Skip to main content

परिणीता भाग ९

दूकान के भीतर पहुँच कर हमने एक शॉपिंग कार्ट ली। बहुत सा सामान जो खरीदना था हमें। थोड़ा आगे बढ़ते ही थोड़ी दूर में एक औरत अपने पति के साथ दिखाई दी। उसे देखते ही मेरे और परिणिता दोनों के मुंह से यह शब्द एक साथ निकले, “That bitch!”। हम दोनों ने थोड़ा आश्चर्य से एक दुसरे की ओर देखा क्योंकि दोनों ने एक ही बात एक साथ कही। सामने जो औरत थी, वह अदिति थी, हम दोनों के साथ एक ही हॉस्पिटल में वह भी डॉक्टर है। हम पति-पत्नी काफी हिम्मत करके घर से बाहर निकले थे, और हमने बिलकुल न सोचा था कि हम आज किसी जान पहचान के व्यक्ति से मिलेंगे। हम दोनों को अभी तक अपने नए शरीर की आदत न थी और न ही यह भरोसा कि मैं प्रतिक, परिणीता के रूप में सहज रहूँगा और परिणीता, प्रतीक के रूप में। किसी और के लिए यह कल्पना करना तो असंभव था कि हमारे शरीर एक दुसरे के साथ बदल गए है, पर उन्हें हमारे व्यव्हार में कुछ बदलाव तो दिखाई दे ही सकता है।
परिणीता ने मेरी ओर देखा और मुझसे बोली, “सुनो प्रतीक। डॉक्टर अदिति मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। उससे मिलने पर प्लीज ऐसा बर्ताव करना जैसे तुम एक आदर्श पत्नी हो जो अपने पति प्रतीक को बेहद प्यार करती है। अदिति की नज़र में तुम आज परिणीता हो, और मैं तुम्हारा पति प्रतीक। क्या तुम मेरी खातिर यह कर सकते हो?”
मैंने परिणीता का हाथ थाम कर उसे भरोसा दिलाया कि सब ठीक होगा और कहा, “देखती जाओ, मैं कितनी अच्छी तरह परिणीता बनता हूँ। तुमसे प्यार जो है इतना कि मुझे तुमसे प्यार का नाटक करने की ज़रुरत नहीं है। तुम्हारा रूप बदला है आत्मा नहीं। मैं अब भी तुम्हे उतना ही प्यार करता हूँ।”

“अब ड्रामा मत करो प्रतीक! दूकान में अच्छी खासा हीटर चल रहा है। अदिति हमारे पास आ रही है, तैयार हो तुम?”, परिणीता मुझसे बोली। मैंने हाँ का इशारा किया।अब तक अदिति ने हमें देख लिया था। उसने नीली रंग की साड़ी पहनी हुई थी। अदिति ने हमें देख कर हाथ से इशारा किया और हमें पास बुलाने लगी। मैंने परिणीता से शिकायत भरे लहजे में कहा, “देखो परी, अदिति ने साड़ी पहनी हुई है और तुमने मुझे ठण्ड के इस मौसम में यह छोटी सी ड्रेस पहनने को दी। उसे तो देख कर ही लग रहा है कि उसे कितना आराम महसूस हो रहा होगा इस मौसम में साड़ी पहन कर।”
अदिति अब बेहद करीब आ चुकी थी। वह हमारे पास पहुचते ही मुझसे गले लग गयी और बोली, “हाय परिणिता! कैसी हो तुम? तुम दोनों पति पत्नी भी सब्जी किराना खरीदने आये हो आज!” गले मिलकर थोड़ा पीछे होते हुए उसने मेरी दोनों कलाईयाँ ऐसी पकड़ी जैसे वो मेरी जन्मों की सहेली हो। दो औरतों का गले मिलना किसी पुरुष और औरत के गले मिलने से बहुत अलग होता है। मुझे यह बाद में परिणीता ने बताया था कि जब एक औरत दूसरी औरत से गले मिलती है तो वो अपने स्तन को बेहद हलके से दुसरे के स्तनों को छूती है। जबकि पुरुष स्त्री ज़ोरो से गले लगते है। मुझे यह पता न था। मैं तो उम्मीद भी न की थी कि अदिति आकर मुझे गले लगा लेगी। थोड़ी सी लड़खड़ाते हुए मैं अपनी आदत के अनुसार ज़ोर से गले लगा रही थी। गलती ही सही, अपने स्तन से दुसरे स्तन दबाने का भी मज़ा ही कुछ और है। खैर उस वक़्त मज़े की ओर मेरा ध्यान न था। अदिति एक टक मुस्कुराते हुए मेरी ओर देख रही थी। वो अपने सवाल के जवाब का इंतज़ार कर रही थी। ऐसा लगा मानो जीवन का सबसे कठिन सवाल पूछ लिया हो मुझसे। उसके गले मिलने ने मुझे थोड़ा सा बौखला दिया था।
मैंने थोड़ा खुद को संभाल और बोली, “हाँ, यार। संडे ही समय मिलता है यह सब करने का। तू बता? आज बड़ी अच्छी लग रही हो? क्या ख़ास बात है जो आज तुमने साड़ी पहनी है?”, मैंने ज़रा एक सहेली की तरह अपने हाथो से उसकी बाहों पे हल्का सा धक्का देते हुए कहा। मुझे लगा की मैंने परफेक्ट औरत की तरह ही बर्ताव किया था। पर मेरे दिमाग में कुछ और भी चल रहा था। मुझे अदिति के चेहरे को देख कर बड़ा गुस्सा आ रहा था। मैं समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यों हो रहा है। इसके पहले पुरुष रूप में मेरा अदिति से हॉस्पिटल में थोड़ा बहुत मिलना होता रहा था, और कभी भी मुझे उससे किसी प्रकार की दिक्कत न थी। हम काम की बातें करते थे और अपने अपने रास्ते चल देते थे। मेरे गुस्से की वजह मुझे समझ नहीं आ रही थी। कभी अदिति ने ऐसा कुछ किया भी न था कि मुझे ऐसा महसूस हो।

