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रूममेट भाग ४

कहानी में अब तक:  ये कहानी मेरी यानी निशांत और मेरे रूममेट चेतन की है. कई साल पहले एक दिन अनजाने में मुझे चेतन के कमरे में लड़की के कुछ कपडे मिले थे. पूछने पर चेतन ने मुझे बताया कि वो एक क्रॉस-ड्रेसर है, ये बात मेरे लिए किसी शॉक से कम नहीं थी. उसके अगले दिन मैंने चेतन से यूँ ही कहा कि वो एक बार मुझे लड़की बन कर दिखाए. जब चेतन तैयार होकर आया तो वो एक बहुत ही आकर्षक लड़की बन चूका था. अब वो चेतन नहीं, चेतना थी. हम दोनों बियर के नशे में थे, और उस हालत में उस रात हम दोनों के बीच शारीरिक सम्बन्ध स्थापित हो गए. होश आने पर मुझे ग्लानी हुई कि आखिर मैं और चेतन ये कैसे कर सकते है? हम तो गे नहीं थे? पर पता नहीं कैसे धीरे धीरे हमारी दोस्ती बचाते हुए, समय के साथ साथ, चेतना और मुझे आपस में प्यार हो गया. आखिर जब दो दिल मिलते है तो दिल ये नहीं सोचता कि जिससे प्यार हुआ है उसका लिंग आदमी का है या औरत का. हम दोनों का प्यार दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था, और चेतना मेरी गर्लफ्रेंड बन चुकी थी, जो हमारे घर को भी बखूबी सँभालने लगी थी, एक हाउसवाइफ की तरह. अब आगे-
चेतना को याद करते हुए जैसे मेरा दिल झकझोर उठा था, उसी तरह जिस हवाईजहाज में मैं बैठा हुआ था, वो भी टर्बुलेंस में हिचकोले खा रहा था. उन्ही हिचकोलो के बीच मेरा ध्यान वर्तमान में थोड़ी देर के लिए आ गया. मन में अजीब सी बेचैनी थी. और उस बेचैनी को दूर करने के लिए मेरे पास एक छोटी सी वाइन की बोतल थी, उसे एक ही घूंट में मैं पी गया. पर चेतना की याद मेरे मन से जा ही नहीं रही थी. उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा मेरी आँखों के सामने अब भी आ रहा था. मैं फिर से पुरानी यादो में खो गया.
हम दोनों के बीच प्यार हुए शायद एक महीने से थोडा ज्यादा गुज़र चूका था. चेतना और मैं एक दुसरे के प्यार में एक दुसरे के साथ समय बीतने को हमेशा आतुर रहते थे. जब पहला पहला प्यार होता है न, तो पूरी दुनिया गुलाबी और सुन्दर लगने लगती है. हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. एक दिन मैं ऑफिस से बड़ी ख़ुशी के साथ वापस लौटा.
“चेतना, चेतना, कहाँ हो तुम?”, घर पहुचते ही मैंने चेतना को आवाज़ लगायी. मुझे यकीन था कि अब तक चेतन ने कपडे बदल लिए होंगे और घर में मेरी प्यारी गर्लफ्रेंड चेतना होगी. “चेतना!”, मैंने एक बार फिर आवाज़ लगायी.
“आ रही हूँ बाबा! ऐसी भी क्या जल्दी है निशु?”, चेतना अपने साड़ी के पल्लू से अपने हाथ पोंछते हुए किचन से निकली. शायद किचन में कुछ कर रही थी वह. उसके खुबसूरत चेहरे को देख कर मेरी ख़ुशी और बढ़ गयी. और मैंने ख़ुशी से चेतना को घुटनों से पकड़ कर अपनी बांहों में ऊपर उठा लिया.

“चेतना डार्लिंग, तुम अब बस तैयार हो जाओ! हम दोनों रोमांटिक समय के लिए बाहर जा रहे है!”, मैंने चेतना को उतारते हुए उत्साह से कहा. मेरी बातें सुनकर चेतना का चेहरा एक पल के लिए तो चमक उठा पर जल्दी ही एक हताशा भी उसके चेहरे पर आ गयी.“निशु! मैं गिर जाऊंगी”, चेतना ने नजाकत से कहा और मुझे निचे उतारने का इशारा करने लगी. “मुझ पर भरोसा नहीं है जानू?”, मैंने उससे पूछा. “हाँ, है तो सही. पर आज आप इतने खुश क्यों हो?”, उसने प्यार से मेरी बांहों में रहते हुए ही मेरे माथो पर मुझे चूम लिया. कितने प्यार से मुझे ट्रीट करती थी मेरी प्यारी चेतना. आज घर में उसने सादी सी साड़ी पहनी हुई थी, थोड़े लम्बे आस्तीन की कॉटन ब्लाउज के साथ, पर फिर भी चेतना की खूबसूरती की कोई सीमा नहीं थी. आज मैं अपने चेतना को एक सरप्राइज खबर देना चाहता था.
“पर निशु? तुमको तो पता है न कि मैं कभी घर से बाहर नहीं गयी हूँ? और यदि किसी ने मुझे पहचान लिया तो?”, चेतना मुझसे बोली. उसकी नज़रे हताश हो कर झुक गयी. बाहर पहचाने जाने का डर लगभग शायद हर क्रॉस-ड्रेसर को होता है, और चेतना को भी था.
“चेतना, तुम इतनी खुबसूरत औरत हो. तुम्हे कोई नहीं पहचान सकेगा. सभी लड़के अपनी गर्ल फ्रेंड को बाहर ले जाते है. मैं भी अपनी गर्लफ्रेंड को साथ घुमाने ले जाना चाहता हूँ.”, मैंने चेतना से प्यार से कहा.
“पर निशु, मुझे डर लगता है. कुछ गड़बड़ हो गयी तो जो थोड़े पल तुम्हारे साथ चैन के मैं बीता पाती हूँ, कहीं वो भी न चले जाए.”, चेतना का डर थोडा स्वाभाविक भी था. इस शहर में न जाने कब कहाँ ऑफिस की जान पहचान वाला मिल जाए, इसका कोई भरोसा नहीं था.
“चेतना, तुम यूँ ही घबरा रही हो! हम दोनों गोवा जा रहे है! वहां तो हमें कोई पहचानता भी नहीं है! हम कल सुबह सुबह ही अँधेरे में घर से निकल पड़ेंगे. और मैं अपने एक दोस्त से ४ दिनों के लिए कार भी ले आया हूँ. कल सुबह से बस तुम और मैं, साथ में गोवा में वैलेंटाइन डे मनाएंगे. बस तुम सुबह बॉस को ईमेल कर देना कि तुम बीमार हो और ऑफिस नहीं आ सकोगी.”, मैंने चेतना की चिंता दूर करने की कोशिश की. पर किसी क्रॉस-ड्रेसर के लिए घर से पहली बार बाहर निकलना इतना आसान भी नहीं होता है. चेतना ने नर्वस होते हुए अपनी साड़ी के पल्लू को अपनी उँगलियों के बीच गोल गोल घुमाते हुए किसी तरह हाँ कर दी. पर उसकी चिंता अभी भी ख़तम नहीं हुई थी.
