आज मैं बहुत खुश थी. आखिर मदर्स डे जो था. आज अपने बेटे के साथ मैं पिकनिक पर जाने वाली थी. और उसी की तैयारी में मुझे थोड़ी देर भी हो रही थी. बेटे ने आज के लिए अपनी पसंद से मेरे लिए साड़ी भी चुन कर निकाली थी. कहता है, “मम्मा आप ग्रीन साड़ी में बहुत अच्छी लगती हो.” तो बस उसी की तमन्ना पूरी करने के लिए ये साड़ी पहन रही थी मैं. और साथ ही साथ पिकनिक के लिए सुबह से खाना भी बनाने में मशगुल थी. तैयार होते हुए खुद को आज आईने में देख कर एहसास हुआ कि मैं कैसे मोटी होती जा रही हूँ. पता नहीं कैसे दिन भर इतना काम करने के बाद भी! मेरी ब्रा अब ज्यादा टाइट महसूस होने लगी थी और ब्रा के बैंड और ब्लाउज में निचे की ओर मोटापा साफ़ नज़र आने लगा था. खैर यह तो आज नहीं तो कल होना ही था. मेकअप करने के बाद भी आईने में खुद को देखकर कुछ कमी लग रही थी. ओह! कान में झुमके पहनना तो मैं भूल ही गयी थी. और झट से अपने झुमको की ड्रावर से एक सुन्दर जोड़ी निकाल कर मैं कान में पहनने लगी थी. देर न हो इसलिए मैंने अपने बेटे को आवाज़ दी, “विशु बेटा, तुम रेडी हुए या नहीं?” और उसकी आवाज़ आई, “हाँ, मम्मी. बस शूज पहन रहा हूँ”. मैं भी बस तैयार ही थी. खुद को एक बार फिर आईने में देख कर संतुष्टि करके अब मुझे किचन जाना था.
विशु को सूजी का हलवा बहुत पसंद है. बस वही बनाना बाकी रह गया था. और मैंने झटपट से सूजी को भूनना शुरू किया. खुले लम्बे बालो के साथ हलवा बनाने में मुझे थोड़ी परेशानी हो रही थी. पर बेटे की आज ख़ास फरमाइश थी कि आज मैं खुले बाल रखू. उसे मेरे खुले लम्बे बाल अच्छे लगते है. आखिर अपने पापा पर गया है! मैं किसी तरह बालो को सँभालते हुए हलवा बनाने लगी. और साथ ही साथ बाकी का खाना डब्बे में भरकर पिकनिक बैग बनाने लगी. एक बार फिर मैंने पलट कर बेटे को आवाज़ दी, “विशु बेटा, तैयार हुए या नहीं?” बच्चो का कोई भरोसा नहीं होता है, न जाने कितना समय लगा दे. “हो गया मम्मा! बस बाहर आ रहा हूँ.”, उसने अपने कमरे से आवाज़ दी. हलवा भी अब बस तैयार हो चूका था. “विशु बेटा, प्लीज़ मम्मा का पर्स कमरे से लेकर आना. और हाँ, वो ब्लैक सैनडल्स भी निकाल लाना.”, मैंने विशु से कहा.

“मम्मी, यहाँ तो दो-तीन ब्लैक कलर की सैंडल है. कौनसी लाऊ?”, विशु की आवाज़ आई. “जिसकी हील सबसे कम हो, वो ले आओ. आज बहुत चलना होगा, तो सैंडल कम्फर्टेबल होनी चाहिए न.”, मैं बोली. “ओके, मम्मा!”
बेहद प्यारा बेटा है मेरा. कभी भी कोई काम दो तो मना नहीं करता. वैसे भी हम दो ही तो थे इस घर में एक दुसरे का सहारा बन कर.
पिकनिक बैग पकड़ कर मैं बाहर के कमरे में आ गयी जहाँ मेरा दुलारा बेटा तैयार बैठा था. अब बस झटपट सैंडल पहन कर निकलना था हमें. “बेटा, पर्स कहाँ है?”, मैंने विशु से पूछा. “ये रहा मम्मा”, विशु ने अपने हाथ में मेरा पर्स पकड़ा हुआ था. मैंने एक बार पर्स में चेक की कि सारी काम की चीजें है या नहीं. एक माँ को बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है. फिर मुझे लगा जैसे मेरा माथा सुना सुना लग रहा है. अपने हाथो से छूकर देखी तो पता चला बिंदी कहीं गिर गयी है. मैंने पर्स से एक बिंदी का पैकेट निकाल कर अपने माथे पर लगा ली. और विशु की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए उससे बोली, “तो बता, कैसी लग रही है तेरी मम्मा?” उसने झट से कहा, “सबसे सुन्दर!”