“अब इन्हें कौन समझाए की साड़ी पहनना, सजना संवरना कितनी मेहनत का काम है। यहाँ अमेरिका में तो साड़ी पहनने की आदत है नहीं। मुझे तो पूरे समय डर लगा रहता है कि गलती से मेरी सैंडल मेरी प्लेट पर न चढ़ जाए और पूरी साड़ी खुल जाए। तुझे पता नहीं है कि मैंने कितनी पिन लगायी है इस साड़ी में जगह जगह।”, यहाँ की दूसरी भारतीय औरतों की तरह अदिति भी साड़ी पहनने की मुश्किलों की बात करने लगी। मैं तो आदमी होकर भी बड़े आराम से साड़ी पहन लेती हूँ और मुझे कोई दिक्कत नहीं होती। ये औरतें पता नहीं क्यों इतनी शिकायत करती है, वह भी तब जब वो मुश्किल से साल में २-३ बार पहनती है कुछ घंटो के लिए। परिणीता कभी शिकायत तो नहीं करती पर वो भी बहुत ख़ास दिनों पर ही साड़ी या लहंगा पहनती है।अदिति ने बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा, “आज हमारी शादी की सालगिरह है। और मेरे हसबैंड को आज मुझे भारतीय नारी की तरह सजे देखना था। बस इनकी फरमाईश पूरी कर रही हूँ।” मैं भी हँसते हुए बोली, “हाँ। सालगिरह तो दोनों की होती है पर फायदा सिर्फ पति उठाते है।”
अदिति की बात सुनकर मैं ज़ोरो से हंस दी। फिर भी मेरे दिमाग में न जाने क्यों उसे देखकर गुस्सा बढ़ता जा रहा था। “चाहे जो भी बोल तू, आज तू और तेरी साड़ी दोनों ही बेहद सुन्दर लग रही है। वैसे कहाँ से खरीदी थी यह? बहुत ही सुन्दर है। सिल्क है यह?”, मैंने उसके पल्लू को हाथ में पकड़ कर उसके पल्लू और साड़ी की बॉर्डर को निहारते हुए पूछा। जैसे औरतें करती है। उसकी साड़ी में मेरा इंटरेस्ट तो जाग रहा था। उसका बड़ा सा मंगलसूत्र साड़ी पर निखर के बाहर आ रहा था। काश, कभी मुझे भी कोई साड़ी गिफ्ट करे। मैं कुछ देर के लिए सोचने लग गयी कि मैं ये साड़ी पहन कर कैसे लगूंगी। ये सोचना थोड़ा अजीब सा भी था क्योंकि मेरे दिमाग में जो तस्वीर बन रही थी वो कभी मुझे मेरे पहले वाले प्रतीक के रूप में दिख रही थी तो कभी मेरे नए स्त्री वाले रूप में। ऐसा था मानो दो अलग अलग दिमाग आइडिया दे रहे है।
t2
अदिति को यह साड़ी उसकी सास ने गिफ्ट की थी। मैं उसकी साड़ी की बॉर्डर और डिजाईन निहार रही थी। उसका बड़ा सा मंगलसूत्र साड़ी पर निखर के बाहर आ रहा था। काश, कभी मुझे भी कोई साड़ी गिफ्ट करे।
“हाँ। यह मैसूर सिल्क साड़ी है। पिछले साल मेरी सास ने गिफ्ट की थी। वो हर साल मुझे २-३ साड़ी दे जाती है। इतनी बार तो मुझे यहाँ पहनने का मौका भी नहीं मिलता!” कहीं अदिति अब सास बहु के ड्रामे के बारे में बातें न शुरू कर दे। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही अदिति है जो मुझसे बिलकुल प्रोफेशनल तरीके से मिलती थी और अपने काम के बारे में बात करती थी। और आज मैं उससे साड़ी, पति और सास के बारे में एक सहेली की तरह बात कर रही थी। वहीँ दूसरी ओर परिणीता, अदिति के पति कबीर से बिलकुल दो सामान्य आदमियों की तरह हाथ मिलाकर कुछ एक दुसरे के काम के बारे में बात कर रहे थे।
तभी परिणीता, जो कि दुनिया की नज़र में प्रतीक है, ने हमारी ओर पलट कर कहा, “लेडीज़! आप लोग अपनी साड़ियों की बात बाद में कर लेना। पहले तो अदिति और कबीर, आप दोनों को बहुत बधाई हो सालगिरह की।” मैंने भी कहा, “हाँ। सच में बहुत बधाई हो तुम दोनों को। पर कबीर, सालगिरह के दिन कोई भला पत्नी को किराना दूकान लेकर जाता है?”
अदिति और कबीर ज़ोर से हँस दिए। फिर कबीर ने कहा, “अरे भाभी जी, हम लोग इसके बाद रोमांटिक लंच के लिए एक अच्छे रेस्टोरेंट जा रहे है।” कबीर और अदिति साथ में बड़े अच्छे लग रहे थे।
“चलिए अच्छा है, साथ में पूरा दिन एन्जॉय करिये। हम तो अपनी प्यारी पत्नी के कहने पर किराना खरीदने आये है, और उसके बाद घर पे ही समय बिताएंगे।”, परिणीता ने कहते कहते मेरे करीब आकर अपने हाथ मेरी कमर पर रख दिया। “हाँ। ये मेरे लिए घर में आज खाना जो बनाने वाले है, तो मैंने सोचा कम से कम किराना खरीदने में इनका साथ दे दूं वरना ये आधा सामान तो लाना भूल जाते है। “, मैंने मज़ाकिया लहज़े में कहा।
मेरी कमर पे परिणीता का हाथ था तो मैं भी निःसंकोच परिणीता के सीने के करीब आ गयी। हम दोनों की हिप्स आपस में चिपक रही थी और मेरा बाईं ओर का स्तन परिणीता के सीने से दब रहा था। बिलकुल वैसे ही जैसे नए प्रेमी युगल एक दुसरे के कंधे पर सर रख कर खड़े होते है या चलते है। परिणीता के साथ पति-पत्नी वाली नोकझोंक मुझे अच्छी लग रही थी। उसे इतने करीब महसूस कर के प्यार भी महसूस हो रहा था। जी कर रहा था कि उसे किस कर लूँ। कल तक जब मैं पुरुष रूप में थी, तब तो मैं कई बार उसे किस कर ही लेती थी। हमने थोड़ी देर और अदिति और कबीर से बात की। और पूरे वक़्त हम दोनों पति-पत्नी एक दूजे को पकड़े हुए थे। बीच बीच में हम दोनों एक दुसरे की ओर प्यार से भी देखते, और कभी कभी मैं एक अच्छी पत्नी की तरह शर्मा जाती। हमने एक बार फिर अदिति को बधाई देकर उनसे विदा ली।
इसके बाद हम किराने का सामान लेने लगे। परिणीता ने मेरा एक हाथ साथ में पकड़ रखा था। शरीर बदलने के बाद भी हम दोनों पति-पत्नी में प्यार अनुभव करके मुझे ख़ुशी महसूस हो रही थी। पर अब एक बात मुझे बेचैन करने लगी थी। मुझे अब तक समझ नहीं आया था कि मुझे अदिति को देख कर गुस्सा क्यों आ रहा था। फिर भी खरीददारी करने में मैं मशगूल हो गयी।
“सुनिये। हमें ज़रा तूर दाल का पैकेट खरीदना है। मेरा उस ऊंचाई तक हाथ नहीं पहुच रहा है। आप निकाल देंगे प्लीज़?”, मैंने परिणीता से कहा। स्त्री-रूप में मेरा कद अब पहले से १० इंच कम था। इसलिए मुझे परिणीता से कहना पड़ा। आखिर मेरे पहले वाले तन में अब परिणीता थी।
