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परिणीता भाग १०

मैं जानती हूँ कि आप जानने को बड़े उत्सुक है कि एक औरत के रूप में मेरी पहली रात कैसे बीती। क्या वह रात मेरी औरत के रूप में सुहागरात थी?  क्या मैंने औरत होने का शारीरिक सुख पाया?  मुझे बताने में थोड़ी झिझक हो रही है। हाँ मैं एक औरत जो ठहरी। आप नहीं समझेंगे कि एक औरत के लिये शारीरिक सम्बन्ध क्या मायने रखता है। ऐसा नहीं है कि मेरे साथ यह औरत बनने के बाद हुआ है। जब मैं पुरुष क्रोसड्रेसर थी तब भी ऐसा न था कि मुझे सिर्फ औरतों के कपडे पहनना अच्छा लगता था। मेरे अंदर एक औरत हमेशा से छुपी हुई थी। वो औरत जो प्यार करती थी, ममता और शालीनता से भरी हुई थी, जो रिश्तो को जोड़कर रखने में विश्वास रखती थी, बेहद ही खूबसूरत और प्यारी औरत थी वो। पर यह दुनिया और मेरी पत्नी परिणीता मेरी अंदर की उस खूबसूरत औरत को हमेशा दबा कर रखती थी। छुप छुप कर सिसकती थी वो कि उसे बाहर आने का एक मौका तो दो। वो किसी का बुरा नहीं करेगी। आज़ाद होकर कितना चहकती वो। उस औरत को आज़ादी मिलती तो मैं पुरुष रूप में भी निखर जाती। शायद यही सालों की आज़ादी की चाहत थी, जिसकी वजह से जब मैं एक औरत के तन में आयी तो मैं वह सब कर लेना चाहती थी जो एक औरत करती है।
और उस रात परिणीता, जो की अब एक आदमी थी, उसने जब मेरी सैटिन नाईटी में अपने हाथों को डालकर मेरे कोमल मुलायम स्तनों को छूना शुरू ही किया था, मैंने जो अपने रोम रोम में महसूस किया, आज भी उसे याद कर मेरे अंग अंग में आग लग जाती है। आँखें बंद करके याद करू तो मेरे बदन के एक एक रोम में जो सनसनी थी, उसे महसूस कर मदहोश हो जाती हूँ। भूल नहीं सकती मैं, एक पत्नी के रूप में मेरी पहली रात। मैं पहले ही आपको चेतावनी दे रही हूँ कि इसे पढ़कर आप की रातें बेचैन हो सकती है, और आप में भी एक औरत बनने की ललक लग सकती है जिसको पूरा करना कभी आसान न होगा। जो मैं आगे बताऊंगी, आप को भी बेकाबू कर देगी। क्या आप तैयार है मेरी कहानी सुनने को? मुझे फिर न कहना की मैंने चेताया नहीं था।
उस रात हम पति-पत्नी दोनों के जिस्म में मानो आग सी लगी हुई थी। हमारा नया तन और उसमे हमें उत्तेजित करते हार्मोन, हमें उन्हें वश में करना नहीं आता था। पर फिर भी खुद को काबू करते हुए बिस्तर में मैं परिणीता से दूर हो पलट कर सो गयी थी। पर कुछ ही देर बाद परिणीता ने पलटकर मुझे पीछे से आकर अपनी बाहों में पकड़ लिया। मेरा कोमल सा नाज़ुक बदन उसके मजबूत बड़े बदन में मानो समा गया। परिणीता का एक हाथ मेरी सैटिन नाईटी की खुली गर्दन से होते हुए मेरे स्तन तक पहुच चुका था। पहले तो उसने मेरे निप्पलों को छुआ, जो उसके स्पर्श से तुरंत कठोर हो गए। मेरे दिल दिमाग में मानो बिजली का करंट दौड़ गया था। लग रहा था कि परिणीता काश मेरे निप्पलों को ज़ोरो से दबा दे या अपने दांतो से उन्हें कांटे। पर वो उन्हें सिर्फ हलके