मैं अब अपना पल्लू सामने कर कुर्सी पर बैठ कर सैंडल पहनने ही वाली थी कि विशु ने मुझे रोक लिया. “एक मिनट मम्मा! आज मदर्स डे है. आज मुझे अपने पैर छूने न दोगी?”, ऐसा कहकर विशु मेरे पैर छूकर मेरा आशीर्वाद लेते हुए मुझे मेरे पैरो में सैंडल पहनाने लगा. ख़ुशी से मैंने भी उसके माथे को चूम लिया. पता नहीं उसके पास ऐसे संस्कार कहाँ से आये थे. मैंने तो कभी दिए नहीं.
“मम्मी, ये आपके लिए ग्रीटिंग कार्ड है”, उसने मुस्कुराते हुए मुझे कार्ड पढने के लिए दिया. मैं भी ख़ुशी से पढने लगी. उस कार्ड के ऊपर लिखा हुआ था “World’s best mom ever!”. और अन्दर खोल कर देखी तो उसमे एक प्यारा सा छोटा सा मेसेज भी उसने अपने हाथो से लिखा था. “त्वमेव माता च पिता त्वमेव. त्वमेव सर्वं मम देव देव. I love you mom!”
वो कार्ड पढ़ कर मेरी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे. मैं अपनी ख़ुशी कितनी थी बता नहीं सकती आखिर मेरे सालो की मेहनत और प्यार का फल मुझे प्यार के रूप में मिल रहा था. उसने सच ही तो कहा था. मैं ही उसकी माता थी और मैं ही उसकी पिता भी.

वो ७ साल का था, जब उसकी माँ इस दुनिया को छोड़कर चली गयी थी. छोटा सा बच्चा किसी तरह माँ के बिना अपनी नानी के साथ जी रहा था. पर २ महीने बाद उसकी नानी को भी अपने घर नाना का ख्याल रखने जाना पड़ा था. नानी के जाने के बाद वो उदास उदास सा रहने लगा था. और कुछ दिन बाद वो मेरे पास आकर बड़ी ही मासूमियत से बोला, “पापा, मम्मी की याद आ रही है.” छोटे से बच्चे की बात सुन कर मेरा दिल और टूट गया था. पत्नी को खोने का गम तो पहले से था ही. पर अपने बेटे को ऐसे देख नहीं सकता था मैं. मैंने बेटे को गले से लगाया और कहा कि तुम यहाँ कुछ देर बैठो, मैं बस थोड़ी देर में आता हूँ. मैंने टीवी में उसकी पसंद का कार्टून शो लगा दिया ताकि उसका मन बहल जाए.
वैसे तो मैं क्रोस-ड्रेसर था पर कभी अपने बेटे के सामने मैंने क्रोस-ड्रेसिंग नहीं किया था. और पत्नी के जाने के बाद तो जैसे इच्छा ही ख़तम हो गयी थी. पर उस दिन उदास बेटे की बात सुनकर पता नहीं क्यों मुझे लगा कि अब शायद यही एक तरीका बचा है. और उसी तरकीब को अमल में लाते हुए मैंने अलमारी से अपनी पत्नी की एक साड़ी निकाली जिससे थोडा बहुत मेल खाता हुआ मेरे साइज़ का ब्लाउज था मेरे पास. उस साड़ी को हाथ में पकड़ कर मुझे अपनी पत्नी की बड़ी याद आने लगी थी, कितनी खुबसूरत लगती थी वो इस साड़ी में. पर किसी तरह दिल पर काबू करके मैंने धीरे धीरे साड़ी पहनना शुरू किया. साड़ी को अपने तन पर लपेटते हुए ऐसा लग रहा था जैसे मेरी पत्नी मुझसे गले लग कर कह रही हो “तुम अच्छा कर रहे हो श्रीकांत. मेरे बेटे को माँ का खूब प्यार देना.” अब अन्दर ही अन्दर रो पड़ा था.