परिणिता ने मेरे पास आकर कहा, “प्रतीक, वो दोनों अब जा चुके है। अब तुम्हे पत्नी होने का नाटक करने की आवश्यकता नहीं है।” जवाब में मैंने धीमी आवाज़ में परिणीता के कान में कहा, “मैं जानता हूँ पर यह पटेल स्टोर है। यहाँ सभी हिंदी समझते है। मैंने यदि औरत की बॉडी में पति की तरह बात की तो लोग पलट कर हमारी ओर देखने लगेंगे।” परिणीता मान गयी। इसके बाद हमने सामान ख़रीदा, और बिल अदा करने काउंटर पर गए। काउंटर पर एक भारतीय सज्जन थे। उन्होंने हमें देख कर कहा, “नमस्ते भाभी जी। नमस्ते भैया। आप को सब सामान तो मिल गया न?” इस वक़्त पुरुष होने के नाते परिणीता ने जवाब दिया और पैसे अदा किये। आमतौर पर हम क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते है पर आज कैश का उपयोग किया क्योंकि मुझे यकीन नहीं था कि परिणीता मेरे क्रेडिट कार्ड के हस्ताक्षर कॉपी कर सकेगी।
दूकान से बाहर निकलते ही मैंने सामान के सारे बैग परिणीता को थमा दी और खुद सिर्फ अपना लेडीज़ पर्स कंधे पर टांग कर चलने लगी। “अब तुम सामान कार तक ले जाने में साथ नहीं दोगे?”, परिणीता ने कहा। “अरे, तुम अपनी नाज़ुक पत्नी से इतने भारी बैग्स उठावाओगे?”, मैं अब तक पत्नी के रोल में ही थी। पति-पत्नी के इस उलटे रोल में मुझे मज़ा भी बहुत आया। परिणीता भी इसी तरह मुझसे सभी बैग्स उठवाया करती थी। आज उसे पता चलेगा कि पति भी बड़ी मेहनत करते है।
कार में आकर बैठते ही स्त्री धर्म के अनुसार मैंने अपनी ड्रेस ठीक की। परिणीता भी आकर बैठ गयी। उसने बैठते ही मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “थैंक यू प्रतीक। तुम तो मुझसे भी बेहतर पत्नी का रोल किये आज। मैं उस बुरी औरत अदिति के सामने हमारा इम्प्रैशन कम नहीं होने देना चाहती थी।”
“परी। यह हमारा टीमवर्क था। हम दोनों को ज़रुरत थी इसकी। और इस टीमवर्क में मुझे बहुत मज़ा भी आया।”, मैंने कहा। “मुझे भी बहुत अच्छा लगा प्रतीक!”, परिणीता ने भी चहकते हुए कहा। कल तक यदि ऐसा मौका आया होता जब हम दोनों एक दुसरे से इतना खुश होते तो मैं अपनी पत्नी परिणीता को तुरंत किस कर लेती। आज भी वही चाहत थी पर आज मैं औरत हूँ। मुझे पता नहीं था कि परिणीता क्या सोचेगी। इसलिए मैंने उसे किस नहीं किया।
“वैसे परी, मुझे यह समझाओ की आखिर तुम्हे अदिति पसंद क्यों नहीं है। मुझे तो बड़ी सीधी सादी काम से मतलब रखने वाली औरत लगती है।”, मैंने परिणीता से पूछा। परिणीता ने थोड़ा रुक कर कहा, “अदिति हॉस्पिटल में दूसरो की बहुत चुगली करती है। और आज जो वो सती सावित्री होने का ढोंग कर रही थी, सब दिखावा है। मैंने उसे पिछले हफ्ते एक जूनियर डॉक्टर की बांहों में देखा था।”
ओह माय गॉड। मेरे दिमाग में वह सीन तुरंत आ गया। ऐसा लग रहा था जैसे मैंने हॉस्पिटल में एक दरवाज़ा खोला और मैं अदिति को किसी दुसरे डॉक्टर से लिपटे किस करते देख रही हूँ। और उसके तुरंत बाद दरवाज़ा बंद करके मैं वहां से चली जाती हूँ। जहाँ तक मुझे याद है मैंने तो ऐसा पहले कभी देखा नहीं था। तो फिर वह सीन मुझे इतना साफ़ क्यों दिखाई दे रहा था।
“तुम क्या सोच रहे हो प्रतीक? तुम्हे तो अदिति सीधी सादी ही लगेगी। कोई सुन्दर औरत दिख जाए तो तुम्हे उसमे कुछ बुराई नहीं दिखेगी कभी। टिपिकल आदमी हो तुम!”, परिणीता मुझसे बोली।
“एक्सक्यूज़ मी, मैडम। मेरी शादी दुनिया की सबसे सुन्दर औरत से हुई है। उससे सुन्दर कोई नहीं है तो मैं क्यों भला अदिति को भाव देने लगा। वैसे भी अभी मैं दुनिया की सबसे हॉट एंड सेक्सी परिणीता के शरीर में हूँ। अदिति वगेरह में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं।”, मैंने अपने लंबे बालो को झटकते हुए एक तरफ कंधे पर करते हुए मजाकिये लहजे में कहा।
परिणीता हंस दी। “अब तुम ज्यादा हॉट होने की कोशिश न करो! बाल झटक के अदाएँ दिखाना तुम्हारे बस की बात नहीं।”, कुछ पल रुक कर फिर उसने कहा, “प्रतीक मुझे तुम्हे कुछ बताना है।”
“क्या बात है परी?”, मैंने पूछा। परिणीता गंभीर लग रही थी। “प्रतीक। मुझे पूरा यकीन तो नहीं है पर मुझे लगता है कि तुम्हारे तन में आने के बाद से मैं तुम्हारे दिमाग को पढ़ सकती हूँ। मेरे कहने का मतलब है कि मैं तुम्हारी यादों को देख सकती हूँ।”
मैं चुप थी। “प्रतीक। मुझे पता है कि अदिति को लेकर तुम्हारे दिमाग में कुछ नहीं है। क्योंकि उसे देखते ही मेरे दिमाग में वो याद आ गयी थी जब तुम पिछले हफ्ते अदिति से ५ मिनट के लिए मिले थे। तुम दोनों के बीच क्या बात हुई और तुम कैसा महसूस कर रहे थे, मुझे सब याद आ गया था। क्या तुम भी मेरी यादें पढ़ सकते हो प्रतीक?”
मैंने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा, “परी, यहाँ कार में तुमसे बात करने के पहले तक मुझे ये पता नहीं था। अदिति को देख कर मुझे बेहद गुस्सा आ रहा था पर मुझे कारण नहीं पता था। शायद मेरे खुद के विचार इतने हावी थे कि तुम्हारे दिमाग की यादें बाहर नहीं आ पायी। पर जब तुमने मुझे बताया कि तुमने अदिति को जूनियर डॉक्टर की बांहो में देखा था, उसी वक़्त मेरे दिमाग में वो यादें बिलकुल साफ़ तस्वीर की तरह सामने आ गयी थी।”
“मुझे अब कुछ कुछ समझ आ रहा है। यादें हमारे दिमाग में बसी हुई है। पर उन्हें हम यूँ ही नहीं पढ़ सकते। वो बाहर तभी आती है जब हम बाहर की दुनिया में कुछ ऐसा देखे जो उन यादों से जुड़ा हो। और उस पर भी वो यादें बाहर तब आएगी जब हम अपना ध्यान उन पर लगाएंगे। शायद इसी कारण से अदिति को देख कर मुझे पूरी तरह से सब कुछ याद नहीं आया था क्योंकि मैं इस बात पर ध्यान लगाए हुए था कि मुझे पत्नी का रोल करना है।”, मैंने आगे कहा।
“तुम सही कह रहे हो प्रतीक। एक दुसरे की यादें पढ़ना खतरनाक भी हो सकता है हमारे रिश्ते के लिए तो प्लीज़ ज़रा संभल कर रहना।”, परिणीता ने चिंतित होकर कहा, “ओह गॉड। प्रतीक ऐसा हमारे साथ कैसे हो गया?”
“परिणीता, सब ठीक होगा। चिंता करके कोई फायदा नहीं है।”, मैंने परिणीता को दिलासा दिया पर खुद को अपनी कही बात पर यकीन नहीं था।
पहली रात