उस रात मैंने तो बेहद उत्साह में अपना बैग बनाया. चेतना भी उत्साहित थी पर अब भी थोड़ी सी चिंतित थी. उसने भी अपना बैग बनाया. लड़कियों को न जाने कितनी तरह के कपडे, सैंडल, चप्पल, चूड़ियां, गहने, मेकअप आदि रखने पड़ते है, उस दिन के पहले मुझे अंदाजा न था. “कितना सामान रखोगी, चेतना? तुम्हे पता है न कि हम सिर्फ ४ दिन के लिए जा रहे है?”, मैंने चेतना से पूछा. “निशांत तुम्हे पता नहीं कि लड़कियों की क्या क्या ज़रूरतें होती है. तुम चाहते हो न कि मैं गोवा में सुन्दर लगू? तो उसके लिए मुझे मैचिंग की सैंडल गहने मेकअप भी तो रखना पड़ेगा न!”, चेतना ने मुझे समझाते हुए कहा. मेरी चेतना परफेक्ट वुमन थी! चेतना पहली बार घर की चारदीवारी से बाहर निकलने वाली थी. और इस बात की ज्यादा ख़ुशी मुझे थी. हम दोनों एक दुसरे को देख कर मुस्कुराये.
बैग पैक करने के बाद मैं चेतना को अपनी बांहों में भर कर सो गया. हम दोनों अक्सर स्पून पोजीशन में सोते थे जहाँ चेतना की पीठ मेरी ओर होती थी. उसकी पीठ को चूमना और उसकी कोमल कमर पर हाथ रख कर सोना मुझे अच्छा लगता था. एक बार फिर मुझे एहसास हो रहा था कि इस औरत से मुझे कितना प्यार है, और मैं फिर से उत्साहित था कि मैं चेतना के साथ गोवा जा रहा था.

अगली सुबह हमने ३ बजे उठ कर तैयार होना शुरू किया. हम ४ बजे अँधेरे में ही घर से निकल जाना चाहते थे. मैं निकलने को पूरी तरह तैयार था. और चेतना शायद अब भी अपने कमरे में तैयार हो रही थी. थोड़ी देर बाद चेतना धीरे धीरे छोटे छोटे कदम लेते हुए बाहर आई. उसने गुलाबी रंग का सलवार सूट पहन रखा था. गुलाबी रंग में बिलकुल खिल रही थी वो.
“निशु, पक्का मुझे कोई पहचान तो नहीं लेगा न?”, मेरी चेतना ने नर्वस होते कहा. “तुम यूँ ही चिंता कर रही हो चेतना. इस वक़्त बाहर कोई जागा भी नहीं होगा. और कुछ ही देर में हम इस शहर से बाहर होंगे जहाँ हमें कोई नहीं जानता. और फिर गोवा में बस तुम और मैं”, कहते कहते मैं चेतना के करीब आ गया और उसे गले लगा लिया.
चेतना भी मुझसे गले लग कर लिपट गयी. मैंने उसके माथे पर प्यार से किस किया. और चेतना के चेहरे पर आखिर एक डरी हुई पर एक मुस्कान आ गयी. मुझे पता था कि एक आदमी होने के नाते मुझे चेतना को इस दुनिया से बचा कर रखना है. मैं उसे किसी मुसीबत में नहीं डाल सकता था. हम दोनों ने अपने बैग पकडे और एक दुसरे का हाथ पकड़ कर बाहर कार में आ गए. इतनी सुबह बाहर कोई न था, पर फिर भी चेतना ने हिदायत के लिए सनग्लास लगा रखा था और सूट के दुपट्टे से अपने सर को ढँक रखा था. मुझे तो वो परी लग रही थी.
कुछ ही देर में हम शहर से बाहर आ गए थे. मैं देख सकता था कि चेतना का डर अब ख़तम हो रहा था. उसने दुपट्टा अब सर से उतार लिया था और मुस्कुराते हुए मेरी ओर देख रही थी. सचमुच कितनी सुन्दर थी चेतना. उसने प्यार से मेरा एक हाथ अपने हाथ से पकड़ रखा था. उस दिन मेरी दुनिया सचमुच प्यार में गुलाबी हो गयी थी. गोवा काफी दूर था इसलिए हम बीच में एक ढाबे पर खाने के लिए भी रुके थे. शुरू में चेतना वहां जाने से कतरा रही थी, पर कुछ देर बाद उसे एह्सास हुआ कि चिंता करने की तो कोई बात ही नहीं है. ढाबे में वेटर उसे मैडम कह कर संबोधित कर रहे थे. पूरी दुनिया उसे एक औरत की तरह सम्मान दे रही थी. कोई क्रॉस-ड्रेसर ही बता सकता है कि ये बात उनके लिए कितनी बड़ी बात होती है! अब चेतना सचमुच चहक रही थी, बल्कि इतनी खुश और उत्साहित तो मैंने उसे घर के अन्दर कभी नहीं देखा था.
खाने के बाद हम दोनों, एक पार्क गए जो कि ढाबे से लगकर था, वहाँ हम दोनों साथ पैदल चल पड़े. अपनी प्रियतमा का हाथ पकड़ चलने में एक अलग ही ख़ुशी है. पर चेतना तो ख़ुशी से वहां दौड़ रही थी… फूलों के बीच दुनिया के हर रंग को आज वो अपनी झोली में भर लेने को तैयार थी. कितनी खुश थी वो बाहर आकर. उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि कल रात तक वो इतनी डरी हुई थी बाहर आने से. उसे खुश देख कर मैं भी बहुत खुश था.
पश्चिमी घाट की सुन्दर पहाड़ियों से होते हुए आखिर शाम तक हम दोनों गोवा में अपने होटल पहुच ही गए. होटल के रिसेप्शन पर हमें एक रिसेप्शनिस्ट तृषा मिली जहाँ से हमें कमरे की चाबी लेनी थी. “हेल्लो सर, हेल्लो मैडम. हमारे रिसोर्ट में आपका स्वागत है. कृपया आपका नाम बताये ताकि मैं आपकी बुकिंग चेक कर आपके कमरे की चाबी दे सकू”, रिसेप्शनिस्ट ने कहा. “मेरा नाम निशांत है … “, मैंने कहा. “और मैं मिसेज़ चेतना!”, चेतना ने चहकते हुए कहा. हम दोनों ने एक दुसरे की आँखों में देखा और ख़ुशी से मुस्कुरा दिए.
रिसेप्शनिस्ट तृषा हमारे प्यार को देख सकती थी. उसने जल्दी ही हमें कमरे की चाबी देते हुए कहा, “वेलकम मि. एंड मिसेज़ निशांत. यह आपके कमरे १२७ की चाबी है. लगता है आप दोनों की नयी नयी शादी हुई है, इसलिए आपके लिए मैं ये कमरा ख़ास दे रही हूँ. इस रूम से एक बालकनी सागर की तरफ निकलती है. आशा करती हूँ कि आप लोगो का गोवा में समय बहुत बढ़िया बीतेगा” तृषा ने मुस्कुराते हुए हम दोनों की ओर देखा.
तृषा की बात सुनकर चेतना ज़रा शर्मा सी गयी. और हम दोनों एक दुसरे का हाथ पकड़ कर हमारे रोमांटिक कमरे में आ गए. उस वक़्त शायद  दोपहर के ४ बज गए थे. और आज की शाम के लिए मैंने चेतना के लिए एक अनोखा सरप्राइज प्लान करके रखा था, जिसके बारे में चेतना को ज़रा भी अंदाजा नहीं था.

“निशु, बताओ कौनसी ड्रेस पहनु आज? यह घुटनों तक की ड्रेस या फिर यह लम्बी मैक्सी स्टाइल ड्रेस?”, चेतना ने अपनी दोनों ड्रेसेस खुद पर लगा कर दिखाते हुए मुझसे पूछा. दोनों ही ड्रेसेस बड़ी सेक्सी थी. हम दोनों बाहर रोमांटिक डिनर पर जाने के लिए तैयार हो रहे थे. मेरा दिल तो चाह रहा था कि चेतना से कहूं की वो छोटी से छोटी ड्रेस पहने, आखिर वो सेक्सी इतनी थी. पर आज मैं इस शाम को कुछ ख़ास बनाना चाहता था.
