एअरपोर्ट से टैक्सी लेकर मैं चेतना के घर की ओर बढ़ रहा था. दिल में न जाने कितने एहसास आ रहे थे, न जाने कितनी यादें आ रही थी, और एक बेचैनी भी थी. चेतना से १० साल बाद मिलने के बारे में सोच कर ही ख़ुशी भी मिल रही थी. पर मन बहुत भावुक भी हो रहा था. मन में एक डर भी था जिसे मैं समझ नहीं पा रहा था. न जाने चेतना से मिलकर क्या होगा आगे? और न जाने कैसे अचानक ही बेमौसम बारिश भी होने लगी. जैसे मौसम भी मेरे दिल की तरह आज भावुक हो रहा था. इतने सालो से चेतना की दूरी के बारे में सोचते हुए चेतना का घर कब आ गया, मुझे पता भी न चला.
किसी तरह हिम्मत करके मैंने उसके घर के दरवाज़े पर दस्तक दी. थोड़ी देर बाद मुझे घर के अन्दर से कुछ आहट सुनाई दी. शायद चेतना दरवाज़ा खोलने आ रही थी. स्वाभाविक है कि मेरे दिल की धड़कने तेज़ होने लगी थी. आखिर मैं चेतना को इतने सालो बाद देख कर अपनी भावनाओं पर काबू कैसे रख पाऊँगा? इस सवाल का जवाब नहीं था मेरे पास, और न ही अब सोचने का समय था. चेतना के कदमो की आवाज़ बढती जा रही थी. मेरे कानो में उसकी चूड़ियों की खनक अब सुनाई दे रही थी. और फिर उसी खनक के साथ दरवाज़ा खुला. चेतना मेरी आँखों के सामने थी. मेरी वोही चेतना जिससे मैं इतना प्यार करता था. आज १० साल बाद, एक बार फिर मेरे लिए दरवाज़ा खोल कर खड़ी थी.
इतने सालो में हम दोनों के पास न जाने कितना कुछ था दिल में कहने को, पर एक दुसरे को देख कर जैसे होंठो ने जवाब दे दिया. हम एक दुसरे से एक शब्द भी न कह सके. बिना कुछ कहे हम एक दुसरे को बस देखते रह गए. चेतना ने आज वही लाल साड़ी पहनी थी जो उसने हमारी शादी की शाम को गोवा में पहनी थी. माथे पर एक सुहागन की तरह बड़ी सी लाल बिंदी लगाए, कितनी प्यारी लग रही थी वह. मैं उसकी बड़ी बड़ी आँखों में देखता रह गया. वो भी कुछ नहीं बोली. समय जैसे ठहर सा गया था. पर उसकी आँखों में उमड़ती हुई भावनाओं से पानी भरते मैं देख सकता था. हम दोनों एक दुसरे को न जाने कितनी देर देखते रह गए. दिल ने कहा कि निशांत गले लगा ले, यह तेरी ही चेतना है, रुका क्यों है? पर मैं अपनी जगह पर स्थिर अपनी चेतना को बस देखता रह गया. और वो भी वहीँ भावुक होकर मेरी ओर देखती रही.
“आपकी फ्लाइट कैसी रही? गौरव ने मुझे बताया था कि तुम यहाँ आ रहे हो कुछ दिनों के लिए. मुझे उम्मीद न थी कि तुम यहाँ आओगे. वैसे तुम थक गए होगे न? मुझे तो इतनी लम्बी फ्लाइट कभी पसंद नहीं आती”, चेतना ने अपने शब्दों से अपनी भावनाओं को छुपाने की कोशिश की.ऐसा लग रहा था जैसे चेतना की आँखों में आंसुओं का सैलाब बस आने को तैयार है, पर तभी चेतना ने झट से मुझसे विपरीत दिशा में पलट कर अपनी आँखें पोंछते हुए, मुझसे अन्दर आने को कहा, “अन्दर आइये न”. चेतना के पहले शब्द. और मैं अब भी निशब्द था.
मैं चेतना के पीछे पीछे घर के अन्दर चल दिया. मेरी चेतना आज भी उतनी ही सुन्दर थी. उसकी उम्र शायद अब ३३ साल के करीब होगी. और उम्र के साथ चेतना में एक परिपक्व औरत वाली अद्भुत शालीनता भी आ गयी थी. मैं पीछे पीछे चेतना की चाल देखता रह गया. किसी और के लिए चेतना क्रॉस-ड्रेसर होगी पर मेरी नजरो में तो वो सचमुच औरत थी. मेरी पत्नी थी चेतना. उसे देख कर मुझे यकीन था कि आज चेतना मेरे लिए ख़ास रूप से तैयार हुई थी. उसके एक एक कदम पर उसकी पायल छम छम करती. उसकी “छम छम” मुझे एहसास दिला रही थी मैंने क्या खोया है.
“फ्लाइट अच्छी थी.”, मैंने चेतना के सवाल का संक्षिप्त में जवाब दिया. दिल भी आखिर कितना अजीब होता है. जब बहुत कुछ होता है कहने को, तब वो कुछ भी नहीं कह पाता.
चेतना मुझे अपने लिविंग रूम में ले आई जहाँ उसने मुझे बैठने की जगह दिखाई. “आप चाय लेंगे? मैंने बस अभी अभी बनायीं है, अदरक के साथ, जैसी आपको पसंद है. बारिश के मौसम में अच्छी लगेगी. आप यहाँ बैठो, मैं अभी लेकर आती हूँ.”, चेतना ने ऐसे कहा जैसे हम दोनों के बीच सब कुछ नार्मल हो. न जाने कैसे अपनी भावनाओं को छुपा रही थी वो. मैंने चाय के लिए हाँ का इशारा किया.