अब रात हो चुकी थी। हम दोनों के मन में बस यही आस थी कि सुबह उठने पर हम अपने अपने शरीर में वापस आ चुके होंगे। सोने से पहले हमने कपडे बदले। मैंने परिणीता की नाईटी पहनी। इस नाईटी की नैक काफी खुली हुई थी जिससे मेरे स्तन आसानी से दिख रहे थे। नाईटी की लंबाई भी काफी कम थी। इससे बस मेरी पैंटी छुप रही थी। मैं पहले ही बता चुकी हूँ आपको कि कैसे सुबह से उठने के बाद से मेरा तन मन कामुक भावनाओं से भरा हुआ था। स्त्री के तन के हॉर्मोन मुझे घड़ी घड़ी उकसा रहे थे। यह मखमली बदन मुझे मदहोश किये हुए था। ऊपर से यह नाईटी में मेरे उभरे हुए स्तन मुझे दीखते तो मन और मचल उठता। परिणीता की सभी नाईटीयाँ बेहद ही सेक्सी थी। न भी होती, तब भी यह बदन ही जानलेवा था। मेरा तन मन मेरे वश में नहीं था। जो हाल मेरा था वही हाल परिणीता का भी था। उसके तन में भी पुरुष हॉर्मोन ज़ोरो से दौड़ रहे थे।दूकान से आते ही मैंने सबसे पहले तो अपनी सैंडल उतारी थी। भले मुझे ऊँची हील पहन कर चलना आ गया था पर मेरी एड़ियों में दर्द होने लगा था। हिल पहन कर दिन भर घूमना आसान काम नहीं है। औरतों के बारे में काफी कुछ सिख रही थी मैं। बाकी का दिन हमने अपनी दिनचर्या में लगा दिया। कपडे धोये, खाना बनाये, बर्तन धोये, घर साफ़ किये आदि। परिणीता के शरीर में काम करते हुए यह पता चल गया था कि मेरे नए नाज़ुक तन से कई काम करना और वज़न उठाना उतना आसान नहीं था जो पहले मैं प्रतीक के रूप में कर सकती थी। फिर भी परिणीता बेझिझक वो सारे काम बिना शिकायत के करती थी। मेरी पत्नी मुझसे बेहद प्यार करती है, यह यकीन बढ़ता जा रहा था। परिणीता के दिमाग से यादें पढ़ने का मौका तो था पर मेरी कोशिश थी की ऐसा कुछ न करूँ। क्योंकि कुछ बातें प्राइवेट रहे तो ही अच्छा है। फिर भी छोटी छोटी बातें बाहर आ ही जाती थी। जैसे परिणीता जब हमारे घर के उस कमरे का दरवाज़ा बंद देखती थी जहाँ मैं प्रतीक से एक औरत बनने के लिए सजती संवरती थी, तब कैसे उसे बेचैनी होती थी। आज तक उसने मेरा वह बॉक्स नहीं देखा था जिसमे मेरी सारी चीज़े रखी हुई थी जैसे मेकअप, ब्रेस्टफॉर्म, विग, इत्यादि।