“चेतना, मेरे ख्याल में तुम्हे आज साड़ी पहनना चाहिए. तुम ड्रेस बाकी के दिनों में पहन लेना.”, मैंने अपनी खुबसूरत चेतना की ओर देखते हुए कहा.
“निशु, गोवा में भी भला कोई लड़की साड़ी पहन कर घुमती है? तुम्हारा बस चले तो मुझे तुम सती-सावित्री बना कर ही छोड़ोगे”, चेतना ने शिकायत करते हुए कहा. मैं उसे बता नहीं सकता था कि मैं क्यों उसे साड़ी पहनने के लिए कह रहा हूँ. पर कुछ देर न -न करते आखिर चेतना साड़ी पहनने को मान ही गयी. वैसे भी उसे साड़ी का शौक तो था पर शायद वो मेरे लिए मॉडर्न गर्लफ्रेंड भी बनना चाहती थी. बाथरूम में काफी देर लगाकर चेतना जब बाहर आई तो वो बिलकुल परी लग रही थी. खुले लम्बे बाल और कानो पे लम्बे झुमके बहुत सुन्दर लग रहे थे उस पर. बाहर आकर उसने शीशे में अपनी साड़ी को देखा कि उसकी प्लेट और लम्बाई सही है कि नहीं. चेतना की हर एक अदा मुझे उसे गले लगाने के लिए उकसाती थी. मैं अपनी किस्मत से बहुत खुश था, आखिर चेतना सिर्फ और सिर्फ मुझे मिली थी.
“लो तुम्हारे कहने पर मैंने गोवा में आकर भी साड़ी पहनी है! अब मुझे सर पर पल्लू काढने मत कह देना. मैं नहीं मानूंगी”, चेतना ने कहा. वो मुझसे अब भी नाराज़ थी क्योंकि मैंने उसे साड़ी पहनने को कहा था. फिर भी गोवा के मौसम और फैशन के अनुरूप उसने स्लीवलेस ब्लाउज पहनी थी, और ऊँची हील की सैंडल, साड़ी भी एकदम मॉडर्न अंदाज़ में कमर से बहुत निचे से शुरू होती हुई और प्लेट बिलकुल पतली सी. उफ़ क्या कमाल लग रही थी वो. उसकी साड़ी हलकी सिंथेटिक साड़ी थी. फुल-पत्ती वाली प्रिंट बड़ी सुन्दर लग रही थी चेतना के तन पर, और ऊपर से लाल रंग की बॉर्डर वाली साड़ी आज के अवसर के लिए सही थी. भले ही वो सिंथेटिक साड़ी थी पर चेतना उस में भी खिल रही थी.
आज हमारी पहली डेट थी जिसमे हम दोनों पहली बार घर के बाहर समय बिताने वाले थे. शाम स्पेशल थी इसलिए मैंने भी एक जैकेट और अच्छी सी पेंट पहना था. मुझे तैयार देख कर चेतना का मूड बदल गया. “आज तो तुम बहुत हैण्डसम लग रहे हो निशु”, चेतना ने आकर मेरी जैकेट को पकड़ते हुए कहा. उसकी आँखों में एक ललक थी जो मैं समझ नहीं सका. पर मैंने भी उसकी बांहों को पकड़कर उसकी आँखों में देखकर कहा, “तुम भी बहुत सुन्दर लग रही हो चेतना”. मेरी बात सुनकर चेतना मुस्कुराकर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बालकनी की ओर ले आई जहाँ से सागर का नज़ारा दीखता था. “सुनो, क्यों न कहीं और जाने के पहले हम सागर किनारे कुछ देर चल आये. सिर्फ तुम और मैं?”, चेतना ने मुस्कुराते हुए कहा. मेरा दिल तो वैसे भी रोमांटिक मूड में था. मैं तुरंत तैयार हो गया.
s6चेतना के कोमल हाथ पकड़ कर हम दोनों सागर किनारे आ गए. क्योंकि वो प्राइवेट रिसोर्ट था, वहां एक अद्भुत एकांत था जहाँ बस मैं और चेतना साथ चल रहे थे. रेत में बेचारी चेतना को हील वाली सैंडल पहन कर चलने में थोड़ी दिक्कत तो हो रही थी पर वो फिर भी मेरे साथ मेरा हाथ पकडे ख़ुशी ख़ुशी चल रही थी. हलकी हलकी हवा में उसके उड़ते बाल और सागर की लहरों की आवाज़ में मुस्कुराती चेतना का चेहरा मेरे अन्दर प्यार जगा रहा था. एकांत में चेतना भी मेरी बांह पकड़ कर मुझसे चिपक कर चल रही थी. हमारी आँखों के सामने सूरज अस्त होने की ओर बढ़ रहा था पर शाम होने में अभी भी कुछ देर थी. उस रोमांटिक पल में एक जगह रुक कर मैंने चेतना का चेहरा सूरज की ओर घुमाया, और मैं खुद उसके चेहरे की ओर देखने लगा. सूरज की रौशनी में मेरी चेतना का चेहरा चमक रहा था. एकांत का भी अपना जादुई असर होता है ऐसे प्यार भरे अवसर पे. मैंने चेतना को उसके पीछे जाकर अपनी बांहों में पकड़ लिया और वो एक नाज़ुक सी लड़की की तरह मेरी बांहों में समा गयी. उसकी कमर पर हाथ सहलाते हुए मैंने उसकी गर्दन और पीठ पर चुम्बन दिया. और चेतना आँख बंद करके मेरे प्यार को महसूस कर रही थी. प्यार क्या होता है, ये हम दोनों अनुभव कर रहे थे.
मेरा पहले यह इरादा तो नहीं था, पर यह प्यार भरा पल था. मैं इसे खोना नहीं चाहता था. मैंने धीरे से अपनी जेब से एक हार निकाला, चेतना की गर्दन से उसके बालों को एक ओर किया, और चेतना के गले में उस हार को पहना दिया. वो हार कोई सामान्य हार नहीं था, वो मंगलसूत्र था. चेतना ने जब अपने गले में मंगलसूत्र देखी तो उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा. “निशु?”, वो कुछ और कह न सकी. उसकी ख़ुशी उसकी आँखों से झलक रही थी. “चेतना, याद है तुमने उस रात मुझे अपने बचपन के सपने बताये थे कि कैसे तुम बड़ी होकर अपनी माँ की तरह बनना चाहती थी. तुम्हारा सपना था कि एक दिन एक शादीशुदा औरत की तरह तुम भी गले में बड़ा सा मंगलसूत्र पहनना चाहती थी. आज मैं तुम्हारा सपना सच कर रहा हूँ चेतना. और इससे ज्यादा ख़ुशी मुझे कुछ और नहीं दे सकती” मैंने चेतना से कहा.
चेतना तो जैसे ख़ुशी के मारे कुछ बोल ही नहीं पा रही थी. वह अपने गले के मंगलसूत्र को पकड़ कर ख़ुशी से देख कर चुप चाप निहारती रही. फिर उसने पलट कर मुझे गले लगा लिया. “निशु,  इस तोहफे के लिए बहुत धन्यवाद. मैं सचमुच तुम्हे एक बेहद अच्छी पत्नी बन कर दिखाऊँगी.”, चेतना ने रुंधे गले से कहा. शायद चेतना इमोशनल हो गयी थी मेरे सरप्राइज से!