मैं बैठा बैठा चेतना की ओर देखता रहा. समय के साथ थोड़ी सी मोटी हो गयी थी चेतना. पर अब पहले से भी ज्यादा आकर्षक औरत बन चुकी थी वो. जल्दी ही मुस्कुराते हुए वो चाय लेकर आई. “तुम अब भी २ चम्मच शक्कर लेते हो न?”, उसने चाय देते हुए कहा. मैं चुपचाप मुस्कुराते हुए चाय लेकर चुस्की लेने लगा. और चेतना मुस्कुराती हुई बगल के सोफे में बैठ कर मेरी ओर एक टक देखने लगी. हमारी शादी की साड़ी में कितनी खिली खिली लग रही थी वो. उसके गले में आज भी वोही मंगलसूत्र लटक रहा था जो मैंने शादी के दिन गोवा में उसे पहनाया था. कितनी भावुक और खुश हुई थी चेतना मंगलसूत्र पहनकर उस दिन!चेतना किचन में जाकर चाय छानने लगी. चेतना में पहले भी गृहिणी वाले सारे गुण थे. उसको चाय निकालते देख मेरे मन में यादें आने लगी कि कैसे सालो पहले जब वो मेरे लिए सुबह सुबह चाय बना रही होती थी तो मैं उसे पीछे से आकर उसकी कमर से लिपट जाता था. और आज? चेतना मेरे इतने पास होकर भी इतने दूर थी. क्या मुझे चेतना को गले लगा लेना चाहिए? दिल तो यही कह रहा था मुझसे.
“कैसी हो तुम, चेतना?”, मैंने उससे पूछा.
“तुम ही अंदाज़ा लगा लो मुझे देख कर.”, वो हँसने लगी और अपनी साड़ी के पल्लू को फैलाकर खुद के तन को दिखाते हुए बोली, “थोड़ी मोटी हो गयी हूँ न?”
उसकी बात सुनकर मैं भी हँस दिया. वो माहौल को थोडा हल्का करने को कोशिश कर रही थी. तो मैंने भी वही करते हुए उससे कहा, “अच्छी लग रही हो तुम! पहले से भी ज्यादा सुन्दर! तुम्हारे लम्बे बाल सचमुच बहुत जंच रहे है तुम पर!”
चेतना ने अपने चेहरे के सामने से बड़ी ही नजाकत से बाल हटाते हुए कहा, “हाँ, सालो से बढाने के बाद इतने लम्बे हुए है. तुमको तो पता है मुझे विग्स अच्छे नहीं लगते थे. बड़ा झंझट होता था उनका. पर अब अपने बालो को जैसे चाहे स्टाइल कर सकती हूँ. लेकिन अब इनका ख्याल भी बहुत रखना पड़ता है. औरत होना आसान नहीं है, निशांत! मैं तुम्हे लम्बे बालो में अच्छी लगती थी न?” चेतना अपने बालो को अपने हाथो से सहलाते हुए बोली. चेतना को हँसते हुए देख मुझे भी अच्छा लग रहा था. मैं भी चेतना की ओर देख कर मुस्कुरा दिया.
“अच्छा और क्या क्या फर्क लग रहा है मुझमे?”, चेतना ने अपने बालो को पीछे करते हुए कहा. अब तक अधिकतर बातें वही कर रही थी, और मैं सिर्फ कुछ शब्दों में ही अपना जवाब देता.
“हम्म…. ज़रा सोचने दो” मैं चेतना को ऊपर से निचे देखने लगा. “मुझे लगता है तुम्हारी हिप्स थोड़ी बड़ी हो गयी है.”, मैंने कहा. “एक मिनट निशांत! खबरदार, कहीं तुम मुझे मोटी तो नहीं कह रहे हो?”, चेतना ने आँखें बड़ी करते हुए कहा. “नहीं … नहीं… मोटी नहीं… मैं बस कह रहा हूँ कि अब तुम्हारी हिप्स पहले से भी ज्यादा अच्छी लग रही है. तुम्हारा फिगर और सुधर गया है.” मेरी बात सुनकर चेतना फिर मुस्कुराने लगी.
“अच्छा और क्या अंतर लग रहा है तुम्हे?”, चेतना ने अपनी साड़ी की प्लेट्स को अपने घुटनों पर रखते हुए मुझसे पूछा.
“तुम्हारे बूब्स! अब पहले से बड़े और ज्यादा सेक्सी लग रहे है!”, मैंने फिर चेतना को छेड़ते हुए कहा. मेरी बात सुनकर वो थोड़ी शर्मा गयी और अपनी साड़ी से अपने स्तनों को छुपाते हुए बोली, “बस बस अब मेरे बारे में और कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है.” शायद चेतना अब अपने बढे हुए वज़न से मेल खाते थोड़े बड़े ब्रेस्टफॉर्म का उपयोग करने लगी थी.
हम दोनों अब तक हँस खेल कर बाते तो कर रहे थे पर दिल की बात अब तक जुबां पर नहीं आई थी. पर हम दोनों की आँखें शायद वो सब कुछ कह रही थी जो हम कहना चाहते थे. मैं चेतना से उसे दिए हुए दर्द के लिए माफ़ी माँगना चाहता था, जानना चाहता था कि वो मेरे बगैर कैसी है, पर वो सब बातें न हुई. हम बस इधर उधर की बातें करते रह गए. मुझे पता चला कि चेतना Palo Alto, California में एक सॉफ्टवेर कंपनी में वाइज प्रेसिडेंट बन गयी है. कितनी आगे बढ़ चुकी थी चेतना, पर उसके गले का मंगलसूत्र बता रहा था कि आज भी वह बीते समय में अटक कर रह गयी है. आज भी उसी पुराने रिश्ते के इंतज़ार में.
“सुनो निशांत. चलो क्यों न हम कहीं बाहर किसी पब में चले? कुछ ड्रिंक्स के साथ बात हो जाए?”, चेतना ने कहा. कमाल की चीज़ होती है शराब भी. जो कभी कभी दिल की बातें कहना आसान कर देती है जो अक्सर हम होश में नहीं करते. मैंने भी सोचा कि इस बहाने हम बात तो कर सकेंगे. मैंने हाँ कर दी.