यह हमारी पहली रात थी जिसमे मैं पत्नी थी और परिणीता पति। जो मेरे तन मन में चल रहा था वह बेकाबू हो जाए तो आज हमारी सुहागरात हो जाए। मुझे तो इस बात का बेहद डर था। हम दोनों पति-पत्नी की आदत थी एक दुसरे को गले लगा कर सोने की। मुझे तो सोच सोच कर ही हलचल हो रही थी कि मैं कैसे अपने आप पर काबू रख सकूंगी।
परिणीता पहले ही बिस्तर पर थी। उसने मेरा साधारण सा पैजामा और शर्ट पहना था। मैं बिस्तर में परिणीता के बगल में आ गयी। कल तक परिणीता मेरे सीने पर अपना सिर रख कर सोती थी। पर आज मेरा बदन उसके बदन से छोटा था। मैं आज शायद आसानी से उसे वैसे न सुला सकती थी। मैं जैसे ही उसके पास पहुंची, उसने अपनी बाँहें खोल ली। और मैं चुपचाप उसके मजबूत बांहों में आ गयी। मैंने उसके बड़े से सीने पर अपना सिर रख दिया, और अपना एक हाथ भी। परिणीता का एक हाथ मुझे मेरी पीठ पर पकडे हुए था। कुछ देर बाद वो मुझे पीठ पर सहलाने लगी। मेरे स्तन परिणीता के पुरुष तन से दब रहे थे। मैं उतावली हुए जा रही थी। यह तो अच्छा हुआ था कि मैंने अब भी ब्रा पहनी हुई थी। वरना खुले स्तन मुझे और न जाने कितना मदमस्त करते। परिणीता का हाथ मेरी पीठ पर मेरी ब्रा स्ट्राप पर जा कर रुक गया। फिर उसने मेरी नाइटी को पीछे से ऊपर खिंचा। मैं कुछ न बोली। फिर उसका हाथ मेरे नितम्ब (हिप/ass) पर मेरी पैंटी को छूता हुआ ऊपर की ओर बढ़ने लगा। मेरी कमर पर उसका फिसलता हाथ मेरे तन-मन में आग लगा रहा था। उसका हाथ मेरी ब्रा के हुक पर जाकर रुका। परिणीता ने एक ही हाथ से वह हुक खोल दी। फिर अपने दुसरे हाथ से मेरी नाईटी के नीचे से मेरे कोमल पेट को छूते हुए सामने ब्रा तक गया।