हलके छूती रही। फिर उसके हाथ मेरे स्तनों को पकड़ कर कुछ हलके हलके दबाने लगे। मेरी साँसे गहरी होती जा रही थी। मैं अपना वश खो रही थी। वहीँ परिणीता का पुरुष लिंग मेरे नितम्ब (हिप/चूतड़) को छू रहा था। पल पल मानो वह और कठोर और बड़ा होता जा रहा था। अपने आप से वश खोती हुई मैं अपनी नितम्ब उसके पुरुष लिंग के और करीब ले जाकर उसे दबाने लगी जैसे मैं उसे अपने अंदर समा लेना चाहती थी।

औरत के तन का रग रग उत्तेजना में मचल उठता है। इतने सारे एहसास एक साथ मैंने पहले कभी महसूस न की थी। नए जिस्म की कामुकता में मदहोश होते हुए मेरे हाथों की मुट्ठी उन्माद में कसती चली गयी। मेरे होंठ तड़प उठे और मेरे दांतों से मैं अपने होंठो को कांटकर खुद को काबू करने की असफल कोशिश करती रही। ज़ोरो से मेरे स्तनों को अपने हाथों से मसल दो परिणीता, यह चीखने को जी कर रहा था। मेरे अंदर आकर मुझे औरत होने का सुख दे दो, इस आवाज़ को मैं दबाती रही। मेरे स्तन उस जोश में जैसे और बड़े होते जा रहे थे और सनसनी बढ़ती जा रही थी। आखिर मैंने अपना एक हाथ पीछे करके परिणीता का पुरुष लिंग पकड़ लिया जो अब तक विशाल हो चूका था और मुझमे प्रवेश करने को तैयार था। इस लिंग से मैं अच्छी तरह परिचित थी। कल तक जब मैं पुरुष थी, वो मेरे अंग का हिस्सा था। पर आज मेरे हाथ छोटे, कोमल और मुलायम थे। एक औरत के हाथ में वह बहुत ही बड़ा लग रहा था, या शायद परिणीता की उत्तेजना में वह बहुत बड़ा हो गया था। मैं उसे ज़ोर से पकड़ कर सहलाने लगी। और अपने दुसरे हाथ से परिणीता का हाथ पकड़ कर अपने स्तनों को ज़ोरो से दबाने का इशारा देने लगी। मेरी योनि में जो हलचल मची थी उसको तो मैं बयान भी नहीं कर सकती। मेरी खुली नंगी पीठ पर पड़ती परिणीता की गर्म साँसे मुझे और नशीला कर रही थी। न जाने कब पर मैं आँहें भरने लगी थी।
पर तभी परिणीता के हाथ रुक गए। परिणीता अब मेरे ऊपर आ चुकी थी। ऐसा लगा की अब वो मेरी नरम कोमल स्तनों को चुम कर और फिर अपने दांतो से काट कर मुझे और उकसाएगी। पर ऐसा कुछ न हुआ। मत रुको, प्लीज़। मैंने अपनी आँखों से परिणीता से कहा। “प्रतीक, तुम्हे याद है तुम मुझसे हमेशा पूछा करते थे कि सैक्स करने के बाद मुझे कैसा अनुभव हुआ?”, परिणीता ने मुझसे पूछा। मेरा मन बात करने का न था। मेरे जिस्म में आग लगा कर यह क्या कर रही है परिणीता? मेरे स्तन तुम्हारे होंठो के लिए तरस रहे है और तुम मुझसे यह कैसा सवाल कर रही हो? मैं मन ही मन सोच रही थी। अपनी उत्तेजना के बीच मैंने हाँ में सिर्फ “उम हम्म” कहा। “मैं भी अक्सर यही सोचा करती थी की तुम्हे सैक्स के बाद कैसा लगा? तुम संतुष्ट हुए या नहीं?”, परिणीता आगे बोली। बातें न करो परिणीता, मैं मन में सोचती रही। मैं मचली जा रही हूँ और तुम पुरानी बातों में लगी हुई हो।  “आज रात हमारे पास उस सवाल का जवाब पाने का मौका है। सैक्स के बाद औरत को कैसा महसूस होता है, आज तुम समझ सकते हो। क्या पता कल सुबह हमारे तन फिर बदल जाए? तो फिर क्यों न हम आज….”, परिणीता बोल ही रही थी कि मैंने अपना वश खोते हुए परिणीता के सीने से लगकर उसे वापस नीचे कर मैं उसके मजबूत विशाल तन पर चढ़ गयी।