चेतना के चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी. उसने अपने पुराने अंदाज़ में कहा, “तो ठीक है, मैं कपडे बदल कर आती हूँ, तुम यही मेरा इंतज़ार कर लो” मैंने उसकी ओर एक बार फिर देखा, “सच कहूं चेतना? तुम इतनी सुन्दर लग रही हो तुम्हे चेंज करने की ज़रुरत नहीं है.”
“तुम्हारा बस चले तो मुझे हर जगह बस साड़ी पहन कर ही घुमाओगे! तुम्हे गोवा याद है? वहां भी तुमने मुझे यही साड़ी पहनने को कहा था?”, चेतना हँसते हुए बोली. वो उठ कर अपने कमरे की ओर जाने लगी. मैं भी उठकर चेतना के पीछे पीछे चल दिया. वो अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करने ही वाली थी कि मैंने उसकी कलाई को पकड़ कर उसे रोक लिया. “तुम्हे मुझसे छुपकर कपडे बदलने की ज़रुरत नहीं है चेतना”, मैंने कहा.
चेतना की नज़रे झुक गयी थी. जैसे शायद वो भी उस समय को वापस जीना चाहती थी जब हम दोनों के बीच कुछ न छुपा था. पर समय अब बदल गया था. उसने नज़रे झुकाए मुझसे कहा, “निशांत, तुम्हे शायद याद नहीं है पर मैं अब भी तुम्हारी पत्नी हूँ. तुम्हारा मुझ पर पूरा हक़ है. तुम चाहो तो अन्दर आ जाओ. पर … मुझे लगता है कि शायद ये ठीक न होगा.” सही तो कह रही थी वो आखिर अब समय बदल गया था.
“सुनो, तुम लम्बी फ्लाइट से आये हो. वहां सामने बाथरूम है. मेरे कपडे बदलते तक तुम भी नहा लो, तुम्हे भी अच्छा लगेगा.”, आज भी चेतना मेरी पत्नी की तरह ही मेरी फ़िक्र कर रही थी. उसकी बात मानते हुए मैं नहाने चला गया. कहीं न कहीं हम दोनों में पुराने समय का जीवन जीने की इच्छा थी, जिसकी वजह से हम दोनों के बीच एक टेंशन भी थी.
नहाने के बाद मैं तोवेल लपेट कर बाहर आकर अपने बैग से बदलने के लिए कपडे निकालने लगा. तभी चेतना अपने कमरे से बाहर आई. उसने एक घुटनों से भी छोटी मगर फुल स्लीव की ड्रेस पहन रखी थी जिसमे उसकी चिकनी लम्बी टांगें आकर्षक लग रही थी. ठण्ड के लिए उसने एक हलकी जैकेट भी पकड़ रखी थी अपने हाथो में. मुझे बेहद आकर्षक लग रही थी चेतना. अपने बालो को उसने खुला और सीधा स्टाइल किया था. उसकी ड्रेस गर्दन तक ढंकी हुई थी और उसके बढे हुए स्तन उस ड्रेस में बहुत उभर कर दिख रहे थे. आज भी कितनी सुन्दर थी मेरी चेतना!
“मैं तैयार हूँ चलने के लिए. अरे! तुमने अब तक कपडे नहीं पहने? तुम भी न! अब तक तय नहीं कर पाए होगे कि क्या पहनकर चलना है. इतने सालो में तुम अब तक नहीं बदले.”, चेतना ऐसा कहकर झुककर मेरे बैग से मेरे कपडे देखकर निकालने लगी. “ये लो! ये शर्ट और ये पेंट पहन लो. अच्छी लगेगी तुम पर. जूते वही पहन लेना जो तुम पहन कर आये थे.”, चेतना ने मेरे हाथ में कपडे थमाते हुए कहा. मैं चेतना की ओर देखता रह गया. आज भी मेरी पत्नी की तरह ही थी वो. झूठी शिकायत भरे गुस्से में भी इतने प्यार से मेरे लिए सब कुछ कर रही थी. जैसे हम दोनों के बीच कभी कोई दूरी ही नहीं थी. मैंने मुस्कुरा कर कपडे लिए और तैयार होने लगा.

“अच्छा यह बताओ कि कैसी लग रही हूँ मैं इस ड्रेस में?”, चेतना ने ऊँची हील में पोज़ करते हुए मुझसे पूछा. मैं तैयार ही हो रहा था पर फिर चेतना को देखते हुए मैं मोहित होने लगा. मेरा दिल मुझे याद दिला रहा था कि चेतना मेरी पत्नी है. “ज़बरदस्त लग रही हो चेतना! पर एक कमी है! इस ड्रेस में क्लीवेज नहीं दिख रहा तुम्हारा!”, मैंने उसे छेड़ते हुए कहा. आखिर चेतना की ड्रेस गर्दन तक जो ढंकी हुई थी.
“ओ मिस्टर निशांत! ३३ साल की शादीशुदा औरत हूँ मैं! अब क्लीवेज दिखाना ठीक नहीं लगता.”, चेतना ने अपने गले का मंगलसूत्र पकड़ कर दिखाते हुए कहा, “… इसलिए अब मैं अपनी सेक्सी टाँगे दिखाती हूँ!” चेतना अपनी टाँगे दिखा कर हँसने लगी. उसकी हँसी देख कर मुझे अच्छा भी लगा और दुःख भी हुआ कि कैसे चेतना आज भी अपने पति का इंतज़ार कर रही है.
मैं जल्दी ही तैयार हो गया. “मैं भी तैयार हूँ चेतना”, मैंने चेतना की तरफ पलट कर कहा. वो अपनी छोटी सी चमकती हुई काली रंग की हैण्ड पर्स चेक करने में मगन थी कि उसमे उसकी लिपस्टिक, उसका ड्राइविंग लाइसेंस, चाबी वगेरह रखी है या नहीं. मेरी आवाज़ सुनकर वो मेरी और पलटी. और तुरंत पर्स को छोड़ कर मेरे पास आकर मेरे शर्ट की कालर को पकड़ कर बोली, “हैण्डसम लग रहे हो निशु”. “निशु”, मैं “निशु” शब्द सुनते ही थोडा भावुक हो गया. चेतना मुझे निशु तब कहती थी जब उसे मुझ पर प्यार आता था. मेरा मन तो बहुत किया कि मैं उसे प्यार से गले लगा लू पर मेरे दिमाग ने मुझे एक बार फिर रोक लिया. “तुम भी बहुत खुबसूरत लग रही हो चेतना”, मैंने कहा. हम दोनों ने उस कमरे में लगे एक बड़े से शीशे में दोनों को साथ देखा. हम दोनों साथ में बहुत अच्छे लग रहे थे. शायद पुराने दिनों से भी ज्यादा अच्छे.