“कल सुबह हमें हॉस्पिटल काम पर जाना है। कल तक सब ठीक हो जाएगा न प्रतीक?”, परिणीता ने मुझसे पूछा। मैंने उसके गालों पर प्यार से एक छोटा सा चुम्बन दिया और कहा, “सब ठीक होगा। सुबह हम अपने अपने शरीर में वापस होंगे।” मैं उसके सीने को अपने हाथो से सहलाने लगी। शायद परिणीता को यह अच्छा लगा और उसने भी मुझे माथे पर किस दिया। छोटे छोटे किस हमारी रोज़ की आदत थी। बस आज हम बदले हुए थे।“प्रतीक, रात भर ब्रा पहन कर रहोगे तो तुम्हारे कंधो पर दर्द होगा और तुम चैन से सो भी न पाओगे।”, परिणीता ने मुझसे कहा और अपने हाथो से मेरी ब्रा उतारने लगी। यह करते हुए उसके हाथ मेरे स्तनों को भी छू रहे थे। मैं मन ही मन सोच रही थी की परिणीता, प्लीज़ मेरे स्तन को अपने हाथों से मसल दो। तब तक उसने मेरी ब्रा उतार दी। मेरे दोनों स्तन अब आज़ाद हो चुके थे। मैं परिणीता के सीने से ज़ोर से लग गयी। मेरे स्तन और दब गए थे। मेरी तन की आग बढ़ती ही जा रही थी।
न जाने क्यों मैं सीने पर सहलाते सहलाते, अपना हाथ नीचे की ओर ले जाने लगी। परिणीता के पेट से निचे और फिर उस जगह तक। परिणीता का लिंग बिलकुल तन कर कठोर हो चूका था। वह भी अपने तन को काबू में रखने के प्रयास में थी। मैंने परी के पेट से उसकी पैंट और फिर अंडरवेअर में हाथ डाल कर उसके कठोर लिंग को अपने हाथों से पकड़ लिया। एक बार पकड़ने पर उसे छोड़ने का मन न हुआ।
अब मेरा मन बिलकुल बेकाबू हो रहा था। मेरे होंठ परिणीता के होठो को चूमना चाह रहे थे। मेरे स्तन उसके हाथो से मसलना चाह रहे थे और मेरी योनि उस कठोर लिंग को अपने अंदर लेना चाहती थी। मैं अपनी योनि में एक हलचल महसूस कर रही थी। अब बेकाबू होकर मैं कुछ कर जाती पर किसी तरह काबू करके मैंने परिणीता के लिंग को ऊपर की ओर लिटाते हुए अपना हाथ बाहर निकाल लिया। और झट से उसकी मजबूत बाँहों से निकल कर पलट कर सोने लगी। मैंने अपनी नाईटी को निचे की ओर खिंच कर खुद को ढकने की कोशिश की।पर मेरी आँखों में नींद न थी। परिणीता से दूर होकर मेरी कामुकता थोड़ी कम हो गयी थी।

