरत बने, जबकि मैं सालो तक औरत था| मुझे साड़ी पहनना आता है| मैं खुद पहन लूँगा| तुम्हे सिखाने की ज़रुरत नहीं है|”, उन्होंने कहा| मैं देख सकती थी कि उनमे अभी भी एक झिझक थी| एक सुन्दर औरत से आदमी बन जाना और फिर आदमी होते हुए पत्नी के सामने साड़ी पहनना उनके लिए आसान नहीं था| वो मुझसे और इस स्थिति से थोडा बौखला गए थे|
पर मैं भी एक प्यारी पत्नी थी| मैंने उन्हें अपने गले से लगा लिया और उनका सर अपने सीने पे रख दिया| मेरे स्तनों के बीच उन्हें ज़रूर प्यार महसूस हुआ होगा| फिर मैंने कहा, “मैं जानती हूँ कि तुम एक सुन्दर औरत थे| मैं जानती हूँ कि तुम खुद तैयार हो सकते हो| पर मैं भी जानती हूँ कि आदमी के शरीर को स्त्री रूप में सँवारने में क्या क्या दिक्कत आती है| मुझ पर भरोसा करो|”
मेरी बात मानते हुए उन्होंने अपने कपडे उतार लिए| जब तक वे साड़ियां खुद पर लगा लगा कर पसंद कर रहे थे, मैं उन्हें देख कर मुस्कुराती हुई उनके पहनने के लिए पॉकेट ब्रा और हिप पैड लेकर आई| आखिर में उन्होंने एक लाल रंग की मखमली साड़ी अपने कंधे पर लगायी और उससे अपने तन को ढंकते हुए मेरी ओर देख कर उत्साहित होकर बोले, “यह कैसी लगेगी मुझ पर?” उनका चेहरा खिल गया था|
उन्हें देख कर मेरी आँखें भर आई| वो आज मेरी उन भावनाओं को महसूस कर रहे थे जो मैं पहले क्रॉस ड्रेस करते वक़्त महसूस करती थी| वो साड़ी से अपने पूरे तन को ढकने की कोशिश कर रहे थे, पर एक चीज़ थी जो छुप न पा रही थी| मखमली साड़ी के स्पर्श से उनका पुरुष लिंग तन गया था और साड़ी में वह उभर कर दिख रहा था| वो थोडा शर्मा गए| अपने अनुभव से मैं जानती थी कि एक क्रॉस ड्रेस करने वाले पुरुष के लिए कई बार ऐसा होना स्वाभाविक है| मैंने उसे नज़रंदाज़ करते हुए उन्हें अपने हाथो से उन्हें हिप पैड वाली पैंटी पहनाई| पर एक औरत होते हुए तना हुआ लिंग ऐसे ही नज़रंदाज़ नहीं हो जाता| उस लिंग को पैंटी के अन्दर करते हुए मेरे तन में कुछ कुछ होने लगा| पर इस वक़्त मुझे मेरे पति, परिणीता, को औरत बनाना था| न कि उन्हें पुरुष होने का शारीरिक सुख देना था|
और फिर मैंने उन्हें बड़े प्यार से तैयार करना शुरू किया। मैं चाहती थी कि आज वो अपने पुरुष तन में वही नज़ाकत महसूस कर सके जो एक स्त्री महसूस करती है। इसलिए आज मैंने उन्हें साटिन की पेंटी और ब्रा पहनाई। और फिर मैचिंग पेटीकोट। और फिर धीरे धीरे प्यार से उनके तन पर साडी लपेट कर प्लेट बनाने लगी। मेरे नाज़ुक हाथों का स्पर्श शायद उन्हें स्त्री होने का सुख भी दे रहा था। और वैसे भी कोई भी औरत आपको बता सकती है कि कितनी प्यारी भावना है जब कोई और औरत आपको प्रेम से साड़ी पहना रही हो। मैंने उनके ब्लाउज पर साड़ी चढ़ाते हुए पूछा, “आप खुला पल्ला पसंद करेंगे या प्लेट किया हुआ?” उन्होंने मेरी आँखों में देखा पर कुछ न बोल सके। मैंने ही निश्चय किया कि वो खुला पल्ला पहनेंगे। खुला पल्ला जब प्यार से आपके हाथो पर स्पर्श करता है , वह जो स्त्रीत्व की भावना जगाता है वह एक पल में ही एक क्रॉस ड्रेसर को बेहद ही भावुक स्त्री बना सकता है। जब मैं पल्ले को उनके ब्लाउज पर पिन से लगा रही थी, उन्होंने अपने हाथों से मखमली पल्ले को छूते हुए अपनी आँखें बंद कर ली। मैं जानती थी कि वह क्या अनुभव कर रहे थे। आखिर मैं भी पहले एक क्रॉस ड्रेसर रह चुकी थी।
फिर मैंने उन्हें एक कुर्सी पर बैठाया ताकि मैं उनका मेकअप कर सकूँ। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “थैंक यू प्रतिक! पर मैं मेकअप खुद कर सकता हूँ। मुझे  मेकअप करना आता है।”
“पतिदेव, पहले तो कहिये कि मैं मेकअप कर सकती हूँ! अब आप एक औरत है!” मेरी बात सुनकर उन्होंने एक औरत की तरह शर्मा कर नज़रे झुका ली। “पर आज मैं आपको मेकअप करने नहीं दूँगी। पुरुष के चेहरे को स्त्री की तरह निखारना एक अलग कला है जो अभी आपको आती नहीं है।  पर मैं अच्छी तरह जानती हूँ। मेरा भरोसा करिये मैं आपको बेहद सुन्दर औरत बनाउंगी!”
हम दोनों मुस्कुराये| और जल्द ही मैंने उनका मेकअप भी कर दिया।  मेकअप के बाद वो उस साड़ी में बेहद ही आकर्षक औरत में तब्दील हो गए थे। आखिर क्यों न होते, मैंने वह साड़ी बहुत सोच समझकर खरीदी थी उस तन के लिए। और आज मुझे खुद पर बड़ा गर्व था कि मैंने बहुत सलीके से उन्हें साडी पहनाई थी और मेकअप भी बहुत अच्छा कर सकी थी।
मैं फिर उनकी कुर्सी के पीछे से आकर अपने हाथों को उनके गले पर रख कर कुर्सी को शीशे की ओर घुमाया। परिणीता अब खुद को देख सकते थे। उन्हें यकीन ही न हुआ कि उनका पुरुष तन इतनी सुन्दर औरत में तब्दील हो सकता था। एक हाथ से उन्होंने अपने ब्लाउज की ऊपर की साड़ी की बॉर्डर के ऊपर फेर कर देखा। और फिर अपने चेहरे को हाथ लगाने लगे। उनकी आँखों में आज ख़ुशी के आंसू थे।