चेतना ने फिर अपनी पर्स उठाई, अपनी जैकेट हाथ में रखी, अपनी कार की चाबी उठाकर मुझसे बोली, “तो चले?” मैं उसके साथ बाहर चल दिया. उसकी हील की खट खट आवाज़ के पीछे पीछे मैं भी चल दिया.
कार में आज चेतना ड्राईवर सीट पर थी. उसने बैठते ही अपनी ड्रेस को थोडा निचे खिंच कर अपने पैरो को ढंकने की कोशिश कर रही थी. इतने साल US में रहने के बाद मैं जानता था कि लड़कियों की ऐसी आदत होती है. पर इतनी छोटी ड्रेस से पूरी टाँगे तो नहीं ढँक सकती थी. लम्बे खुले बालो में और लम्बी चिकनी टांगो में वो सेक्सी लग रही थी. पुराना समय होता तो मैं इस वक़्त उसे किस ज़रूर देता. काश कि ये पुराना समय होता, मैंने सोचा. चेतना ने पलट कर मेरी ओर देखा और मुस्कुरायी. उसने कार चालू की और हम चल दिए. इतने समय के बाद हम मिल रहे थे, पर चेतना ने अब तक मुझे ऐसा कुछ अनुभव नहीं कराया था कि जैसे मैंने उसका दिल तोडा था कभी. सहज प्यार के साथ ही बर्ताव कर रही थी वो मेरे साथ.
“चेतना, कितनी कॉंफिडेंट हो गयी हो तुम अब? तुम्हे याद है कि पहली बार जब हम घर से बाहर निकले थे तो तुम कितनी घबरायी हुई थी?”, मैंने चेतना से कहा.
“निशांत, १० साल हो चुके है उस बात को! वैसे भी हम सैन-फ्रांसिस्को जा रहे है, दुनिया का सबसे ज्यादा lgbt फ्रेंडली शहर है वो. वैसे हम जिस क्लब जा रहे है वहां बहुत से LGBT कम्युनिटी के लोग आते है. तुम्हे कोई ऐतराज़ तो नहीं है न?”, चेतना ने मुझसे पुछा.
“नहीं मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है”, मैंने कहा और बाहर सड़क की ओर देखने लगा. मुझे कम से कम इस बात की ख़ुशी थी कि चेतना अब अपनी इच्छा से बिना डर के बाहर जा सकती थी. अब उसे घर की ४ दिवारी में कैद होने की ज़रुरत नहीं थी.
जल्दी ही हम क्लब के बाहर थे. काफी हलचल थी वहां पर. LGBT कम्युनिटी के लोग काफी रंग-बिरंगे परिधान में होते है जो वहां आसानी से दिख जाते थे. हम दोनों अन्दर जाने लगे तो चेतना मेरी बांह पकड़ कर मेरे साथ चलने लगी. इतने सालो बाद उसका इतना करीब से स्पर्श मुझे सुकून दे रहा था.
अन्दर जाते ही चेतना ने वेटर से हमारे लिए ड्रिंक्स आर्डर की, “one chivas regal on the rocks and one gin with tonic water.” मैंने चेतना की ओर देख कर कहा, “तुम जीन पियोगी?” वो हँस दी. “निशु, किस लड़की को तुमने व्हिस्की पीते देखा है?” हमारी ड्रिंक्स आ गयी. पीते पीते हम दोनों में बातें शुरू होने लगी. और न जाने कब दिल की बातें आखिर बाहर आना शुरू हो ही गयी.
“चेतना, तुम्हे मेरी कभी याद नहीं आई?”, मैंने चेतना से पुछा. वो मेरी बात सुनकर दूसरी ओर देख कर हँस दी जैसे उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं ये सवाल भी कर सकता हूँ. मैंने फिर उससे पूछा.
“ये मंगलसूत्र देख रहे हो तुम, निशांत? जब से तुमने पहनाया है, आज तक इसे अपने सीने से लगाकर रखा है. अब तुम बताओ कि मुझे तुम्हारी याद आई होगी या नहीं?”, चेतना का जवाब थोडा कठोर था. मैं अपने बेवकूफी भरे सवाल पर शर्मिंदा था. जवाब देकर चेतना ने एक झटके में अपनी ड्रिंक ख़तम कर एक और ड्रिंक मंगवाई.
“तुम्हारा कभी मुझसे मिलने का मन नहीं हुआ चेतना?”, मैंने फिर पूछा.
“पता है निशांत? तुम सिर्फ ६ महीने के लिए US आये थे. ६ महीने. मैं वो ६ महीने किसी तरह तुम्हारा इंतज़ार करती रही पर तुम नहीं आये. मैं फिर भी इंतज़ार करती रही. तुमने कभी मेरे फोन का जवाब भी नहीं दिया न निशांत. तुम्हारे जीवन में क्या चल रहा है पता करने के लिए मुझे क्या क्या करना नहीं पड़ता था. हमेशा सोचती रहती थी कि आज नहीं तो कल तुम वापस आओगे. एक बार अपनी चेतना का हालचाल पूछने. कभी तो तुम अपनी चेतना को देखने आओगे, यही सोच कर मैं इंतज़ार करती रही थी, निशांत. पर ४ साल इंतज़ार करने के बाद भी तुम न आये, तो आखिर में मैंने US आकर तुमसे मिलना तय कर लिया था. वीसा टिकट सब कुछ हो चूका था. और मैं निकलने वाली थी. बहुत खुश थी मैं कि जल्दी ही तुमसे मिलने वाली हूँ. पर तब मुझे तुम्हारी और ईशा की शादी की खबर गौरव से मिली. अब उसके बाद कैसे मिलने आती मैं तुमसे, निशांत? तुम्हारी पहली पत्नी हूँ मैं! किसी और औरत के साथ कैसे देखती मैं तुम्हे?”, चेतना ने भरी हुइ आवाज़ में कहा. उसकी आँखों में आंसू आ रहे थे पर फिर भी वो मुस्कुरा रही थी. उसकी आवाज़ टूट भी रही थी. आखिर में उसने अपना मुंह मुझसे फेर कर अपने आंसू पोंछे. कितना दर्द दिया था मैंने अपनी चेतना को.