करीब १० मिनट बाद परिणीता मेरे पीछे से मेरे करीब आ गयी। उसने अपने हाथ पहले मेरी कमर पर और फिर मेरी बांहो पर रखा। वो धीरे धीरे मेरे और करीब आ रही थी। उसका विशाल सीना मेरी पीठ से लग चूका था। फिर उसका नीचला तन भी मेरी चूतड़ के पास आने लगा। मैं उसका लिंग अपनी चूतड़ पर महसूस कर पा रही थी। वह धीरे धीरे और बड़ा और कठोर होकर मानो मुझमे आना चाहता था। परिणीता मुझसे अब पूरी तरह से लिपट गयी थी। उसका हाथ बांहो से हट कर मेरी नाईटी की खुली नैक के रास्ते अब अंदर मेरे स्तनों तक आ गया था। उसने मेरे स्तनों को हलके से छुआ, फिर दोनों स्तनों को हिलाया। मेरा मन फिर बेकाबू होने लगा। मैं आँहे भर रही थी और मेरे दांत मेरे होंठो को काट रहे थे। परिणीता अपनी उंगलियों से मेरे निप्पल को छूने लगी। मेरे निप्पल कठोर होने लगे। मेरी चूतड़ अब खुद ब खुद परिणीता के लिंग को दबाने लगी। परिणीता के हाथ अब मेरे स्तन को पकड़ कर मसलने लगे। मेरी साँसे बहुत गहरी हो गयी। क्या आज मेरी सुहागरात होने वाली थी? क्या मुझे औरत होने का शारीरिक सुख मिलने वाला था? क्या परिणीता और मैं, नए पति-पत्नी बनने वाले थे? जानने के लिए मेरी कहानी पढ़ते रहिये।