मैंने जब मेकअप करना शुरू किया था तो मेरे हाथ मेरा साथ नहीं दे रहे थे. मन का गम जो अब तक ख़त्म नहीं हुआ था. पर किसी तरह खुद को समझाते हुए मैंने मेकअप किया. विग पहनकर मैंने फिर अपनी पत्नी का एक हार निकाला यह सोचकर की शायद वो माँ का हार और माँ की साड़ी, कुछ देर के लिए ही सही बेटे के लिए माँ की कमी पूरी कर दे. उस हार को देखते ही मेरी आँखों में फिर दो बूँद आंसू आ गए थे क्योंकि बेहद प्यार से उसके लिए खरीद कर लाया था मैं. कितनी खुश हुई थी वो उस दिन उस हार को देख कर. हमारी एनिवर्सरी का गिफ्ट था वो हार! उस हार को पहन कर अपनी आँखों से आंसू पोंछ कर मैं हिम्मत करके बाहर अपने बेटे के पास जाने को तैयार था.
वो कमरे में चुपचाप टीवी देख रहा था. उसका ध्यान खींचने के लिए मैंने अपनी आवाज़ औरत की तरह पतली करते हुए कहा, “विशु बेटा, देखो तो कौन आया है?”. किसी तरह उसने अपनी उदास नज़रे घुमाकर मेरी तरफ देखा. मेरी ओर देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी. “पापा, आप तो लड़की बन गए!”, और वो जोर जोर से हँसने लगा. “पापा, लड़की नहीं तुम्हारी मम्मी बन गए है!”, मैंने कहा. वो मुझ पर हँस रहा था पर उसको इतने दिनों बाद हँसते हुए देख कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. और फिर मैंने झुककर उससे कहा, “तुम्हे मम्मी की याद आ रही थी न? अब मम्मी के पास नहीं आओगे?” और वो दौड़कर मुझसे आकर गले लग गया. उसे हँसते देख गले लगाकर जो मुझे सुकून मिला शायद उसी को माँ की ममता कहते है. उस रात वो मुझे मम्मी मम्मी कहते हुए मेरे साथ खेलते हुए गहरी नींद सो गया. और मैं भी अपने कमरे में आकर कपडे बदल कर सो गया.

मैंने सोचा था शायद ये सिर्फ एक बार की ही बात होगी, पर विशु छोटा नादान बच्चा था जो शायद स्कूल में कभी किसी की मम्मी देख लेता या उसका जब मन करता, वो मेरे पास आकर कहता, “पापा मुझे मम्मी से मिलाओ न!” और मुझे सब काम छोड़ कर उसकी मम्मी बनना पड़ता! अब मैं क्रॉस-ड्रेसिंग अपने लिए नहीं उसके लिए करता था. और धीरे धीरे करते हुए अब मुझे हफ्ते में २-३ बार मम्मी बन कर रहना पड़ता. और इस तरह मेरे जीवन में नई कसरत की शुरुआत हुई. वैसे तो मैं मम्मी रहू या पापा, विशु का टिफ़िन बनाने और उसे तैयार करने में उतना ही समय लगता था, पर अब मम्मी बनने के लिए भी सुबह ४ बजे उठ कर अतिरिक्त समय लगाना पड़ता था. और साथ ही साथ समय समय पर दर्द भरी वैक्सिंग भी करनी पड़ती थी. विशु को अपनी मम्मी की खूबसूरती में कोई कमी पसंद नहीं थी!
फिर भी जब तक बात घर में थी, मुझे कोई परेशानी नहीं थी. विशु के चक्कर में मुझे कैसे कैसे दिन देखने पड़े है मैं कैसे बताऊँ!
एक दिन विशु को उसकी क्लासमेट तनिषा के जन्मदिन में जाना था. मैं अक्सर पापा के रूप में उसे तनिषा के यहाँ स्कूल के बाद खेलने के लिए छोड़ आता था और तनिषा की माँ स्मिता भी विशु का बड़े प्यार से ख्याल रखती थी. वो खुद एक सिंगल मॉम थी और उसे एहसास था कि बिना माँ के बच्चे को कितना प्यार चाहिए. उस दिन भी मैं उसे वैसे ही छोड़ने जाने वाला था. पर उस दिन विशु ने जिद पकड़ ली कि वो अपनी मम्मी के साथ ही जायेगा. मैंने उसे खूब समझाने की कोशिश की पर वो माना नहीं. उसे तनिषा के जन्मदिन जैसे महत्वपूर्ण दिन में न ले जाता तो उसकी माँ शायद बुरा मान जाती. तो आखिर हारकर मैं फिर विशु की मम्मी बनने को तैयार हो गया.