“जानू, आज मैं एक भी आंसू और नहीं देखना चाहती।”, मैंने उन्हें प्यार से गले लगाते हुए कहा। वो भावुक होते हुए मुस्कुरा दिए। “थैंक यू प्रतिक। पर मेरे बालों का क्या होगा?”, उन्होंने अपने सर के छोटे छोटे बालों को हाथ लगाते हुए कहा।
मैं तो इसी पल के इंतज़ार में थी। सभी क्रॉस ड्रेसर जानते है कि जब तैयार होने के बाद अंत में आप लंबे बालो का विग लगाते है तो मानो एक पल में ही जादू हो जाता है। और मैं चाहती थी कि यह जादुई पल वह खुद अनुभव करे। और जैसे ही मैंने उन पर विग लगाया, वो ख़ुशी के मारे उठ खड़े हुए और अपने हाथों को हवा में फैलाकर अपनी साड़ी के पल्लू को लहराते हुए गोल गोल घूमने लगे। उनके शरीर में छुपी हुई मेरी पत्नी परिणीता वापस आ गयी थी। उनको ख़ुशी में झूमते देख मेरी आँखों में भी ख़ुशी थी।  और फिर हमने एक दुसरे को गले लगा लिया। उनके सीने से लग कर मैं भी बेहद खुश थी।

“सुनिये, क्योंकि आपका नाम परिणीता तो अब मेरा हो चूका है। क्या आपने अपने स्त्रीरूप के लिए कोई नया नाम सोचा है?”
“हाँ। वही नाम जिस नाम से तुम इस रूप में रहा करती थी। ‘अल्का’ ”
अल्का, यही नाम मैं उपयोग करती थी जब मैं प्रतिक से औरत बन जाया करती थी। अल्का का मतलब होता है खूबसूरत बालों वाली लड़की, और वही तो बनती थी मैं। और अब मेरे पति, मेरी सहेली अल्का बन चुके थे। आज हम दोनों के बीच एक नए रिश्ते की शुरुआत हो रही थी।  सच कहूँ तो हमारे तन एक दुसरे में बदलने का सबसे बड़ा फायदा यही हुआ था। भले औरत का तन पाने की मुझे बहुत ख़ुशी थी पर सबसे ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी कि मुझे अब एक सहेली मिल गयी थी जिसके साथ मैं औरत होने का पूरा आनंद ले सकती थी! मैं परिणीता और मेरी प्यारी सहेली अलका! अगले भाग में हम दो सहेलियोँ की हॉट रात के बारे में पढना मत भूलियेगा, जब हम दो सहेलियाँ दो जिस्म एक जान हो गयी थी| अगला भाग मेरी इस कहानी का अंतिम भाग होगा,  तो पढ़ते रहिये 

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