Comments

Popular posts from this blog

नेहा भाभी

“मेरे प्यारे देवरजी आ गए! देखो तो कितने लम्बे हो गए हो तुम!”, मेरी प्यारी नेहा भाभी ने मेरे आते ही मुझे गले लगा लिया| और मैं भी अपनी खुबसूरत भाभी को देखते ही उनसे गले लिपट गया| नेहा भाभी बेहद ही सुन्दर थी, वैसी ही जिनके बारे में लोग सपने देख कर न जाने कैसी कैसी कहानियां लिखते है| सुन्दर चेहरा, दुबला पतला छरहरा बदन, भरे हुए स्तन, लम्बे बाल, कोई भी कमी न थी उनमे| वो आज हरी रंग की साड़ी पहनी हुई थी, जिसमे भूरे रंग की बॉर्डर थी| उनके छोटे आस्तीन वाले मैचिंग ब्लाउज में उनकी काया तो बस मंत्र-मुग्ध कर रही थी| उनके मुलायम स्तन गले लगाने पर जिस तरह मेरे सीने पे महसूस हो रहे थे, उन्हें छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था| पर मेरी भाभी थी वो! और मुझे उनका सम्मान करना चाहिए| मैं १०वी की परीक्षा के बाद गर्मी की छुट्टी बीताने तनुज भैया और नेहा भाभी के घर अभी अभी पहुंचा था| तनुज भैया मुझे  स्टेशन लेने आये थे| मुझे उनके यहाँ छुट्टी बीताना बड़ा पसंद था| आखिर नेहा भाभी मुझे इतना प्यार जो देती थी| भैया और भाभी की शादी को २ साल ही हुए थे और उन दोनों में अब भी नए शादीशुदा दंपत्ति वाली चमक थी| कोई भी मेरी भा...

आंटी

कमरे में एक कैलेंडर टंगा हुआ था जिसमे साल १९९५ लिखा हुआ था| उस कमरे में किसी की हलचल की आवाज़ आ रही थी| वो लड़का बेहद गहरी नींद में था पर आवाज़ सुन उसकी नींद खुल गयी और वो बहुत घबरा गया| मम्मी पापा तो अगले दो दिन के लिए शहर से बाहर थे| तो कौन हो सकता था? सबसे ज्यादा डर तो उसे पकड़े जाने का था| किसी तरह हिम्मत करके उसने अपनी चादर से बाहर झाँका| एक ३५-४० साल की औरत उसके बिस्तर के सामने एक कुर्सी पे बैठी गृहशोभा मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी| उसने अपनी टाँगे एक पर एक रखी हुई थी जिस पर उसकी साड़ी की प्लेट उसकी कमर से होती हुई नीचे किसी फूल की तरह खिल कर खुल रही थी| उसने काफी ऊँची हील की सैंडल पहन कर रखी थी| ज़रूर कोई बाहर से आई है| लड़के ने सोचा क्योंकि उसके घर में किसी के पास भी ऐसी सैंडल नहीं थी| किसी भी १४ साल के लड़के को ऐसी औरत बेहद आकर्षक लग सकती है, उस लड़के को भी लगी| चादर से झांकते हुए उस औरत ने लड़के को  देख लिया था| आज तो वो पक्का पकड़ा जायेगा| एक अनजान ३५-४० वर्षीया औरत उस लड़के के बिस्तर के पास बैठी हुई थी| कोई भी १४ वर्ष का लड़का उनकी तरफ आकर्षित हो जाता| “तो तुम्हे औरतों की किताबें प...

Neha Bhabhi

“Oh my dear brother-in-law! Look how tall you have grown”, said my dear sister-in-law Neha, or Neha  bhabhi (sister-in-law) , as I used to call her. She hugged me, and I hugged her back as soon as I reached her home. Neha  bhabhi  was a sexy woman, the kind of woman people fancy about and write those special kind of stories. Beautiful face, slim figure, big bosom, long hair, she had it all. Today, she was wearing a green colored saree, with a light brown border. She had a mesmerizing effect on me as I looked at my sexy bhabhi in that matching blouse with short sleeves.  I could feel her soft breasts pressing against me, and I didn’t wanna release her from my hug yet. But she was my sister-in-law, I guess I should respect her, I thought. After completion of my Class 10 exams, I had decided to visit my elder brother Tanuj and his wife Neha at their home. Tanuj had come to pick me up at the station, and we had just arrived at his home. I loved spending my summer vaca...