बात न करते हुए मैं बस अब एक औरत बन जाने को आतुर थी। मैंने अपने स्तनों को परिणीता के सीने से दबाना शुरू कर दिया। मेरा मन आनंदित हो गया। पर मेरा मन अब सिर्फ सीने से लगाने से नहीं भरने वाला था। मुझे उस पर परिणीता के होंठ चाहिए थे। मेरे स्तनों को एक आदमी के हाथों से मसलने का आनंद चाहिए था। और इसलिए मैंने परिणीता के होंठो को अपने होंठो के बीच लेकर एक लंबा पैशनेट किस दिया जिसे देते वक़्त मेरा पूरा तन बदन  मादकता से झूम उठा। फिर मैंने उसकी जीभ को अपने होंठो के बीच पकड़ जो चुम्बन दिया, उससे परिणीता  का पुरुष तन उत्तेजित हो मानो अकड़ गया। उस चुम्बन को शायद परिणीता कभी भूल न पायेगी। चुम्बन देते वक़्त मेरे हिलते झूमते बदन के साथ मेरे आज़ाद स्तन मेरी सैटिन की नाईटी में उछल पड़े। अपने सीने से झूलते मेरे भारी स्तन, इनका तो मैं सिर्फ सपना देखा करती थी। आज मेरा सपना सच हो गया था। मैं और ज़ोरो से अपने स्तनों को परिणीता के सीने से दबाने लगी। जो मुझे महसूस हुआ, सोच कर ही मेरा चेहरा शर्म से लाल हो रहा है। मेरे स्तनों को छेड़ो, मेरी आँखें और मेरे होंठ परिणीता से कहते रहे। परिणीता को उसका जवाब मिल गया था कि मैं क्या चाहती हूँ। हाँ, मैं अनुभव करना चाहती थी की औरत को सैक्स करने के बाद कैसा लगता है।
जहाँ मेरा अंग अंग परिणीता के स्पर्श के लिए मचला जा रहा था, वहीँ परिणीता मेरे बदन के नीचे बिना कुछ किये मुझे और उकसा रही थी। लगता है कि अब मुझे एक औरत और एक पत्नी होने का धर्म का पालन करते हुए अपने पति परिणीता को खुश करना था। हम दोनों के रोल बदल गए थे और मैं पत्नी बन कर बेहद उन्मादित थी। बस उस उन्माद में मैं यही चाह रही थी कि परिणीता भी मुझे बदले में शारीरिक सुख दे। पर पहले यह काम मुझे करना था।
उसके होंठो को चूमने पर और उसकी जीभ को अपने होंठो के बीच महसूस करना बहुत ही sensual था। मेरे नाज़ुक होंठ मेरे पुरुष वाले होंठो से ज्यादा कामुक और संवेदनशील थे। मेरे पति का तन भी उन्माद में था। फिर मैंने होंठो को छोड़ कर परिणीता के कानो को अपने होंठो से चूमने लगी। कान पर पड़ने वाली मेरी गर्म साँसे उसे उत्तेजित कर रही थी। मैंने उसकी उत्तेजना देख कर उसके शर्ट के बटन खोल दिए और मैं सीने को हौले हौले चूमने लगी। अपने हाँथो से उसके सीने को छूने लगी और उसके नंगे विशाल से सीने पर अपने स्तनों को दबाकर रगड़ने लगी। मेरी सैटिन नाईटी का स्पर्श मेरे पति को उतावला किये जा रहा था। मेरे एक एक चुम्बन का असर जो उस पर हो रहा था वह मैं महसूस कर सकती थी। मेरे बदन पर उसके कठोर लिंग की दस्तक़ हो रही थी। अब शायद वह भी उतना ही उतावला था जितनी की मैं।