पर अब सरप्राइज होने की बारी मेरी थी. सच कहूं तो मैंने तो सोचा भी नहीं था कि मेरे मंगलसूत्र पहनाने के बाद हम पति-पत्नी बन जायेंगे. कितना बेवकूफ था मैं भी! पर अब एक ही पल में चेतना और मैं पति-पत्नी बन गए थे. चेतना ने मुझे अपना पति उसी पल स्वीकार कर लिया था. और मैं? इतनी खुबसूरत प्यारी पत्नी भला कौन नहीं चाहता? भले ही मैंने शादी के लिए सोचा न था पर मैंने भी चेतना को अपनी पत्नी मान लिया था. चेतना की प्यार भरी आँखों में देख कर मुझे भी एहसास हो रहा था कि चेतना से बेहतर पत्नी मुझे नहीं मिल सकती. हम दोनों की शादी हो गयी थी!
हम दोनों कुछ देर और उस सागर किनारे अपनी शादी की ख़ुशी में चलते रहे. थोड़ी देर में सूर्यास्त होने वाला था तो और भी लोगो ने वहां आना शुरू कर दिया था. अब एकांत न था फिर भी मैं चेतना को कमर पर हाथ लगा कर उसे थोडा थोडा छेड़ता. तभी चेतना ने मेरे करीब आकर कहा, “निशु, प्लीज़ ऐसे न छुओ मुझे.” मैंने चेतना से पलट कर कहा, “चेतना अब तुम मेरी पत्नी हो. और अपनी पत्नी को क्यों न छुऊँ मैं भला?”.
मेरी बात सुनकर उसने कुछ धीमे से मेरे कान में कहा जो मैं समझ न सका. मैंने उससे फिर पूछा. तो चेतना ने फिर मेरे कान के पास आकर कहा, “प्लीज़, अभी पब्लिक में न छुओ. मेरा .. मेरा तन मन मचल रहा है. कैसे बोलू तुमसे कि यदि वो खड़ा हो गया तो साड़ी में उभार दिखने लगेगा” चेतना अपने लिंग की बात कर रही थी जिस पर मेरे स्पर्श से असर हो रहा था. मुझे भी एहसास हुआ कि ये शायद पब्लिक में ठीक नहीं है. “ठीक है चेतना, पर आज रात मैं सुहाग रात ऐसी मनाऊंगा कि तुम हमेशा याद रखोगी. मुझसे तो इंतज़ार नहीं हो पा रहा है रात का जब मैं तुम्हारी साड़ी उतार कर तुम्हारे अंग अंग को छूकर प्यार करू”, मैंने कहा.
“धत्त.. कितने गंदे हो तुम! अपनी पत्नी से कोई ऐसे बात करता है?”, चेतना बोली.  “अरे , इसमें गलत क्या है? अब ऐसी बात तो पत्नी से ही करना चाहिए! किसी और औरत के पास जाकर मैंने ये कहा तो तुम ही जल जाओगी”, मैंने हँसते हुए कहा.
पर चेतना मेरा हाथ छुड़ाकर सागर की ओर जाने लगी. उसने अपनी सैंडल उतारकर  एक हाथ में पकड़ ली और अपने दुसरे हाथ से साड़ी उठाकर सागर के पानी की ओर सँभालते हुए बढ़ने लगी ताकि उसकी साड़ी भीग न जाए. “चलो न निशु, पानी में कुछ देर चलते है, बड़ा मज़ा आएगा.” चेतना बहुत उत्साहित थी, और वो चहकते हुए पानी की ओर चल पड़ी. मैं भी जूते उतार कर उसके पीछे दौड़ पड़ा. पानी में जाते ही मैंने कुछ छींटे उस के तन पर उडाये. “निशु, मेरी साड़ी गीली हो जायेगी!”, उसने प्यार से कहा. पर मैं कहाँ रुकने वाला था, जब तक उसकी पूरी साड़ी गीली नहीं हो गयी, मैं चेतना के तन पर पानी उड़ाता रहा और चेतना मुझसे दूर भागती रही. कभी भीगी साड़ी में औरत को आपने देखा है? जितनी सेक्सी भीगी साड़ी में वो दीखती है, वैसे शायद कभी और नहीं लगती.
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सूर्यास्त के बाद हम दोनों होटल वापस आ गए. चेतना भीगी हुई साड़ी में मेरे पीछे दौड़ती हुई आई..
सूर्यास्त होने पर हम दोनों पानी से बाहर निकल आये. चेतना अपने हाथो से अपनी साड़ी को निचोड़ने लगी. अपने लम्बे बालों से रेत और पानी सुखाने लगी. मैं तो उसे यह सब करते बस ख़ुशी से देखता ही रह गया. मेरी पत्नी इतनी आकर्षक जो थी! “देखा, अब मुझे फिर से नहाकर साड़ी बदलनी पड़ेगी. तुम भी न! हम कल भी तो ये सब कर सकते थे!”, चेतना ने झूठी मुठी शिकायत की. पर मज़ा तो उसे भी आया था. मैं हँसता रहा. और दौड़ कर होटल में अपने कमरे की ओर चल दिया. चेतना मेरे पीछे पीछे दौड़कर आना चाहती थी पर वो बेचारी ऊँची हील की सैंडल पहन कर कहाँ दौड़ पाती? पत्नी को परेशान करने का भी अपना मज़ा है! कितना सुन्दर पल था वो भी.
२ महीने पहले मेरे पास गर्लफ्रेंड तक नहीं थी. और इतने कम समय में अब मेरे पास चेतना के रूप में पत्नी भी थी! कितना कुछ बदल गया था इतने कम समय में. कमरे में मैं और भीगी हुई साड़ी में चेतना, मेरा दिल कितना खुश था उस दिन. और चेतना खुश भी थी और मुझसे नाराज़ भी क्योंकि मैंने उसे भीगाया और फिर अपने पीछे दौड़ाया भी! भीगी साड़ी में नाराज़ होती चेतना को मैंने अपनी बांहों में ले लिया और उसे जोरो से होंठो पर एक चुम्बन दिया. वो भी मुझे किस करने लगी. मैंने उससे कहा, “चेतना, क्यों न हम सुहागरात अभी मना ले?”. चेतना भी तो आखिर उतावली हो रही थी. “नहीं निशु! पहले मुझे रोमांटिक डिनर पे नहीं ले जाओगे? मैं अब पत्नी हूँ तुम्हारी, गर्लफ्रेंड नहीं! इतने आसानी से नहीं मिलूंगी अब मैं तुम्हे.”, चेतना मेरा हाथ छुड़ाकर हँसते हुए दूर होने लगी.

“पर मैं तुम्हारा इतनी देर इंतज़ार कैसे करूंगा?”, मैंने अपनी बेसब्री ज़ाहिर की.  “इंतज़ार तो करना पड़ेगा पतिदेव! तुम रुको मैं साड़ी बदल कर आती हूँ. फिर हम डिनर पे चलते है.”, चेतना ने कहा. “अरे जानू, कहीं और जाने की क्या ज़रुरत है, जब मैं तुम्हारी साड़ी उतारने के लिए यहाँ हूँ”, यह कहकर मैंने चेतना की साड़ी उतारना शुरू कर दिया. उफ़ कितनी सेक्सी लग रही थी मेरी पत्नी चेतना. स्लीवलेस ब्लाउज  और पेटीकोट में उसे देखना मुझे बेहद उत्तेजित कर रहा था. पर पत्नी की डिमांड थी डिनर पे जाने की, उसे ऐसे कैसे छोड़ सकता था. चेतना ने बाथरूम में जाकर अपनी गीली साड़ी सुखाने को डाल दी. मैं उसे ब्रा बदलते देख सकता था. चेतना की ब्रा ही इतनी सेक्सी होती थी कि मैं और उतावला हुए जा रहा था. मुझे कमरे में करवटें बदलते देख कर चेतना ने हँसते हुए बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर दिया. कितना तडपाती थी मुझे चेतना!