आजतक कभी औरत बनकर मैंने घर के बाहर कदम नहीं रखा था. मेरी हालत बड़ी ख़राब थी. पर किसी तरह कार में विशु को लेकर मैं बैठ गयी और तनिषा के घर चल पड़ी. किसी तरह डरते हुए सबसे नज़रे बचाते हुए हम दोनों कार से जा रहे थे. कोई जान पहचान का रास्ते में दिखा नहीं पर फिर भी एक अनजाना सा डर था मन में.
थोड़ी देर बाद मैंने तनिषा के घर से थोड़ी दूरी पर कार रोकी और विशु से कहा, “अच्छा बेटा, अब तुम यहाँ से तनिषा के यहाँ चले जाओ. और यह लो तनिषा की गिफ्ट. उसे देना मत भूलना! और सड़क किनारे धीरे धीरे चलना. समझे?”
पर विशु के मन में उस दिन कुछ और ही था. “नहीं मैं अकेले नहीं जाऊँगा. सबके बर्थडे पर सभी की मम्मी साथ आती है. मैं आपके बगैर नहीं जाऊँगा!”, विशु जिद करने लगा था.
“देखो बेटा, प्लीज़ समझा करो. मम्मा की बात नहीं मानेगा मेरा प्यारा बेटा?”, मैंने उसे प्यार से गले लगाते हुए समझाने की कोशिश की. पर वो अपनी जिद पर अड़ा रहा और कार से बाहर निकलकर मेरी साड़ी का पल्लू खिंचकर साथ चलने की जिद करने लगा.
इसके बाद वही हुआ जिसका मुझे डर था. तनिषा की माँ स्मिता किसी कारण से घर से बाहर निकल कर आई थी. और उसने दूर से ही सड़क पर विशु को जिद करते देख लिया था. वो चलकर हमारी तरफ बढ़ने लगी थी. स्मिता को आते देख मेरे दिल की धड़कने तेज़ हो गयी थी. मैंने विशु को समझाकर किसी तरह जाने को कहा पर वो अब भी मेरा पल्लू खिंच रहा था. “मेरा प्यारा बेटा, प्लीज़ अपनी मम्मा की बात मान जा. देखो ऐसे मम्मा की साड़ी नहीं खींचते. तुम्हारी फ्रेंड तनिषा तुम्हारा पार्टी में इंतज़ार कर रही होगी. प्लीज़ बेटा, मम्मा को अभी घर जाना है. मम्मी पार्टी के बाद तुमको लेने ज़रूर आएगी. आई प्रॉमिस”, मैंने विशु को समझाने की आखिरी कोशिश की. मैं इस तरह उसे छोड़कर जा भी नहीं सकती थी. और आखिर में स्मिता हमारी कार तक पहुच ही गयी.
“तो आज विशु की मम्मी से मुलाक़ात हो ही गयी!”, स्मिता ने मेरी ओर मुस्कुराते हुए कहा. मेरी तो शर्म से हालत ख़राब हो रही थी. और मैं बस संकोच भरी मुस्कान देकर रह गयी. “आप भी प्लीज़ पार्टी में आइये न. विशु की मम्मी से मिलकर तनिषा को भी अच्छा लगेगा!”, स्मिता ने कहा. “हाँ मम्मी चलो न!”, विशु ने भी कहा.
“नहीं नहीं.. फिर कभी”, मैं तो शर्म से पानी पानी हो चुकी थी.
“मेरी न सही विशु की तो सुन लो श्रीकांत”, स्मिता ने मुझसे फिर कहा. वो मुझे मेरे असली नाम से पुकार रही थी. वो मुझे पहचान चुकी थी. “प्लीज़ आ जाओ. तुम्हे घबराने की कोई ज़रुरत नहीं है.”, स्मिता ने फिर कहा.