“पर मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है निशांत. तुम्हे पत्नी चाहिए थी और मैं? तुम्हे पत्नी का सुख नहीं दे सकती थी. मैं तुम्हारे लिए हमेशा पत्नी बन कर नहीं रहती न. आखिर में मैं पूरी औरत तो नहीं थी न?”, चेतना ने कहा.
“चेतना, ऐसा मत कहो. मेरी नजरो में तुम हमेशा पूरी औरत थी.”, मैंने कहा. “पर निशु, मैं चाह कर भी हमेशा तो तुम्हारी पत्नी बन कर नहीं रहती न. तुम सही कहते थे कि चेतन कभी न कभी तो बाहर आता.”, चेतना ने फिर कहा.
हम दोनों चुप हो गये. चेतना का दिल काफी बड़ा था कि वो मुझसे कोई उम्मीद न रख कर आज भी मेरी पत्नी बन कर जीवन जी रही है. उसने टेबल से एक पेपर नैपकिन उठा कर अपनी आँखें पोंछी. “अच्छा अब ज्यादा इमोशनल मत करो मुझे, मेरी आँखों का मस्कारा ख़राब हो जायेगा. मैं तुम्हारे लिए आज सुन्दर दिखना चाहती हूँ.”, वो फिर मुस्कुराते हुए बोली.
इमोशनल तो मैं भी बहुत हो रहा था पर मुझे शायद अपने इमोशन छिपाना आता था. मैं फिर चेतना की ओर देखता रहा. “चेतना, तुमने कभी किसी को डेट नहीं किया?”, मैंने पूछा.
“हाँ दो तीन लड़कियों के साथ चेतन बनकर डेट पर गयी थी. अच्छा भी लगता था. पर तुम नहीं समझ सकोगे मेरे जज्बातों को. मैं क्रॉस-ड्रेसर जो ठहरी. मेरे मन में हर लड़की से मिलने के बाद यह ख्याल आता था कि जैसी भावना और सुरक्षा का एहसास एक आदमी दिला सकता है वो किसी लड़की को डेट करके नहीं मिलती. अब कैसे कहूं कि तुमने अपने प्यार से मुझे कितना बिगाड़ दिया था! बिना पत्नी बने नहीं रह सकती थी मैं.”, चेतना ने फिर झूठी शिकायत की मुझसे और हँसने लगी.
“तो… तो तुम किसी लड़के के साथ भी डेट पर गयी कभी?”, थोडा असहज था मैं यह सवाल पूछकर.
चेतना कुछ देर चुप रही. “तुम भूल गए हो न मुझे? तुमको याद है जब हम पहली बार मिले थे, और हमने उस रात प्यार किया था? उसके बाद तुमने मुझसे बात करना बंद कर दिए था क्योंकि तुम्हे लग रहा था कि तुम गे नहीं हो और जो हुआ था वो सही नहीं हुआ था. उस वक्त वोही बात मैं भी सोच रही थी निशांत. मेरा आदमियों में तब भी इंटरेस्ट नहीं था और आज भी कोई इंटरेस्ट नहीं है. तुम्हारी बात अलग थी. जो एहसास तुमने मुझे दिलाया था उसके बाद तुम आदमी हो ये मेरे लिए इम्पोर्टेन्ट नहीं रह गया था. तुमने मुझे प्यार दिया था इसलिए मैं भी तुम्हे प्यार दे सकी. मैं भी कितनी अजीब हूँ न?”, चेतना ने कहा.
“सिर्फ तुम ही नहीं, मैं भी तो अजूबा हूँ न. हम दोनों का प्यार हम दोनों न समझ सके तो कोई और क्या समझेगा!”, मैंने कहा. हम दोनों हँस दिए.
“और वैसे भी तुम भूल रहे हो मिस्टर निशांत, मैं एक शादी शुदा औरत हूँ. किसी और आदमी के पास ऐसे कैसे चली जाती मैं?”, नशे में चेतना अब आज़ाद होकर बोल रही थी. उसने एक और ड्रिंक आर्डर की अपने लिए. मैंने और नहीं पिया. चेतना अब भी मेरी पत्नी बनकर मेरा इंतज़ार कर रही थी, सोच कर ही मुझे मन में ख़राब लग रहा था.
तभी एक आवाज़ आई. “हे चेतना! कैसी हो तुम? तुम आज यहाँ? और तुमने मुझे बताया तक नहीं ? वैरी बैड!”, एक अनजान लड़की हमारे टेबल के पास आकर चेतना से कहने लगी. गोरी लम्बी विदेशी लड़की थी और वो इंग्लिश में बात कर रही थी चेतना से. चेतना टेबल से उठ खड़ी हुई, और उसने उस लड़की को गले लगाकर उसके गालो पर किस किया जैसे दो लड़कियां इस देश में मिलने पर करती है. दोनों ने एक दुसरे का हाथ पकड़ लिया और एक दुसरे की ओर मुस्कुरा कर देखने लगी.
चेतना ने उस लड़की से कहा, “हे एम्मा! कैसी है तू? सॉरी यार, मेरा आने का प्लान नहीं था. पर ये आये हुए है तो मैंने सोचा आज एक दो ड्रिंक हो जाए इनके साथ. इनसे मिलो यह है मिस्टर निशांत!”, चेतना ने एम्मा से मेरी ओर इशारा करते हुए कहा. “… और निशांत ये है मेरी सहेली एम्मा”, चेतना बोली. चेतना के चेहरे पर एक बड़ी सी ख़ुशी थी.