थोड़ी देर बाद चेतना बाहर निकली तो चेतना ने दूसरी साड़ी पहनी हुई थी. आसमानी रंग की. उसे देख कर ही लग रहा था कि जैसे आसमान से उतरी हो. उसे देखते ही मैंने उसे बिस्तर में खिंच लिया. उसने मेरे कान के पास आकर कहा, “चले पतिदेव?”. मैं तो मदहोश था और उसी मदहोशी में मैंने कहा, “हाय! तुझे इस कमरे से बाहर ले जाने का मन तो नहीं है मेरा. पर तुम्हारे लिए यह भी करूंगा. पर हम जाए किस रेस्टोरेंट? मुझे ३ नाम पता है जो अच्छे है”

“अच्छा जी. अब नखरे नहीं चलेंगे. मैं बाहर रिसेप्शनिस्ट से पूछती हूँ यहाँ सबसे अच्छा रेस्टोरेंट कौनसा है. आप जल्दी से तैयार हो कर आ जाना.”, चेतना ने इठलाते हुए अपने मंगलसूत्र को पकड़ कर कहा. चेतना पत्नी बन कर कितनी खुश थी. मैं तो उसे बिस्तर से जाने नहीं देना चाहता था पर वो दौड़ कर बाहर चली गयी.
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चेतना ने तृषा से किसी रोमांटिक रेस्टोरेंट के बारे में पूछा
बाहर रिसेप्शनिस्ट तृषा से चेतना ने कुछ बात की. “गुड इवनिंग मैडम! आप बहुत सुन्दर लग रही है आपकी साड़ी में. लगता है आप यहाँ हनीमून के लिए आई है.”, तृषा ने कहा. चेतना तो ख़ुशी से खिल उठी. हाँ हनीमून ही तो था यह. “हाँ, तृषा. आप कोई रोमांटिक रेस्टोरेंट बता सकती है यहाँ?”, चेतना ने तृषा से पूछा. तृषा ने चेतना को बताया कि उनके रिसोर्ट से ही लगा हुआ रेस्टोरेंट बहुत अच्छा है. तब तक मैं भी वहां पहुच गया था. होटल के पास ही रेस्टोरेंट जाने का आईडिया मुझे अच्छा लगा. आखिर मैं जल्द से जल्द चेतना के साथ सुहागरात मनाना चाहता था.
“कांग्रचुलेशन सर. आपको बहुत ही प्यारी बीवी मिली है.”, तृषा ने मुझे वहां देख कर कहा. तृषा ने सच ही तो कहा था, मुझे सचमुच बहुत प्यारी पत्नी मिली थी. मैंने अपनी नाज़ुक चेतना को अपनी बांहों में पकड़ लिया और तृषा की ओर देख कर मुस्कुरा दिया.
कितनी सुहानी शाम थी वो. हम दोनों जिस रेस्टोरेंट गए वहां से सागर का नज़ारा भी दीखता था. बड़ा ही सुन्दर पल था चेतना के साथ डिनर करना. बहुत प्यार भरी बातें हुई हमारे बीच. हमने तो अपने भविष्य का सपना भी देखना शुरू कर दिया था. मैं जानता था कि चेतना माँ नहीं बन सकती थी पर मुझे पता था कि यदि हम कोई बच्चा गोद लेते है तो चेतना बहुत ही प्यारी माँ बनेगी. कैसे होगा यह सब? हमें पता न था. पर सपने देखने में कोई हर्ज़ थोड़ी है?
आखिर रात हो गयी, और हम दोनों पैदल घूमते हुए वापस अपने कमरे आ गए. पूरी रात हंसती खिलखिलाती चेतना को देखना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. मैं उसे हमेशा ऐसे ही खुश देखना चाहता था. कमरे में पहुच कर तो वही होना था जो नए पति पत्नी में होता है. मैंने चेतना को अपनी बांहों में उठाकर बिस्तर में ले गया जहाँ हमने पति-पत्नी के रूप में अपनी पहली रात मनाई.

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इतनी आकर्षक हुस्न की पत्नी पाकर कौन उससे दूर रह सकता है?

हमारे गोवा के बचे हुए दिन बहुत ख़ुशी में बीते. चेतना को छोटी ड्रेसेस पहनने का मौका भी मिल गया. छोटी छोटी ड्रेसो में चेतना की नग्न टांगो को छूकर छेड़ने में मुझे बड़ा मज़ा आता था. या कभी उसकी ब्रा के स्ट्रेप को खिंच कर. वो मुझे बड़ी बड़ी आँखें दिखा कर मना करती कि कमरे के बाहर मैं ऐसा न करू.
यह सच है कि हनीमून में सेक्स तो बहुत होता है, पर उसके अलावा खाना पीना घूमना फिरना और चेतना को टू-व्हीलर में अपने पीछे बैठकर शौपिंग भी कराने ले जाता था मैं. और वो एक प्यारी पत्नी की तरह चिपक कर पीछे की सीट पर बैठती. चेतना चाहे भारतीय कपडे पहने या पाश्चात्य, वो अपना मंगलसूत्र हमेशा गले में गर्व से पहनी रहती. अब तो उसने मांग में चुटकी भर सिन्दूर भी लगाना शुरू कर दी थी एक नव-विवाहिता की तरह!
गोवा के वो दिन तो केवल ४ थे पर हमने मानो अपने जीवन की सारी खुशियाँ उन दिनों में भर ली थी. कहते है न कि ४ दिन की चान्दिनी! यह वोही गोवा था जहाँ पिछली बार मैं और चेतन नए साल के लिए आये थे, और जहाँ से लौटने पर मैं पहली बार चेतना से मिला था. और आज वैलेंटाइन डे पर गोवा में हम एक बार फिर थे, पर इस बार मेरे साथ मेरी पत्नी चेतना थी! १.५ महीने में इतना बदलाव आ गया था हमारे जीवन में!
गोवा में हनीमून मना कर जब हम वापस आये तो हम दोनों पहले से ज्यादा खुश थे. अब हम पति-पत्नी जो थे, पर यहाँ हम दोनों आसानी से पति-पत्नी बनकर घर से बाहर निकलने में घबराते थे. चेतना अब अपने गले से कभी भी मंगलसूत्र नहीं उतारती. यहाँ तक कि ऑफिस में चेतन भी मंगलसूत्र पहना होता था और उसे अपनी शर्ट के अन्दर छिपा कर रखता. चेतन अब जब भी ऑफिस में लंच के लिए मुझसे मिलता, तो उसका व्यवहार चेतना की तरह ही होता. हाँ, बाकी सब से हमने यह बात अब भी छुपाकर रखी हुई थी. इसलिए दूसरो के सामने चेतन और मैं दोस्त की तरह ही रहते. पर घर पहुचते ही मुझे मेरी पत्नी चेतना मिलती.