अब मैं स्मिता को कैसे समझाती कि मेरी हालत कैसी थी उस वक़्त. कुछ कहने में भी मुझे शर्म आ रही थी. पर अब स्मिता को पता चल गया था तो बाकी लोगो तक बात फैलते भी देर नहीं लगेगी. शर्मिंदगी का एहसास लिए आखिर मैं कार से बाहर निकल आई और एक हाथ से विशु का हाथ पकड़ कर स्मिता के साथ चलने लगी. विशु के मेरे पल्लू को खींचने की वजह से मेरे कंधे से साड़ी की प्लेट खुल गयी थी, इसलिए मैं दुसरे हाथ से पल्लू को सामने पकड़ कर चल रही थी. इतनी शर्मिंदगी का एहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ था. पर अभी और लोगो से मिलकर इस शर्मिंदगी को और भी बढ़ना था.
“विशु ने मुझे बताया था कि उसकी मम्मी भी है और पापा भी. और दोनों एक ही है.”, स्मिता ने मेरी ओर देख कर कहा जैसे वो मुझसे कुछ जवाब चाह रही हो. पर मेरी बोलती बंद थी और मैं सिर्फ “हम्म” कह कर रुक गयी. मुझे यह सब करने के पहले ही सोचना चाहिए था कि बच्चे कभी भी कहीं भी कुछ भी कह सकते है. मुझे विशु को पहले ही समझाना चाहिए था कि वो मम्मी की बात किसी से न कहे. पर अब बहुत देर हो चुकी थी.

“वैसे आपका नाम क्या है? मेरा मतलब है कि श्रीकांत तो मैं जानती हूँ. मगर ….? “, स्मिता ने मुझसे पूछा. मैंने किसी तरह जवाब दिया, “विशु की मम्मी.” वैसे तो बहुत पहले से क्रॉस-ड्रेसिंग के समय मैंने अपने लिए एक लड़की का नाम सोच रखा था पर अब मैं विशु की मम्मी थी. और यह पहचान मैं एक क्रोस-ड्रेसर की पहचान से अलग रखना चाहती थी.
“लेकिन परिचय कराने के लिए कोई तो नाम आपने सोचा होगा?”, स्मिता ने मुझसे फिर पूछा.
मुझे अब अन्दर ही अन्दर रोना आ रहा था. मुझसे और एक भी कदम बढाया नहीं जा रहा था. पर हिम्मत करके मैंने कहा, “स्मिता, आई ऍम सॉरी पर मुझे ऐसे यहाँ नहीं आना चाहिए था. तुम बुरा मत मानना पर प्लीज़ यह तनिषा का गिफ्ट रख लो. विशु और मैं वापस अपने घर जाना चाहेंगे. तुम आगे से विशु को घर पर न बुलाना चाहो तो मैं तुम्हारी मुश्किल समझ सकूंगा. और मैं बुरा नहीं मानूंगा. पर फिर भी तुम उसके पापा की गलती माफ़ कर सको तो दो बच्चो की दोस्ती बनी रहेगी.” मैंने स्मिता के आगे हाथ जोड़ लिए.
“सुष्मिता”, स्मिता ने कहा. “क्या?”, मैं स्मिता की बात समझ नहीं सकी.
“स्मिता की सहेली और विशु की मम्मी का नाम सुष्मिता! हाँ, यह नाम अच्छा है!”, स्मिता ने कहा और मेरा हाथ जोर से पकड़ कर मुझे खिंच कर अपने साथ घर ले जाने लगी. और इस तरह, उस दिन मुझे विशु की मम्मी के रूप में नया नाम मिला था, सुष्मिता! वैसे तो ख़ुशी की बात थी पर आज भी याद आता है कि उस दिन मेरी हालत कितनी ख़राब थी.
