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परिणीता भाग ८

कार से उतरकर हम दोनों साथ में दूकान की ओर चल पड़े। मैंने परिणिता से कहा, “ये लो मेरा लेडीज़ पर्स!अपने हाथ में पकड़ लो। दुनिया में बहुत से पति अपनी पत्नियों का पर्स पकड़ कर चलते है। और तुम भी तो मुझे पहले पकड़ाती रही हो।”
“तो क्या आज तुम उस समय का बदला ले रहे हो मुझसे? बदमाश हो तुम!”, परिणीता हँसते हुए बोली। मैं भी मुस्कुरा दी।

आज सुबह मैंने जो पैंटी पहनी थी वह बेहद ही हलकी, सॉफ्ट और लेस वाली पैंटी थी। जब वो पैंटी मेरे चिकनी टांगो पर फिसल कर मेरी कमर तक पहुची तो मैं तो मन ही मन मदमस्त हो रही थी। क्योंकि पैंटी चढ़ाते वक़्त रुकना कब है मुझे इस बात का अंदाज़ा न था और मैंने उसे थोड़ा ज्यादा ऊपर खिंच ली थी। और पैंटी थोड़ी मेरी योनि में घुस रही थी, और मुझे उत्तेजित कर रही थी। पैंटी पहन कर जो स्मूथ लुक आता है, वो द्रुश्य ही मोहित करने वाला होता है।पार्किंग से दूकान तक करीब ५० मीटर की दूरी रही होगी। और मैं पहली बार हील वाली सैंडल पहने इतनी लंबी दूरी चलने वाली थी। औरत के बदन में चलते हुए कैसा अनुभव था? इस सवाल का जवाब किसी औरत से कहीं ज्यादा बेहतर जवाब मैं दे सकती हूँ। क्योंकि मैं बिलकुल नई नवेली औरत थी, चलते वक़्त मेरे अंग अंग में जो सनसनी मुझे हो रहा थी, उस ओर तो पैदाइशी औरते ध्यान भी नहीं देती होंगी। जवाब देना शुरू करूँ तो घंटे लग जायेंगे। फिर भी संक्षिप्त में बताने की कोशिश करती हूँ। औरतें जब चलती है तो उनके दोनों पैर काफी पास पास होते है। उनके कदम मानो एक लाइन पर पड़ते है। और कमर के निचे पुरुष लिंग भी नहीं होता जो एक लाइन में चलने में बाधा बने। पर अब दोनों जाँघे मानो एक दुसरे को चूमती हुई चलती है। मेरी जाँघे और पूरे पैर जितने कोमल और चिकने थे, उसका भी चलते हुए मज़ा ले रही थी मैं।