धीरे धीरे अगले कुछ महीनो में चेतना ने घर गृहस्थी अच्छी तरह संभाल ली थी. घर पर रोज़ चेतना ही रहती और मेरा चेतन से मिलना ऑफिस तक ही सीमित रह गया था. हम दोनों का प्यार बढ़ता जा रहा था. और चेतना के कपड़ो का कलेक्शन भी. अलमारी में हर अवसर के लिए ख़ास साड़ी या कपडे होते उसके पास. हमें जब मौका मिलता हम शहर छोड़कर कहीं और जाकर छुट्टी मनाते. पर यह ख़ुशी कुछ महीनो की ही थी. कुछ ही महीनो में सब कुछ बदलने वाला था. क्योंकि चेतना के जीवन में मेरे अलावा भी एक आदमी था.

जब एक क्रॉस-ड्रेसर को प्यार होता है और उसे उसी रूप में कोई आदमी स्वीकार करता है, तो वो क्रॉस-ड्रेसर औरत उस आदमी के जीवन में इतनी खुशियाँ ला सकती है जैसे कोई सीमा ही न हो. पर एक सच जो मैं नहीं जानता था वो यह था कि चाहे कुछ भी हो एक दिन अचानक एक दूसरा आदमी आकर आपकी खुशियाँ कभी भी छीन सकता है.
वो दूसरा आदमी कोई और नहीं चेतन था! मुझे यह बात पता नहीं थी कि एक क्रॉस-ड्रेसर के जीवन में जितना उनका स्त्री-रूप महत्वपूर्ण होता है उतना ही उनका पुरुषरूप भी. जब सालो बाद उनके अन्दर छुपी औरत को बाहर आने का मौका मिलता है तो उत्साह में कुछ दिन तक वो पूरी तरह औरत बनकर ख़ुशी से रहते है. पर आखिर एक दिन पुरुष रूप भी अपनी जगह तलाशने लगता है. जब औरत का उत्साह ठंडा हो जाता है तो औरत की तरह रोज सजना संवरना, मेकअप करना, पूरे तन को शेव या वैक्स करना, सब एक बड़ा काम लगने लगता है. और ऐसे दिनों में वो आराम से पुरुष रूप में रहना पसंद करते है. चेतना के साथ भी वैसा ही हुआ.
धीरे धीरे चेतना अब मुझे हफ्ते में ३-४ दिनों के लिए ही मिलने लगी. बाकी समय घर पर चेतन होता था. चेतन वैसे भी शुरू से महत्वकांक्षी था. वो मेहनत करके बहुत आगे बढ़ना चाहता था. इसी लालसा में उसने ऑफिस में एक बड़ा प्रोजेक्ट ले लिया था. काम का बोझ उस पर बढ़ गया था पर वो आगे बढ़ना चाहता था इसलिए वो काम भी खूब कर रहा था. इस काम के बीच चेतना बनना अब उसे भारी लगता था. इसलिए जिस दिन काम ज्यादा होता, उस दिन मुझे घर में चेतना न मिलती. पर मैंने तो चेतना से प्यार किया था? मेरी पत्नी थी वो. और मेरे लिए चेतना कब मिलेगी और कब नहीं, यह मुझे पता नहीं होता था. मैं चेतना का इंतज़ार करता रहता और कभी कभी वो मुझे कई दिनों तक नहीं मिलती.
एक दिन घर पर चेतन ऐसे ही अपने लैपटॉप पर काम करते हुए मुझे मिला. चेतना से मिले मुझे ३ दिन हो गए थे. मैं चेतना को अपनी बांहों में लेना चाहता था, चेतन को नहीं. मैंने चेतन से कहा, “यार, आज चेतना की बड़ी याद आ रही है. क्या वो मुझसे मिलेगी आज?” चेतना के बारे में मैं कभी चेतन से बात नहीं करता था पर आज मैं चेतना से मिलने को बेताब था. मुझे मेरी पत्नी चाहिए थी.
“निशांत, अब मुझे परेशान मत कर यार. वैसे भी यह प्रोजेक्ट में मैं बड़ा बिजी हूँ. सजने सँवरने में कितना समय लगता है पता भी है तुझे?”, चेतन से निष्ठुर हो कर कहा.
“पर यार. मुझे मेरी पत्नी चाहिए. भले वो काम में बिजी रहे. पर कम से कम मुझे मेरे आस पास दिखती तो रहे.”, मैंने चेतन से कहा इस उम्मीद में कि कहीं चेतन के अन्दर छुपी हुई मेरी पत्नी चेतना अपने पति के लिए बाहर आएगी.
“सच कहो, तुमको पत्नी चाहिए या सेक्स? ३ दिन से सेक्स के लिए ही मचल रहे हो न तुम?”, चेतन ने फिर कठोर बात कह दी मुझसे.
“ऐसा कैसे कह सकते हो चेतन? मुझे अपनी पत्नी से प्यार है”, मैं दुखी था. और चेतन की बातों ने मुझे ठेस पहुचाई थी. मुझे वैसे भी चेतन से कभी चेतना के बारे में बात करना ठीक नहीं लगता था. मैं वहां से उठ कर अपने कमरे में सोने आ गया. पर आँखों में नींद नहीं थी. वहीँ बाहर चेतन अपना काम करता रहा. चेतना उस रात भी मेरे पास न आई. और न ही अगले ३ दिन.
एक शाम हमेशा की तरह मुझे चेतन अपने काम में व्यस्त दिखा. मैंने बाहर से खाना मंगवा कर खाया और अपने कमरे में सोने भी चला गया. हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई. चेतना और मेरे बीच की दूरी बढती जा रही थी. पर रात के करीब ११ बजे मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला. मेरी आँखों के सामने चेतना खड़ी थी, एक सैटिन नाईटी पहने. आते ही वो मुझसे लिपट गयी और बोली, “जानू तुम्हे मेरी याद नहीं आई.” मैं कुछ न बोला.
चेतना शायद अपना काम ख़तम करके आई थी. उसने मेरे कान को अपने होंठो और दांतों से पकड़कर चूमना शुरू किया. उसे पता था कि इसका मुझ पर क्या असर होता है. उसने मेरे शर्ट के बटन खोलकर मेरे सीने पर हाथ फेरने लगी. “मैं जानती हूँ कि तुम मेरे बगैर कितने बेताब थे. चलो, मैं आज तुम्हारी इच्छा पूरी कर देती हूँ.”, चेतना मेरे सीने को चूमने लगी. मेरे निप्पल को अपने दांतों से कांटने लगी. और जल्दी ही चुमते चुमते मेरी पेंट उतारकर मेरे लिंग को छूने लगी. मैं वहीँ लेटा रहा और चेतना अपना काम ख़तम करके मेरी बांहों में सो गयी. जीवन में पहली बार सेक्स के बाद मुझे इतना बुरा लग रहा था. चेतना ने जैसे बस मेरे शरीर का इस्तेमाल किया था. उसे जब ठीक लगा वो आकर मुझसे सेक्स करके बस अपने तन की इच्छा पूरी कर रही थी. यह औरत कहीं से भी मेरी चेतना नहीं थी जो मुझे सचमुच प्यार करती थी.
ऐसा नहीं था कि हम दोनों के बीच प्यार ख़तम हो गया था. समय समय पर चेतना मेरे लिए सब कुछ प्यार से करती, खाना बनती, घर साफ़ रखती, मेरे साथ फिल्म देखती और प्यार भरा समय भी बीताती. पर फिर भी अब चेतना हफ्ते में ३-४ शामो के लिए ही मिलती. मेरे लिए चेतना का न मिलना असहनीय था. आखिर चेतना से प्यार था मुझे? कोई शादी ऐसी होती है भला कि जब ठीक लगा तब साथ हो गए, वरना अपनी दुनिया में मशगुल. फिर भी जब जब चेतना आती, उस शाम को मैं उसे खूब प्यार देता क्योंकि मुझे पता नहीं होता था कि अगली बार वो मुझे कब मिलेगी.