अपने घर के अन्दर ले जाकर स्मिता ने सभी बच्चो के माता-पिता से मेरा परिचय अपनी सहेली और विशु की मम्मी सुष्मिता के रूप में कराया. पर सभी जानते थे कि विशु की मम्मी इस दुनिया में अब नहीं है. चाहे मैंने जितना भी अच्छा मेकअप किया रहा हो पर सभी सच जान गए थे. और जो नहीं जानते थे उनको जानने वालो ने उस पार्टी में बता दिया था. और धीरे धीरे पार्टी में कानाफूसी शुरू हो गयी थी. कोई हँस रहा था, कोई आश्चर्य से देख रहा था, कोई औरत आकर मुझसे कह गयी कि उसे यकीन नहीं होता कि मैं इतनी अच्छी तरह से साड़ी पहन सकती हूँ, और कुछ लोग आपस में बात कर रहे थे, “दुनिया में बहुत से बच्चे बिना माँ के बढ़ते है, पर कोई बाप ऐसा करता है भला?”. जितने मुंह थे उतनी बातें थी. पर स्मिता ने हर पल मुझे अपने साथ रखा था. जैसे इस दुनिया की उलटी सीधी बातों से वो मुझे बचाना चाहती थी.

“तनिषा बेटा, इधर आओ! आप विशु की मम्मी को गले नहीं लगाओगी?”, स्मिता ने अपनी बेटी को पास बुलाकर कहा. और तनिषा मुझसे गले मिलने मेरे पास आ गयी. मैं भी झुककर उसे प्यार से गले लगाकर बोली, “बेटा, आप तो बिलकुल परी लग रही हो!” तनिषा भी मुझसे बेहद प्यार से गले मिल कर बोली, “थैंक यू आंटी”. और फिर वो विशु के साथ खेलने चल दी.
किसी तरह से उस दिन वो पार्टी ख़त्म हुई और मैं विशु को साथ लेकर घर वापस आ गयी. विशु के सोने का समय हो गया था तो उसके कपडे बदल कर अपनी बगल में सुलाकर मैं भी वैसे ही सो गयी. मेरे बेटे ने भी मुझे क्या दिन दिखाया था! मुझे पता नहीं था कि आगे और क्या होने वाला है. पर मुझे घर वापस आने से पहले स्मिता की कही हुई बात याद आ रही थी, “सुष्मिता, अब मुझसे मिलती रहना!” किस्सा अब भी ख़त्म नहीं हुआ था. मैं अपनी किस्मत पर हँसने लगी. अब मैं श्रीकांत रहूँ या सुष्मिता, शर्मिंदगी तो उतनी ही झेलनी पड़ेगी. तो क्यों न विशु की खातिर मैं समय समय पर सुष्मिता बनती रहूँ?
और ऐसे शुरुआत हुई थी स्मिता और सुष्मिता की दोस्ती की. और साथ ही साथ स्मिता और श्रीकांत की दोस्ती की भी. हम दोनों अब अच्छी सहेलियां भी बन चुकी थी और हमारे बच्चे तो अच्छे दोस्त थे ही. तनिषा भी प्यारी बच्ची थी जो मुझे अंकल और आंटी दोनों रूप में प्यार से स्वीकार करती थी.
स्मिता ने हिम्मत दिलाई तो अब उसके साथ मैं घर के बाहर भी जाने लगी थी. और समय तेज़ी से बीतने लगा. विशु भी अब समझदार होने लगा था और अब वो मम्मी के लिए जिद कम करने लगा था. अब मैं उसकी मम्मी हफ्ते में १-२ दिन के लिए ही कुछ घंटो के लिए बनती थी. इस पूरे समय में स्मिता ने मेरा बहुत साथ दिया था. मैं जब भी उसके लिए धन्यवाद कहती तो वो मुझे कहती, “श्रीकांत, तनिषा के पास भी पापा नहीं है. और तुमने भी वो कमी पूरी करने में मेरी काफी मदद की है.” सच कहूं तो स्मिता और मेरे बीच प्यार पनप रहा था, पर बच्चो की खातिर हमने अपने रिश्ते को दोस्ती तक ही सिमित रखा था.

देखते ही देखते मेरा बेटा विशु १३ साल का हो चूका था और आज मेरे साथ मदर्स डे मनाने वाला था. आज उसके प्यार भरे कार्ड ने मुझे एहसास दिला दिया था कि एक माँ के रूप में भी मैं सफल हो सकी थी. मेरी पत्नी आज जहाँ भी होगी, इस पल को देख कर ज़रूर खुश हुई होगी. इसी ख़ुशी से मेरी आँखों में आंसू थे.
मेरे आँखों के आंसू पोंछ कर विशु ने मुझसे कहा, “मम्मा, पता है मैं भी आपकी तरह बनना चाहता हूँ.”