एम्मा ने अपनी कुन्हनी से चेतना को छूते हुए बोली, “क्या यह वोही है?” और चेतना ने नज़रे झुकाकर हाँ में सर हिला दिया. एम्मा फिर मुझसे बोली, “तो आप है वो स्पेशल इंसान जिसके प्यार में यह लड़की पागल है! बहुत लकी है आप निशांत! सच बता रही हूँ आप नहीं होते तो इस प्यारी चेतना को मैं कबकी अपनी गर्लफ्रेंड बना लेती. पर आपके प्यार का जादू इसके सर से उतरता ही नहीं है” मैं कुछ कह न सका और बस मुस्कुराता रह गया.
“चेतना, देखो कितना अच्छा गाना चल रहा है. चलो न डांस फ्लोर पर थोड़ी देर डांस करते है.”, एम्मा चेतना से बोली और फिर मेरी ओर मुड़कर कहा, “निशांत, आपको आपत्ति न हो तो मैं आपकी प्यारी चेतना को एक गाने पर डांस के लिए ले जाऊं?”
चेतना भी मेरी ओर ऐसे देखने लगी जैसे मेरी इजाज़त का इंतज़ार कर रही हो. “हाँ, क्यों नहीं? पर एक गाने बाद प्लीज़ वापस आ जाना. हमें बहुत सी बातें करनी है.”, मैंने असहज होते हुए भी ऐसे कहा जैसे मुझे कोई परेशानी न हो.
एम्मा एक बहुत ही ऊँची कद की लड़की थी, चेतना से भी ऊँची, लगभग मेरे कद की थी वो. उसने जीन्स और स्लीवलेस टॉप पहना हुआ था जिसके निचे से उसकी नाभि दिख रही थी. उसके टॉप से उसके स्तन भी खुले हुए दिख रहे थे. मेरी चेतना तो कभी ऐसे कपडे नहीं पहनती. मैं उन दोनों को साथ डांस करते देखता रहा. चेतना बहुत खुश लग रही थी एम्मा के साथ. एम्मा चेतना को बांहों में लेकर डांस कर रही थी, और म्यूजिक की ताल पर चेतना को गोल गोल घुमा रही थी. दोनों के तन जैसे बिलकुल मिलकर लहरा रहे थे. बीच बीच में दोनों एक दुसरे की आँखों में देखते और चेतना मुस्कुरा कर पलट जाती. तो एम्मा चेतना को पीछे से बांहों में पकड़ कर नाचने लगती, और चेतना उसकी बांहों में समा जाती. चेतना इतना अच्छा डांस कर लेती है मुझे पता नहीं था. कितनी खुश लग रही थी वो डांस करके. पर पता नहीं क्यों? मन में चेतना को किसी और की बांहों में देख कर थोड़ी जलन सी भी हो रही थी. मैंने वेटर से एक और ड्रिंक मंगवाया और पीने लग गया. एक बार फिर चेतना के इंतज़ार में. एक गाना जब ख़तम हो गया तो मैंने देखा की जैसे एम्मा चेतना से एक और गाने के लिए रुकने को कह रही है, पर चेतना मान नहीं रही थी. आखिर चेतना एम्मा को मना करके हँसते हुए बांहों को फैलाकर ताल में कमर लहराते हुए वापस टेबल पर आ गयी.
“कोई बात नहीं चेतना. वैसे तुम डांस बहुत अच्छा कर लेती हो”, मैंने कहा.“सॉरी निशांत. तुमको इंतज़ार कराया.”, चेतना ने मुझसे कहा. “एम्मा भी न पीछे पड़ जाती है”, चेतना ने आगे कहा. वो पलट कर डांस फ्लोर पर एम्मा की तरफ ही देख रही थी. उसके चेहरे पर एक अलग ही ख़ुशी थी.
“मुझे एम्मा ने ही सिखाया है. तुमको तो पता चल ही गया होगा कि वो लेस्बियन है. पता है? वो मुझसे कहती है कि उसको मुझसे प्यार है. पर छोडो उसे. उसकी बात पर ध्यान मत देना, वो कुछ भी कहती रहती है. “, चेतना बोली. पर मेरे मन में दोनों का लहराता बदन और चेतना का एम्मा की ओर मुस्कुराता चेहरा फिर ध्यान आ रहा था. मुझे ये एहसास हो रहा था कि चेतना अब भी मेरा इंतज़ार कर रही है, पर उसे एम्मा के साथ देख कर लग रहा था जैसे चेतना को मेरी या किसी आदमी की ज़रुरत नहीं है, जो कोई भी मेरी चेतना को उसके रूप में स्वीकार करके प्यार दे सके, वो उसके साथ खुश रह सकती थी. शायद चेतना को भी पता नहीं था कि शायद एम्मा वो लड़की है जो उसे वो प्यार दे सकती है जो मैं नहीं दे सका.
मैंने फिर चेतना की ओर देखा. बड़ी मुश्किल से तो चेतना और मैंने अपनी दिल की बात करना शुरू किये थे. पर एम्मा ने आकर सब गड़बड़ कर दी. एक बार फिर बात शुरू करनी होगी.
“चेतना, हम वापस घर चले? यहाँ म्यूजिक थोडा ज्यादा तेज़ है, और लोग भी बहुत आ रहे है. यहाँ अब अच्छे से बात नहीं हो पायेगी. शायद अब हमें एकांत में बात करने की ज़रुरत है. घर में व्हिस्की तो होगी ही तुम्हारे पास?”, मैंने चेतना से कहा. चेतना मेरी बात मान गयी. लग रहा था कि उस पर शराब का नशा हावी हो रहा था.