चेतन अपने प्रोजेक्ट में कामयाबी की तरफ बढ़ रहा था. पर मेरा जीवन और कठिन होता जा रहा था. मेरे दिल में चेतना के लिए तड़प के साथ रहना बहुत मुश्किल था. मैंने चेतना का इंतज़ार किया पर चेतन का प्रोजेक्ट और बड़ा होता गया, और चेतना के पास मेरे लिए समय और कम.

“सुनो जी, आज आपके लिए ख़ास खाना बनाया है मैंने.”, चेतना ने मुझे गले लगाकर कहा.एक शाम घर में मुझे मेरी हंसती खिलखिलाती चेतना मिली. कितने दिनों बाद उसे ऐसे हँसते खिलखिलाते देखा था. मेरी प्यारी पत्नी की तरह उसने उस दिन एक भारी सिल्क साड़ी पहनी थी. ज़रूर कोई ख़ास बात थी.
“अच्छा, कुछ ख़ास बात है आज?”, मैंने पुछा.
“हाँ, आज का दिन मेरे जीवन का सबसे अच्छा दिन है. देखना आज का ये दिन हम दोनों हमेशा याद रखेंगे. आज मेरा प्रोजेक्ट लाइव हो गया है! इसका मतलब ये कि मुझे जल्दी ही प्रमोशन मिल जायेगा! पर अगले दो महीने काम भी बहुत होगा. आपको पता नहीं कि आपने किस तरह मेरे इस समय में साथ दिया है. आप न होते तो हमारी शादी न चल पाती.”, चेतना ने चहकते हुए कहा. मैंने भी उसकी ख़ुशी में उसके माथे पर एक किस दिया. मांग में  सिन्दूर सजाकर आज सचमुच मेरी पत्नी वापस आ गयी थी.
“ये लो आपकी पसंद की मिठाई खाओ इसी ख़ुशी में. मैं खाना लगाती हूँ.”, चेतना मुझे रसगुल्ला खिलाते हुए बोली. मैं चेतना को देख कर खुश था पर मेरे मन में कुछ और भी चल रहा था.
“चेतना, रुको ज़रा. खाना हम बाद में खा लेंगे.”, मैंने कहा. “पर पतिदेव! इतने प्यार से खाना बनाया है आपके लिए. ठंडा हो जायेगा”, चेतना ने नाटकियता के  साथ आँखें घुमाते हुए कहा. और वो मेरा हाथ पकड़ कर मेरे करीब आ गयी.
“चेतना. इतनी जल्दी क्या है. खाना हम दोबारा गरम करके खा सकते है. ज़रा २ मिनट बैठो तो सही.”, मैंने कहा. हम दोनों साथ में सोफे पर आकर बैठ गए. अपनी साड़ी ठीक कर चेतना मेरी बांहों से टिक कर बैठ गयी. उसकी आँखों में आज ख़ुशी की चमक थी.
“तुम बहुत खुबसूरत लग रही हो चेतना.”, मैंने बात शुरू किया. “थैंक यू निशु. याद है आप मेरे लिए ये सिल्क साड़ी बैंगलोर से लाये थे. आज के स्पेशल दिन के लिए ही बचा के रखी थी मैंने! कैसी लग रही है आपको?”, चेतना ने कहा.
“जितना मैंने सोचा था उससे भी कहीं ज्यादा सुन्दर”, मैंने कहा. सच कह रहा था मैं. चेतना के चेहरे की ख़ुशी बढती जा रही थी. “आप मुझसे कुछ बात करना चाहते थे?”, चेतना ने मुझसे पूछा.
“हाँ, चेतना. तुमको तो पता है मैं तुम्हे कितना प्यार करता हूँ.”, मैंने फिर कहा. “हाँ, आप ही की वजह से तो यह रिश्ता बरकरार है. मैं भी आपको उतना ही प्यार करूंगी निशु”, चेतना मेरे सीने पर सर रख कर बोली. आज तो वो सचमुच प्यार से बर्ताव कर रही थी.
“हाँ चेतना. इसलिए तुम्हारा इंतज़ार करना मेरे लिए बहुत कठिन होता है. मैं कितनी रातें तुम्हारा इंतज़ार करता रहा. तुमसे जब जब मिलता था तो मेरे मन में यही चिंता रहती थी कि न जाने तुम अगली बार कब मिलोगी. सच मानो चेतना, यह समय मेरे लिए आसान नहीं था. और आगे भी नहीं रहेगा.”, मैंने कहा.
“क्या कहना चाहते हो निशु?”, चेतना ने गंभीर होकर पूछा. उसके चेहरे पर अब चिंता साफ़ दिख रही थी.
“चेतना मैं तुम्हे जितना प्यार करता हूँ, उस प्यार के साथ अब मुझसे तुम्हारा इंतज़ार नहीं किया जाता. मैं इस अनिश्चितता के साथ नहीं रह सकता कि मेरी चेतना मुझे कब दोबारा मिलेगी. इसलिए ….” मैं कहते कहते रुक गया.
“इसलिए क्या?”, चेतना ने कंपकंपाती आवाज़ में पुछा.
“इसलिए मैंने हमारे मेनेजर से एक महीने पहले US में प्रोजेक्ट के लिए जाने की रिक्वेस्ट दिया था. मेनेजर इस बात के लिए २ हफ्ते पहले तैयार हो चूका था, और आज मेरा वीसा और प्लेन का टिकट भी आ गया है. मैं कल सुबह ४ बजे की फ्लाइट से ६ महीने के लिए US जा रहा हूँ. तुम यहाँ अपने प्रोजेक्ट में जितना चाहे उतना मन लगाकर काम करो, मैं तुम्हे अब और परेशान नहीं करूंगा.”
मेरी बातें सुनकर चेतना की आँखों में आंसू भर आये. “निशु, ऐसा मत करो मेरे साथ. मुझे यूँ अकेला छोड़ कर मत जाओ. तुम जो बोलोगे मैं वैसा ही करूंगी. मैं रोज़ तुम्हारे लिए घर पर मिलूंगी. इस तरह मुझे मत छोडो निशु.”, चेतना ने रोते रोते कहा. अपनी प्यारी पत्नी को ऐसे रोते देखना मुझे अच्छा तो नहीं लग रहा था, पर मैं उसका ऐसे और इंतज़ार नहीं कर सकता था.
“चेतना, मैंने इस बारे में बहुत सोचा है. मुझे तुमसे प्यार है, और मैं हमेशा करता रहूँगा. पर इस दिल का क्या करू मैं जो रोज़ अपनी पत्नी को देखना चाहता. मुझे पता है कि यदि मैंने तुम्हे इस बात के लिए मजबूर किया तो तुम पूरी तरह खुश नहीं रहोगी. आखिर चेतन का भी इस जीवन पर कुछ हक़ है. पर मेरे लिए ऐसे जीना बहुत मुश्किल है चेतना. अब मुझे और कोई रास्ता नज़र नहीं आता, चेतना.”
मैं जानता था कि चेतना चाहे कुछ दिन मेरे लिए आ जाएगी पर चेतन फिर कभी न कभी हावी हो जायेगा. मैं ऐसे जीवन नहीं जी सकता था. खुद के दिल को तोड़कर अपने प्यार को छोड़कर दुसरे देश जाना आसान नहीं होता है. ऐसा करके मेरे दिल पर क्या बीती थी, यह मैं ही जानता था. चेतना को वहां रोता हुआ छोड़कर मैं अन्दर अपने कमरे में चला आया. अगली सुबह के लिए मुझे पैकिंग करनी थी.