मेरे हर चुम्बन पर मेरे पति की बाँहें मुझे और ज़ोरो से जकड़ लेती। मैं भी उन्मादित हो अपने होंठो से ऐसा चुम्बन लेती जैसे आज उसके शरीर से सारा रस चूस लेने वाली हूँ। मैं धीरे धीरे परिणीता के सीने पर चुम्बन करते करते निचे होने लगी। अब उसकी नाभि के पास मैं चुम्बन कर रही थी और मेरे कोमल हाथ उसके सीने को छू रहे थे। मेरे स्तन अब परिणीता के लिंग के साथ थे। उसका लिंग मानो मेरे स्तनों के साथ खेलने लगा। कभी एक स्तन को छूता तो कभी दुसरे को। मैं अपने दोनों स्तनों के बीच उसे पकड़ कर अपने दोनों स्तनों से ऊपर निचे करने लगी। मेरे निचे आते आते मेरे होंठ मेरे पति के लिंग के बिलकुल निकट आ गए। मेरे होंठो पर सनसनाहट होने लगी। मैंने अपने हांथो से उसे एक बार पकड़ कर देखा। मेरे नाज़ुक हाथो का स्पर्श पाकर तो उसका उतावलापन बहुत बढ़ गया। परिणीता का शरीर अब बस मेरे होंठो का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा। पर यह रात तो अभी बस शुरू ही हुई थी।

मैं परिणीता के लिंग को उत्तेजित कर फिर उठ बैठी और थोड़ा झुककर परिणीता की ओर देखने लगी। उसका तना हुआ लिंग अब मेरी पैंटी के रास्ते मुझमे अंदर आने को आतुर था। उतनी ही आतुर तो मैं भी थी। फिर भी मैं थोड़ा रुक कर परिणीता के चेहरे को देखने लगी। मेरी नशीली आँखें और उनके आगे आते मेरे लंबे घने बालों को देख कर परिणीता की उत्तेजना मैं उसकी आँखों में देख सकती थी। उसके लिंग के मोटाई से महसूस कर सकती थी। उसके हाथ धीरे धीरे मेरे पैरो को छूते हुए, मेरी जांघो को उकसाते हुए, मेरी पैंटी को छूकर मेरी योनि में आग लगाकर, मेरी नाईटी में नीचे से घुसते हुए मेरे स्तनों की ओर बढ़ रहे थे। मेरी सैटिन की नाईटी जब जब मेरे मखमली बदन पर फिसलती तो मेरा रोम रोम और उत्तेजना में हिलोरे लेने लगता। मैं अपने पति की आँखों में देख सकती थी कि वह अब अपने मजबूत हाथों से मेरे स्तनों को मसल उठने को मचल रहे है।
“पता है जब एक शादी-शुदा औरत और आदमी पहली बार सैक्स करते है तो उस रात को क्या कहते है?”, मैंने परिणीता से पूछा। उसके जवाब देने के पहले ही मैंने उसके हाथ झट से अपनी नाईटी से निकाल कर कहा, “उस रात को सुहागरात कहते है। और आज हमारी सुहागरात है।” एक कातिल मुस्कान देकर मैं परिणीता के तन से उठकर बिस्तर से उतरने लगी। परिणीता ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोकना चाहा पर मैं उसके हाथों से फिसल गयी। वह समझ नहीं पा रही थी कि मैं कहाँ जा रही हूँ। “थोड़ा इंतज़ार कर लो जानेमन”, कहकर मैं हँसते हुए चल दी। परिणीता का आतुर चेहरा और उसका तना हुआ लिंग देख कर मैं मन ही मन मुस्कुरा दी।