चेतना ने ४-५ ड्रिंक पी ली थी इतने कम समय में, जिसका असर बढ़ता जा रहा था. इसलिए कार मैंने चलाने का फैसला लिया. बाहर जाते जाते वो मुझसे बिलकुल चिपक कर लटक कर चल रही थी और मैं नशे में धुत्त चेतना को संभाल रहा था. मैंने कार का दरवाज़ा खोल उसको बैठाया, और उसके पैरो को पकड़ कर कार के अन्दर किया. उसकी ड्रेस उठ रही थी तो खुद मैंने ही उसे खिंच कर ठीक किया, उसकी सीट की बेल्ट लगायी और कहा, “संभल कर बैठना. कुछ प्रॉब्लम लगे तो बताना, मैं गाडी रोक दूंगा.” मुझे डर था कि कहीं चेतना को नशे में चक्कर न आ जाए.
“१० साल कैसे बीत गए निशांत? इतने इंतज़ार के बाद आज तुम आये हो और मैं शराब पीकर टुन्न. मैं भी कैसी बुरी हूँ न? निशांत, क्या हम कभी साथ हो सकते थे? क्या कोई रास्ता था कि हम दोनों एक दुसरे के साथ जीवन बिता सकते? मैं तुम्हे वापस आने नहीं कह रही पर क्या कुछ हो सकता था हमारे बीच?”, चेतना ने बाहर देखते हुए कहा.क्लब से चेतना के घर तक का रास्ता करीब ४५ मिनट का था. उसने अपनी आँखें बंद कर ली थी. मैं चेतना का मासूमियत भरा चेहरा देखता रहा. बंद आँखों के बाद भी अब भी गले में अपने लटके मंगलसूत्र को पकड़ कर रखी हुई थी वो. एक बार फिर मेरे मन में चेतना के लिए ढेर सारा प्यार उमड़ आया था. करीब १० मिनट बाद चेतना ने आँख खोली, और अपनी कार में रखी हुई पानी को बोतल खोल कर पीने लगी. “सॉरी निशांत, मैंने आज ज्यादा ड्रिंक कर ली. मुझे कंट्रोल रखना चाहिए था.”, चेतना ने पानी पीते हुए कहा. शायद पानी पीकर उसे ठीक लगने लगा था. अब वो कार के बाहर देख रही थी.
“मुझे पता नहीं चेतना कि हम क्या कर सकते थे. हम दोनों एक दुसरे से सच्चा प्यार तो करते थे. पर शायद इस जनम में हम साथ नहीं हो सकते. पर जो हुआ सो हुआ”, मैंने कहा. मेरी दो टुक बात शायद चेतना को पसंद नहीं आई. वो चुपचाप अपना मंगलसूत्र पकड़ कर कार से बाहर सड़क पर देखती रही. मैं भी चुपचाप कार चलाता रहा.
कुछ देर में हम चेतना के घर के बाहर पहुच चुके थे. पता नहीं क्यों पर हम दोनों चुपचाप कार में बैठे रहे. मैं और वो एक दुसरे की आँखों में देखते रहे. कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था. फिर मेरे दिल और दिमाग दोनों ने मुझसे कुछ कहा. मुझे वो करने को कहा जो मुझे बहुत पहले कर लेना चाहिए था. मैंने चेतना की ओर देखा और उसकी ओर बढ़कर उसकी गर्दन पर हाथ रखकर उसके गले से उसका मंगलसूत्र उतार कर अपने हाथ में रख लिया. मुझे याद आ रहा था कि कितने प्यार से पहली बार मैंने यह चेतना को पहनाया था पर अब चेतना को इसके बंधन से मुक्त करने का समय आ गया था. “चेतना अब तुम्हे बीते समय में बंध कर रहने की कोई ज़रुरत नहीं है.”, मैंने चेतना के चेहरे पर हाथ रखते हुए कहा. चेतना फुट फुट कर रोने लगी. “पर निशु, यही तो मेरी आखिरी उम्मीद थी, इसी के सहारे तो मैं तुमसे जुडी हुई थी”, चेतना रोते हुए बोली.
मैंने चेतना को गले लगा लिया और कहा, “चेतना, हमारा प्यार सच्चा था पर अब यह तुम्हारे लिए बंधन हो गया था. तुम्हे भी प्यार की ज़रुरत है. तुम भी प्यार की हकदार हो. अब मेरा इंतज़ार करने की कोई ज़रुरत नहीं है. मुझे लगता है कि एम्मा तुम्हारे लिए सही जीवनसाथी होगी.”
“पर निशु, मेरा और एम्मा के बीच कुछ भी नहीं है.”, चेतना ने कहा. “… और जब तक यह मंगलसूत्र तुम्हारे गले में है, तब तक कुछ होगा भी नहीं.”, मैंने चेतना को रोकते हुए कहा, “अब आगे बढ़ो चेतना. तुम खुबसूरत हो. काबिल हो. तुम्हे अब सिर्फ करियर ही नहीं जीवन में प्यार के रास्ते में भी आगे बढ़ने की ज़रुरत है.”
चेतना मुझे गले लगाकर कुछ देर और रोती रही. सिर्फ वो ही नहीं, मैं भी तो रो रहा था. सालो पुराने दर्द आखिर बाहर आ रहे थे. पर आज जो हो रहा था, वो सही था. एक बार फिर से वही दर्द महसूस कर रहा था मैं जो १० साल पहले चेतना को छोड़ते वक़्त महसूस किया था.
कुछ देर बाद किसी तरह हम दोनों थोड़े संभल गए. मैंने चेतना की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, “चेतना, अब मुझे अपने होटल जाना चाहिए. मैं टैक्सी बुला लेता हूँ. हम कल फिर मिलेंगे.” चेतना मेरी बांहों से निकल कर मुझसे बोली, “निशांत, मेरी खातिर बस आज की रात मेरे घर रुक जाओ. एक बार जी भर कर तुम्हे देख लेना चाहती हूँ मैं.” उसकी आँखों की कसक देख कर मैं मना नहीं कर सका.