मैं जानता था कि मेरा ये कदम चेतना का दिल तोड़ देगा. मैं यह बात उसे इस तरह आखिरी पल में नहीं बताना चाहता था. पर मुझे कभी चेतना इस तरह मिली ही न थी पिछले पूरे महीने में.
उस रात हम दोनों सोये नहीं. चेतना एक अच्छी पत्नी की तरह अपने आंसू को पोंछ कर मेरी पैकिंग में सहायता करने लगी. सुबह ४ बजे की फ्लाइट के लिए मुझे घर से करीब रात १२:३० बजे निकलना भी था. मुझसे चेतना की आँखों में देखा न जा रहा था. कितने प्यार से वो मेरे कपडे मोड़कर प्रेस करके मेरे सूटकेस में भर रही थी. मेरी एक एक छोटी छोटी चीज़ का उसने ध्यान रखा. उस सिल्क साड़ी में उस रात मेरी पत्नी चेतना थी जो न जाने इतने दिनों से कहाँ खो गयी थी. वो चुपचाप मुझे जाने की तैयारी करते देखती रही. आखिर करीब रात ११:३० बजे सब तयारी हो जाने का बाद उसका सब्र का बाँध टूट पड़ा. वो फुट फुट कर रोने लगी.
“निशु, मुझे माफ़ कर दो. मुझसे गलती हुई. मैं अपने काम में इतनी मशगूल हो गयी थी कि मैं भूल ही गयी थी कि मैं एक पत्नी भी हूँ. निशु, प्लीज़ मत जाओ. मैं सच कह रही हूँ दोबारा ऐसी गलती नहीं करूंगी. मैं तुम्हारी पत्नी हूँ निशु. मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ. मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं सकूंगी निशु. प्लीज़ मेरी बात सुन लो.”, चेतना ने सुबकते हुए कहा.
उसकी बातें सुनकर मेरा दिल भी रो रहा था. कितना प्यार करता था मैं इस औरत को. पर मुझे अब कोई और रास्ता नहीं दिख रहा था. “शायद ६ महीने बाद हम फिर से एक हो सकेंगे चेतना.”, मैंने निष्ठुर की तरह कहा.
चेतना मेरा हाथ पकडे रोती रही, गिडगिडाती रही पर मैं … कुछ ही देर में टैक्सी आ गयी. और चेतना के माथे पर एक आखिरी किस देकर मैं उसका हाथ छुड़ाकर वहां से अपना सामान लेकर निकल टैक्सी की ओर चल पड़ा.
मुझे छोड़ कर मत जाओ निशु.“, चेतना की रोती हुई आवाज़ को अनदेखा कर मैं घर से बाहर निकल गया.
उस शाम को मेरे घर आने पर चेतना ने सही कहा था कि उस दिन को हम दोनों हमेशा याद रखेंगे. आज भी याद आता है मुझे वो दिन जब मैं और चेतना आखिरी बार मिले थे. US आने पर भी मेरा समय आसान नहीं था. चेतना से बहुत प्यार करता था मैं, और उसे ऐसे ही भुला नहीं सकता था. चेतना मुझसे बात करने के लिए समय समय पर फोन करती पर मैं उसके फ़ोन का जवाब नहीं देता. धीरे धीरे हम दोनों में बात भी बंद हो गयी. मैं US आया था ६ महीने के प्रोजेक्ट के लिए, पर न जाने समय कैसे बीत गया. ६ महीने बढ़ कर आज लगभग १० साल हो चुके थे. इतने सालो में दोबारा कभी चेतना से मिलने की हिम्मत भी न हुई, चेतना और मेरा मिलन असंभव था. क्योंकि मेरे साथ रहने के लिए चेतन को ख़त्म होना पड़ता, और कहीं न कहीं, ऐसे में चेतना की ख़ुशी में भी कमी रह जाती.
समय के साथ दिल टूटने का दुःख दर्द थोडा कम हो जाता है. और इसी समय का असर था कि एक दिन मेरे जीवन में ईशा आई जो कि मेरे US के नए ऑफिस में काम करने आई थी. पता नहीं कब कैसे हम दोनों की पहचान हुई, बात बढ़ते बढ़ते एक दिन मेरी और ईशा की शादी भी हो गयी. ईशा मुझे बेहद प्यार करती है, पर मैं उसे उतना प्यार न दे सका जितना मैंने चेतना को दिया था. मेरे दिल में कहीं न कहीं चेतना अब भी बसी हुई है. इसके बावजूद ईशा मुझे बेइंतहा प्यार करती थी.  ईशा से मैंने कभी चेतना के बारे में कभी कुछ कहा नहीं, और न ही ज्यादा चेतन के बारे में बात की. और अजीब बात थी कि आज जब मैं कैलिफ़ोर्निया की फ्लाइट के लिए घर से निकल रहा था तब ईशा ने ही मुझे चेतन और चेतना की याद दिलाई (भाग १ पढ़े).

मेरा प्लेन कई घंटो के बाद आखिर कैलिफ़ोर्निया पहुच ही गया. पूरी यात्रा में चेतना को आज सालो बाद याद करते हुए, मन में एक बेचैनी सी है. फ्लाइट से निकल कर मैंने एक बार फिर अपने कानो में अपना मन बहलाने इअरफोन लगा कर गाना सुनने लगा. वही गाना जो चेतन ने सालो पहले मुझे कॉलेज हॉस्टल में सुनाया था.
Every time when I look in the mirror
All these lines on my face getting clearer
The past is gone
It went by, like dusk to dawn
Isn’t that the way
Everybody’s got the dues in life to pay
Dream on
Dream on …
एअरपोर्ट से बाहर निकलते हुए एक बार फिर वोही रात याद आ रही थी जब मैं चेतना को रोता हुआ छोड़कर घर से बाहर निकल कर टैक्सी के लिए बढ़ रहा था. पर चेतना को नहीं पता था कि उस वक़्त चेतना से मुंह मोड़ कर मैं भी उतना ही रो रहा था. उस रात मेरे कदम चेतना से दूर एअरपोर्ट की ओर बढ़ रहे थे. और आज एअरपोर्ट से बाहर निकलते हुए मेरे कदम कैलिफ़ोर्निया में उस शहर की ओर बढ़ रहे थे जहाँ आज चेतना रहती है. न जाने कैसे होगी चेतना? मैंने तो उससे कभी बात भी नहीं किया इतने सालो में.
आज भी मुझे वो पल याद आता है, जब चेतना उस शाम मेरे लिए सिल्क साड़ी पहन कर मेरे लिए खाना बनाकर अपनी ख़ुशी मेरे साथ बांटने के लिए तैयार हुई थी. और मैं? उसके साथ उसकी ख़ुशी में शामिल होने की जगह उसे अकेला छोड़ यहाँ आ गया था.
“मुझे छोड़ कर मत जाओ निशु.” उसकी आवाज़, उसका चेहरा, आज भी मेरे दिल दिमाग में बसा हुआ है. बिलखती हुई चेतना का चेहरा अब भी मेरी आँखों के सामने था.
“मैं आ रहा हूँ”, मैंने अपना फ़ोन निकाल कर चेतना को मेसेज किया और टैक्सी लेकर एअरपोर्ट से उसके घर की ओर चल पड़ा. मैं १० साल बाद चेतना से मिलने वाला था.

क्रमश: …

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