उस सैटिन नाईटी में मेरी हिरणी जैसी चाल न सिर्फ परिणीता को कामोत्तेजित कर रही थी बल्कि मुझे भी। मेरी हिप्स चलते चलते एक ओर झटके देती हुई मटकती हुई एक एक कदम पर परिणीता को दीवाना बना रही थी। मुझे भी मेरी बड़ी सी नितम्ब पर फिसलती हुई सैटिन नाईटी मदहोश कर रही थी। अपने हाथो से मैंने नाईटी को ऊपर की ओर सरका कर मैंने पीछे से अपनी पैंटी पतिदेव को दिखाई और वो बस पागल ही हो गए। पर मैं आगे चलती गयी। मेरे एक एक कदम पर मेरे खुले स्तन उछल पड़ते और मुझे भी अपने होने का प्यारा एहसास दिलाते। मेरे निप्पल भी कठोर हो गए थे और मेरी नाईटी में बाहर से उभर कर दिख रहे थे। सैटिन में उभरे हुए निप्पल दिखना किसी भी पुरुष को मदमस्त कर देते है। परिणीता को छेड़ने के लिए मैं रूककर पलटी, अपनी उँगलियों को अपने उभरे हुए निप्पल तक ले गयी और उन उँगलियों से दबा कर एक आँह के साथ बोली, “मेरे निप्पल तुम्हारे स्पर्श के लिए बेकरार है जानू”। कहकर मैं ऐसी कामुक हँसी हँस दी की कोई भी मुझ पर फ़िदा हो जाए। जिस्म में लगी हुई आग के रहते हुए भी मैं अपनी नज़ाकत भरे नखरे दिखाते हुए बैडरूम से बाहर निकल गयी। दरवाज़ा बंद करते हुए मैंने पतिदेव को एक कातिल सी मुस्कान दी।

जब तक मैं प्रतिक थी, ऐसा हमारे साथ कई बार हुआ था कि हम दोनों आलिंगन करते हुए प्यार करने में मदहोश है और किसी कारण परिणीता उठ कर चल देती थी। कभी घर से माँ का फोन या कभी और कोई कारण। मैं समझ न पाती थी कि आखिर इतनी कामोत्तेजित परिणीता, उस उत्तेजना से बाहर कैसे आ जाती थी। आदमी एक बार मचल उठे तो वह अपने आपको खुद से रोक नहीं सकता। जबकि औरतें यह आसानी से कर सकती है यदि उनके पास एक अच्छा कारण हो। आज कुछ ही देर पहले मैं बेकाबू थी जब मेरा खुद पर कोई वश न था। फिर ऐसा क्या हुआ कि मैं उठ कर चली आयी। एक आदमी हो या औरत उसे पहली रात मनाने का मौका जीवन में एक ही बार मिलता है। मैं भाग्यशाली थी जिसे यह मौका दूसरी बार मिल रहा था। एक औरत के रूप में प्यार करने का सपना मैंने देखा था। आज जब वो सच हो रहा था तो मैं अपनी इस सुहागरात में कोई कमी नहीं होने देना चाहती थी। यदि मैं सही सोच रही थी तो आज की रात परिणीता के लिए कभी न भूलने वाली रात होगी। वैसे भी इस दुनिया में यदि किसी पुरुष को संपूर्ण सुख कोई औरत दे सकती थी तो वह औरत कोई और नहीं मैं थी। आखिर क्यों भला? एक आदमी सम्भोग करते वक़्त क्या चाहता है, अपने पुरुष रूप में मैं अच्छी तरह जानती थी। और एक अच्छी पत्नी की तरह मैं अपने पति को वो सुख देना चाहती थी। परिणीता से ज्यादा भाग्यशाली पति न था इस दुनिया में इस वक़्त। और इस सुख को देने के पहले की तैयारी में मुझे करीब आधा घंटा लग गया। परिणीता हमारे बैडरूम में मेरा इंतज़ार करती रही।
मेरे आने की आहट सुनकर अंदर बैडरूम से ही परिणीता ने कहा, “प्रतीक अब कुछ नहीं होगा। वो समय बीत गया है।” मैं मंद मंद मुस्कायी। परिणीता को पता न था कि समय तो अब शुरू हुआ है। मैंने धीमे से बैडरूम का दरवाज़ा खोल और हलके हलके कदमों से चलते हुए अंदर आयी। मुझे देख कर परिणीता का मुंह खुला रह गया। मैं सही थी, समय अब शुरू हुआ था।

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