इस वक़्त बाहर थोड़ी हवा चल रही थी जो मेरी ड्रेस के निचे से होते हुए मेरी पैंटी तक पहुच रही थी। और फिर पैंटी से छन कर हवा मेरी योनि तक पहुच रही थी। ऐसा होने पर कैसा लगता है? शब्दो में बखान करना मेरे बस की बात नहीं है।मैं कैसे बताऊँ मेरा यह नया बदन मेरे दिल में कैसी हलचल जगाये हुए था। जब जब वो बहती हवा आकर मेरी योनि को चूमती, मैं सिहर जाती। मैं सुबह से उठ कर चाहे जो भी कर लूँ , मेरा ध्यान मेरी योनि की तरफ बार बार खिंचा चला जाता। बता नहीं सकती की मैं भीतर ही भीतर कितनी उतावली हो रही थी कि मैं कब उस योनि के साथ खेल कर देखूँ । मेरा कभी पुरुषों की तरफ आकर्षण नहीं रहा था। पर आज सुबह जब परिणिता का तना हुआ पुरुष लिंग देखी थी, तब तो बस जी चाह रहा था कि उसे अपनी योनि के अंदर तक ले लूँ। शायद पुरुष लिंग के प्रति आकर्षण से ज्यादा, मेरी योनि से खेलने और महसूस करने को ज्यादा उतावली थी मैं। और वो बहती हवा, बार बार मेरा ध्यान उस ओर ले जा रही थी। साथ ही साथ मुझे अपनी ड्रेस की ओर भी ध्यान देना पड़ रहा था क्योंकि वह हवा से बार बार ऊपर उड़ती जा रही थी। चूँकि मैं परिणीता के स्त्री-रूप में थी, इसलिए मैं नहीं चाहती थी कि कोई ड्रेस उड़ने पर मेरी पैंटी देख ले। वरना मैं तो उड़ जाने देती।
एक औरत की चाल में जो सबसे ज्यादा किसी का ध्यान खिंचती है, वो है उस औरत के मटकते झटकते हुए बड़े नितम्ब। जिसे अंग्रेजी में hips और आम भाषा में ‘**’ कहते है। एक शालीन औरत होने के नाते मैं वह शब्द का प्रयोग नहीं करूंगी। अपनी हिप्स पर मेरा ध्यान न जाए ऐसा असंभव था। मेरे हलके से बदन में मेरी बड़ी हिप्स अपने वज़न और हर कदम पर जब वह मटक झटक कर एक ओर हिलती, उसको अनदेखा करना नामुमकिन था। चलते हुए लग रहा था कि मेरी गोल गोल हिप्स बहुत बड़ी है। क्योंकि एक एक कदम पर वह थर्रा कर हिलती थी। एक पुरुष को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं हो सकता कि वो बड़ी सॉफ्ट महिलाओं की हिप्स कहीं भी बैठने और चलने में क्या आनंद दे सकती है! मेरी पैंटी मेरे नितम्ब से चिपक कर उसे चुम रही थी। लग रहा था कि कोई आकर मेरे गोल नितम्ब पर चिंकोटी काटे। मुझे चलते चलते एहसास हो रहा था कि यह मेरी बड़े गोल नितम्ब ही कारण है जिसकी वजह से मेरी ड्रेस बार बार ऊपर खिंच कर उठ जाती थी। अब समझ आ रहा था कि औरतें दिन भर अपनी ड्रेस क्यों एडजस्ट करती रहती है। अच्छा हुआ कि परिणीता का ये तन जो मैंने पाया था, उसमे नितम्ब बेहद बड़े भी न थे।
जांघो का आपस में रगड़ना, बहती हवा का मेरी योनि को चूमना, मेरे नितम्ब का थर्राना और मटकना ऐसी छोटी छोटी बातें थी जो मेरे शरीर के निचले हिस्से में महसूस हो रही थी। शरीर के ऊपरी हिस्से में थे मेरे भरे हुए भारी स्तन! जो हर कदम पर झूमना चाहते थे। पर मेरी ब्रा उन्हें अपनी जगह से हिलने नहीं दे रही थी। इसका मतलब यह नहीं है कि मेरी अनुभूति कहीं से भी कम थी। एक परफेक्ट फिट होने वाली ब्रा कम्फर्ट तो देती ही है पर साथ ही साथ बड़े ही प्यार से आपके दोनों स्तनों को स्पर्श भी करती है। मैंने पुशअप ब्रा पहनी हुई थी तो मेरे स्तन और भी बड़े लग रहे थे। मैं जब भी निचे की ओर झुक कर देखती, मेरे दुलारे स्तन अठखेलियां करते दीखते और उनके बीच वो क्लीवेज किसी को भी उकसा देने वाला था। चलते चलते जब मेरे हाथ जब आगे पीछे होते तब मेरी बाँहें स्तनों को छू लेती। भले ही ब्रा की वजह से मेरे स्तन उछल न रहे हो पर मेरी बाँहें उन्हें अकेला न छोड़ती। कभी कम तो कभी ज्यादा, पर मेरे स्तनों को मेरी ही बाँहें ऐसी छेड़ती जैसे दूल्हे की बहने नयी नवेली दुल्हन को छेड़ती है। और फिर यह ठण्ड का मौसम! मेरी निप्पल बड़े और कठोर हो गए थे। ब्रा न होती तो यक़ीनन ही वह ड्रेस से बाहर pointed दिखाई देते। काश! कोई मेरे उत्तेजित निप्पल को अपनी उँगलियों से मसल देता।
अब बताती हूँ मेरी पीठ के बारे में। क्या पीठ में भी सेक्सी महसूस किया जा सकता है? यदि आपको लगता है की नहीं तो यक़ीनन ही आपने खुली पीठ पर लहराते लंबे बालों को महसूस नहीं किया है! मेरी ड्रेस में पीठ का ऊपरी हिस्सा थोड़ा खुला हुआ था और परिणिता से बात करने के बाद मैंने अपने बालों को खुला छोड़ दिया था। मेरी पीठ की कोमल त्वचा पर बहती हवा और लहराते बाल अपने स्पर्श से मुझे मदहोश कर रहे थे। आज से पहले मैंने घर के बंद कमरे में क्रोसड्रेस करते वक़्त विग को अपनी पीठ पर महसूस किया था पर असली घने लंबे बाल और खुली हवा में जो आनंद था वो कई गुना ज्यादा मादक था। और मेरी ब्रा का स्ट्रैप जो मेरी पीठ पे कस के लगा हुआ था, उसकी अनुभूति भी असली स्तनों के साथ बहुत बढ़ जाती है। हाय! मुझे तो अब थोड़ी शर्म भी आ रही है अपने अंग अंग के बारे में बात करते!
इन सब के साथ बीच बीच में हवा से जब बाल बिखरने लगते, तब मैं उन्हें अपने हाथों से ठीक कर अपने कान के पीछे कर देती। एक दो बार जब मेरे बाल मेरी कान की बालियों में जूझते, तब मैं अपनी बालियों (earrings) को भी ठीक करती। मेरे कान भी बड़े नाज़ुक से थे। मुझे याद है कि पहले जब मैं पुरुष रूप में परिणीता के इस शरीर को रातों को चूमती थी, तब उसके कान पर चुम्बन से वो मदहोश हो जाती थी। मैं सोच रही थी कि मुझे भी वो अनुभव करना चाहिए जब तक मैं परिणीता के इस स्त्री शरीर में हूँ।
हाय, यह कैसे कैसे विचार मेरे दिल में आ रहे है! पैदल चलना जो कि एक दैनिक साधारण सा काम है, उससे भी मैं इतनी कामोत्तेजित हो चुकी थी। सोच रही थी कि औरतें यह सब के साथ कैसे रहती होंगी। पर शायद उन्हें इस बात की आदत हो गयी थी। जबकि मैं तो बस कुछ घंटो पहले ही औरत बनी थी। इस कामोत्तेजना में दिल की हसरते बढ़ गयी थी जो चाह रही थी कि मैं इस स्त्री तन का पूरा आनंद लूँ। पर कैसे और कब?
चलते चलते परिणीता और मैं दूकान तक पहुच गए। दूकान में काफी भीड़ थी। सहसा ही ध्यान आया कि मैं पहली बार एक औरत के रूप में दुनिया के बीच खड़ी हूँ। मेरे कदम ठिठक कर रुक गए। मैंने परिणीता का हाथ पकड़ा। मुझे उसका साथ चाहिए था इस दुनिया से औरत के रूप में सामना करने के लिए। और शायद उसे भी मेरे साथ की ज़रुरत थी। हम दोनों ने एक दुसरे की ओर देखा, और दुकान के अंदर की ओर कदम बढ़ा दिए।

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