यह कहानी है सोनू की जिसे मजबूरी में एक स्त्री का जीवन जीना पड़ता है. यह कहानी सोनू और उसके बहनों, माँ और प्रेमियों के साथ उसके रिश्तो को बयान करती है. थोड़ी भावुक पर प्यार की यह कहानी पढ़ कर बताये आपको कैसी लगी. भाग १: दीदी से मुलाकात भाग २: मैं बेटी कैसे बनी भाग ३: शर्मिंदगी का अहसास भाग ४: घर में आखिरी साल भाग ५: शीघ्र आएगा
स्कूल का वो दिन मैं सोना चाहती हूँ पर अब भी नींद नहीं आ रही है. बिस्तर पे करवट बदलते रात के ११ बज चुके है. और आँखों में अब भी स्कूल का वो दिन याद आ रहा है जिस दिन मुझे पता चला था कि अखिल मेरे दोहरे जीवन का राज़ जान चूका है. बड़ी बेचैन थी उस दिन मैं. होती भी क्यों नहीं? अखिल ने यदि सभी को मेरे बारे में बता दिया तो स्कूल में भी मेरा जीना मुश्किल हो जाता. उस दिन सड़क पर बीच में अकेले खड़ी खड़ी मैं अखिल को जाते हुए देखते रह गयी. अब मेरे पास बस एक ही रास्ता बचा था यह देखने का कि अब स्कूल में आगे क्या होता है. मैं घर से गीता के लिए खाना बनाने के बाद कपडे बदल कर लड़के के रूप में स्कूल के लिए निकल गयी. नर्वस तो मैं बहुत थी. सोच रही थी कि आखिर क्यों अपनी बेईज्ज़ती कराने स्कूल जा रही हूँ मैं? मेरे मन में बस यही विचार आ रहा था कि स्कूल पहुँचते ही अखिल अपने दोस्तों के साथ मेरा मज़ाक उड़ाने के लिए तैयार होगा. इसी सोच में मैं स्कूल पहुँच कर अपने क्लास की ओर बढ़ने लगी कि कभी भी मुझ पर हँसने वाले लोग मिल सकते है मुझे. क्लास की ओर बढ़ता एक एक कदम किसी टार्चर से कम नहीं था. पर जब क्लास पहुंची तो व...