घर के अन्दर आकर हम दोनों वहां से बालकनी में जाकर बैठ कर बातें करने लगे. हम दोनों पुरानी बातों को याद करके हँस रहे थे. एक दुसरे के नए जीवन को समझ रहे थे. चेतना को हँसते देखना मुझे वैसे भी अच्छा लगता था. उसका हाथ पकड़ कर बातें करना मुझे आज भी उतना ही अच्छा लगा. पर हम दोनों के बीच अब एक सीमा भी थी जिसे उस रात पार नहीं करना था, वरना एक बार फिर सब बिगड़ जाता. हम दोनों बहुत देर तक वहीँ बैठ कर आसमान को ओर देख कर बातें करते रहे, और चेतना मेरे सीने पर सर रख कर आखिरी बार मेरे साथ का अनुभव संजो रही थी. हम दोनों का नशा भी उतर चूका था, और मन भी खुश था.
इसी बीच मैंने रूककर चेतना से कहा, “चेतना, एक बात कहू? बुरा तो नहीं मानोगी?” चेतना ने सर उठाकर मेरी ओर देखा और कहा, “तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगी आज”
“पता है? मेरा एक जिगरी दोस्त था जो ६ सालो तक मेरा रूममेट था. उससे मिले मुझे १० साल हो गए है. क्या मैं उससे मिल सकता हूँ?”, मैंने चेतना से कहा. चेतना मुस्कुरा दी, और बोली, “तुम यहीं रुको ५ मिनट, भेजती हूँ मैं उसे.”
और करीब २० मिनट बाद मेरा बेस्ट फ्रेंड, मेरा रूममेट चेतन मेरी आँखों के सामने था. “अबे साले! आज तो तू मेरे हाथ से पिट कर रहेगा. साले, तू १० साल में मुझसे एक भी बार मिलने नहीं आया!”, मैंने चेतन को देखते ही कहा. “मुझे क्या बोल रहा है साले, तू ही तो लड़की के चक्कर में मुझे छोड़ कर चला गया था.”, चेतन ने कहा. हम दोनों जिगरी दोस्त गले मिले जैसे दो दोस्त मिलते है.
“चल थोडा दारु शारू पीते है. मेरे लिए व्हिस्की निकाल. और तू लड़कियों वाली ड्रिंक जीन पी ले”, मैंने चेतन का मज़ाक उड़ाते हुए कहा. “अरे भाड में जाए जीन, आज तो स्कॉच व्हिस्की पियूंगा मैं. यार आया है आज मेरा. वैसे पता नहीं साला कोई जीन जैसी बकवास चीज़ कैसे कोई पि सकता है भला?”, चेतन बोला. हम दोनों हँस दिए. अब बारी थी दो दोस्तों के बात करने की. काम, शादी, घर, परिवार, रिश्तेदार,न जाने क्या क्या बात करते रहे हम रात भर. हम दोनों की दोस्ती फिर से एक बार जिंदा हो रही थी. और बात करते करते, समय और रात दोनों ही न जाने कैसे कट गए.
अगले दिन बिना नींद पूरी किये मैं अपने काम के सिलसिले में बाहर गया. मुश्किल तो था. कैलिफ़ोर्निया में २ दिन और मैं काम के सिलसिले में रहा, और चेतन से मैं शाम को मिलता रहा. उसके बाद चेतन मुझे एअरपोर्ट भी छोड़ने आया था. मैं वापस अपने घर जा रहा था जहाँ ईशा मेरा इंतज़ार कर रही थी. मैंने अपने दोस्त चेतन को गले लगाया और कहा, “एम्मा से ज़रूर बात करना. गोरी लड़की पटा कर हम दोस्तों का सर गर्व से ऊँचा करना”. वो हँस दिया.
लम्बी यात्रा के बाद मैं जब अपने घर वापस पंहुचा तो मेरी पत्नी ईशा ख़ुशी से मेरा इंतज़ार कर रही थी. मेरे आते ही उसने मुझे गले लगा लिया. “निशांत, तुम्हारे लिए एक खबर है.”, ईशा ने मुझसे कहा. और फिर उसने अपने पेट पर हाथ रखते हुए बोली, “तुम पापा बनने वाले हो!” यह खबर सुनते ही मैंने ईशा को गले लगा लिया. हम दोनों काफी समय से इसके लिए कोशिश कर रहे थे. आज तो अचानक ही जैसे जीवन में सब कुछ अच्छा हो रहा था. कहते है न कि जब अच्छा होना शुरू होता है तो अच्छा ही अच्छा होता है.
मेरे कैलिफ़ोर्निया से वापस आने के करीब ६ महीनो बाद खबर आई कि चेतना और एम्मा शादी कर रहे है. दोनों ने एक छोटी सी शादी US में की, जहाँ कुछ ख़ास लोगो को बुलाया गया था. दोनों शादी में दुल्हनें बनी थी, एम्मा अमेरिकन दुल्हन की तरह पारंपरिक सफ़ेद गाउन में सजी थी, और चेतना एक भारतीय दुल्हन की तरह लाल साड़ी में. बिलकुल परियां लग रही थी दोनों. दोनों तो बस एक दूजे के लिए बने हुए लग रहे थे. पर सच कह रहा हूँ, चाहे जो भी हो, जब अपनी गर्लफ्रेंड की शादी किसी और से होती है तो बड़ी जलन होती है. पर जानते हो उससे ज्यादा जलन कब होती है? जब आपके जिगरी दोस्त की किसी गोरी विदेशी लड़की से शादी होती है! चेतन और एम्मा ने भारत में एक बड़ी शादी धूम धाम से की थी, जहाँ चेतन दूल्हा बन कर आया था और एम्मा भारतीय लिबास में चमचमाती खिलखिलाती दुल्हन.
पर अंततः मेरे पास भी प्यारी पत्नी ईशा थी, और मैं चेतन-चेतना और एम्मा के लिए खुश था. और कुछ महीनो के बाद जब हमारी बेटी का जनम हुआ तो ईशा और मेरी ज़िन्दगी में भी खुशियों का सागर भर गया. और हमारी उस प्यारी सी बेटी को हमने नाम दिया: चेतना? नहीं, हमने ये नाम नहीं दिया! नाम को भूल जाइये, पर कैलिफ़ोर्निया में चेतना से मुलाक़ात के बाद आज हम सभी अपनी अपनी ज़िन्दगी में खुश है.
समाप्त
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