मैंने उसको गले लगाया और बोली, “तुझे मेरी तरह क्यों बनना है? तू तो पहले से ही मुझसे भी बहुत ज्यादा अच्छा है!” माँ का प्यार और बेटे के लिए दुलार कह रहा था यह.
“नहीं मम्मा. आप समझी नहीं. मैं आपकी तरह अच्छा तो बनना चाहता हूँ पर मैं कभी आपकी तरह दिखना भी चाहूँगा.”, विशु ने मेरी ओर देखते हुए कहा, “… आप समझ रही हो?”
मैं हँस दी. “तू अपनी मम्मा की तरह साड़ी पहनेगा?” मैं जानती थी कि विशु मेरी तरह क्रोस-ड्रेसर नहीं है. वो तो बस अपनी मम्मी की उठाई हुई तकलीफों को समझने के लिए यह कह रहा था. उससे मैं पहले इस बारे में वैसे भी एक दो बार बात कर चुकी थी. कम से कम इस मामले में अपने पापा की तरह नहीं था विशु. “पगला है तू. आज मुझे इमोशनल करके रुलाकर मेरा मेकअप ख़राब कराएगा क्या?”, मैंने उसके सर पर प्यार से थपकी देकर उसके सर को अपने सीने से लगाकर अपने आँचल से छुपा लिया.
“आपका मेकअप ख़राब भी हो जाए तब भी दुनिया में सबसे सुन्दर तो आप ही रहोगी न”, विशु मुझसे मुस्कुराते हुए बोला.
मैं भी अपनी आँखें मटकाते हुए बोली, “ओये डायलाग मास्टर, मुझे पता है कि यह डायलॉग तू अपनी तनिषा को भी सुना चूका होगा. सब जानती हूँ मैं!”
“मम्मा आप भी न कुछ भी कुछ बोलती है!”, विशु शर्मा रहा था.
“चल अब पिकनिक बैग उठा. तेरी तनिषा और उसकी मम्मी हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे चलने के लिए. वैसे भी देर हो रही है.”, मैं कुर्सी से उठते हुई बोली. और मैं विशु के दिए हुए कार्ड को अपनी पर्स में रखकर चलने लगी. बेचारा अब तो मेरे मुंह से तनिषा का नाम सुनते ही शर्माने लगता था. उसकी माँ ही उसे छेड़ने लगी थी!

हम दोनों कार के पास पहुचे ही थे कि मैंने फिर विशु को छेड़ते हुए पूछा, “अच्छा यह बता तेरी तनिषा से शादी होगी तो तू अपने पापा को बुलाएगा या अपनी मम्मी को? हम दोनों तो साथ नहीं आ सकेंगे?”
“मम्मी, शादी में कोई भी आये घर में बहु का स्वागत करने के लिए तो आपको ही रहना पड़ेगा!”, विशु ने हँसते हुए जवाब दिया.
“लो अब तो तुमने कन्फर्म भी कर दिया! तनिषा ही मेरी बहु बनेगी”, मैं हँस दी. और हँसते हुए हम माँ बेटे कार में बैठ कर चल पड़े.
पता नहीं आगे क्या होगा. विशु और तनिषा शादी करेंगे या नहीं ये तो समय ही बताएगा. पर तनिषा मेरी बहु बने तो मुझे ख़ुशी ही मिलेगी. आखिर उसने मुझे एक औरत के रूप में भी स्वीकार किया है. स्मिता जिसने हमारा इतना साथ दिया है वो मेरी समधन बन जायेगी, कार में बैठे बैठे यह सोच कर ही मेरा दिल खुश हो रहा था.
अपने पुराने दिनों को याद करती हूँ तो सोचती हूँ कि एक क्रॉस-ड्रेसर के रूप में मेरी माँ बनने की इच्छा तो थी, पर मेरी इच्छा इस तरह पूरी होगी ऐसा कभी मैंने सोची भी नहीं थी. चाहे कितनी भी मुश्किलें आई हो इस सफ़र में पर माँ बनने का अनुभव जितना सुखद है उतना सुख किसी और चीज़ में नहीं मिला मुझे. पता नहीं आगे बड़ा होकर विशु अपनी माँ का साथ कितना दे सकेगा पर अभी के जो प्यार भरे पल है उन्हें दिल खोलकर जी लेना चाहती हूँ मैं!
समाप्त
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